श्रीगणेश चतुर्थी

गणेश चतुर्थी अर्थात स्थूल, सूक्ष्म और कारण इन तीनों को सत्ता देनेवाले चैतन्यस्वरूप में विश्रांति पाकर, ‘सोऽहम्’ का नाद जगाकर, ‘आनंदोऽहम्’ का अमृतपान करके संसार-चक्र से मुक्त होने का दिवस ।
अपनी सुषुप्त शक्तियों को जाग्रत करके तुरीयावस्था में पहुँचने का संकेत करनेवाले गणपतिजी गणों के नायक है । गण से क्या तात्पर्य है ? इन्द्रियाँ गण है । पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ व पाँच कर्मेन्द्रियाँ ये बहि:करण है और मन, बुद्धि, चित्त व अहंकार ये चार अंत:करण हैं । इन सबका जो स्वामी है वही गणपति है, ज्ञानस्वरूप है । ज्ञानस्वरूप, इन्द्रियों के स्वामी उन गणपतिजी से हम प्रार्थना करें कि ‘आपकी शक्ति, आपकी ऋद्धि-सिद्धि हमें संसार में न भटकाये, अपितु तुरीयावस्था में पहुँचाये ऐसी आप कृपा करना, देव !’

गणेश चतुर्थी के दिन क्या करें ?

गणेश चतुर्थी के दिन गणेश उपासना का विशेष महत्त्व है । इस दिन गणेशजी की प्रसन्नता के लिए इस ‘गणेश गायत्री’ मंत्र का जप करना चाहिए :
महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् । 

श्रीगणेशजी का अन्य मंत्र, जो समस्त कामनापूर्ति करनेवाला एवं सर्व सिद्धिप्रद है :
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं गणेश्वराय ब्रह्मस्वरूपाय चारवे ।
सर्वसिद्धिप्रदेशाय विघ्नेशाय नमो नमः ।।
(ब्रह्मवैवर्त पुराण, गणपति खंड : 13.34)

गणेशजी बुद्धि के देवता हैं । विद्यार्थियों को प्रतिदिन अपना अध्ययन-कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व भगवान गणपति, माँ सरस्वती एवं सद्गुरुदेव का स्मरण करना चाहिए । इससे बुद्धि शुद्ध और निर्मल होती है ।

विघ्न निवारण हेतु
गणेश चतुर्थी के दिन ‘ॐ गं गणपतये नमः ।’ का जप करने और गुड़मिश्रित जल से गणेशजी को स्नान कराने एवं दूर्वा व सिंदूर की आहुति देने से विघ्नों का निवारण होता है तथा मेधाशक्ति बढ़ती है ।

(गर्भवती बहनें हवन ना करें।)

अगर माँ बालक को बुद्धिमान, तेजस्वी देखना चाहती हो तो वह गणेश चौथ का उपवास करे, व्रत करे, जप करे ।

 

गणेश चतुर्थी के पीछे का पौराणिक प्रसंग

एक बार गणपतिजी अपने मौजिले स्वभाव से आ रहे थे । वह दिन था चौथ का । चंद्रमा ने उन्हें देखा । चंद्र को अपने रूप, लावण्य, सौंदर्य का अहंकार था । उसने गणपतिजी का नजाक उड़ाते हुये कहा : “क्या रूप बनाया है । लंबा पेट है, हाथी का सिर है …” आदि कह के व्यंग कसा तो गणपतिजी ने देखा कि दंड के बिना इसका अहं नहीं जायेगा ।
गणपतिजी बोले: “जा, तू किसीको मुँह दिखाने के लायक नहीं रहेगा ।” फिर तो चंद्रमा उगे नहीं । देवता चिंतित हुये कि पृथ्वी को सींचनेवाला पूरा विभाग गायब ! अब औषधियाँ पुष्ट कैसी होगी, जगत का व्यवहार कैसे चलेगा ?”
ब्रह्माजी ने कहा: “चंद्रमा की उच्छृंखलता के कारण गणपतिजी नाराज हो गये हैं ।”
गणपतिजी प्रसन्न हों इसलिये अर्चना-पूजा की गयी । गणपतिजी जब थोड़े सौम्य हुये तब चंद्रमा मुँह दिखाने के काबिल हुआ । चंद्रमा ने गणपतिजी भगवान की स्त्रोत्र-पाठ द्वारा स्तुति की । तब गणपतिजी ने कहा: “वर्ष के और दिन तो तुम मुँह दिखाने के काबिल रहोगे लेकिन भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चौथ के दिन तुमने मजाक किया था तो इस दिन अगर तुमको कोई देखेगा तो जैसे तुम मेरा मजाक उड़ाकर मेरे पर कलंक लगा रहे थे, ऐसे ही तुम्हारे दर्शन करनेवाले पर वर्ष भर में कोई भारी कलंक लगेगा ताकि लोगों को पता चले कि रूप और सौंदर्य का अहंकार मत करो । देवगणों का स्वामी, इन्द्रियों का स्वामी आत्मदेव है । तू मेरे आत्मा में रमण करनेवाले पुरुष के दोष देखकर मजाक उड़ाता है । तू अपने बाहर के सौंदर्य को देखता है तो बाहर का सौंदर्य जिस सच्चे सौंदर्य से आता है उस आत्म-परमात्म देव मुझको तो तू जानता नहीं है । नारायण-रूप में है और प्राणी-रूप में भी वही है । हे चंद्र ! तेरा भी असलीस्वरूप वही है, तू बाहर के सौंदर्य का अहंकार मत कर ।”
भगवान श्रीकृष्ण जैसे ने चौथ का चाँद देखा तो उनपर स्यमन्तक मणि चुराने का कलंक लगा था । इतना ही नहीं, बलराम ने भी कलंक लगा दिया था, हालाकि भगवान श्रीकृष्ण ने मणि चुरायी नहीं थी ।

यदि भूल से भी चौथ का चंद्रमा दिख जाय तो
यदि भूल से भी चौथ का चंद्रमा दिख जाय तो ‘श्रीमदभागवत’ के 10वें स्कंध, 56-57वें अध्याय में दी गयी ‘स्यमंतक मणि की चोरी’ की कथा का आदरपूर्वक श्रवण करना । भाद्रपद शुक्ल तृतीया या पंचमी के चंद्रमा के दर्शन कर लेना, इससे चौथ को दर्शन हो भी गया तो उसका ज्यादा खतरा नहीं होगा ।
इस वर्ष भाद्रपद के शुक्लपक्ष की चतुर्थी 18 एवं 19 सितम्बर दोनों दिन है । दोनों दिन चंद्रदर्शन निषिद्ध है । 18 सितम्बर को चंद्रास्त का समय रात्रि 8:40 तक है और एवं 19 सितम्बर को चंद्रास्त का समय रात्रि 9:18 तक है । इस समय तक चंद्र-दर्शन न हो, इसकी सावधानी रखें ।

गणेशजी का बाह्य विग्रह समाज के लिए अनोखी प्रेरणा

गणेशजी के कान बड़े सूप जैसे हैं । वे यह प्रेरणा देते हैं कि जो कुटुम्ब का बड़ा हो, समाज का बड़ा हो, उसमें बड़ी खबरदारी होनी चाहिए । सूपे में अन्न-धान में से कंकड़-पत्थर निकल जाते हैं । असार निकल जाता है, सार रह जाता है । ऐसे ही सुनो लेकिन सार-सार ले लो । जो सुनो वह सब सच्चा न मानो, सब झूठा न मानो, सार-सार लो । यह गणेशजी के बाह्य विग्रह से प्रेरणा मिलती है ।

गणेशजी की सूँड लम्बी है अर्थात् वे दूर की वस्तु की भी गंध लेते हैं । ऐसे ही कुटुम्ब का जो अगुआ होता है, उसको कौन, कहाँ, क्या कर रहा है या क्या होनेवाला है इसकी गंध आनी चाहिए ।

हाथी के शरीर की अपेक्षा उसकी आँखें बहुत छोटी हैं लेकिन हाथी सुई को भी उठा लेता है । ऐसे ही समाज का, कुटुम्ब का अगुआ सूक्ष्म दृष्टिवाला होना चाहिए । किसको अभी कहने से क्या होगा ? थोड़ी देर के बाद कहने से क्या होगा ? तोल-मोल के बोले, तोल-मोल के निर्णय करे ।

गणेशजी के दो दाँत हैं एक बड़ा और एक छोटा । बड़ा दाँत दृढ़ श्रद्धा का और छोटा दाँत विवेक का प्रतीक है । अगर मनुष्य के पास दृढ़ श्रद्धा हो और विवेक की थोड़ी कमी भी हो तब भी श्रद्धा के बल से वह तार जाता है ।

गणेशजी के हाथों में मोदक और दंड है अर्थात जो साधन-भजन करके उन्नत होते हैं उन्हें वह मधुर प्रसाद देते हैं और जो वक्रदृष्टि रखते हैं उन्हें वक्रदृष्टि दिखाकर दंड से उनका अनुशासन करके उन्हें आगे बढ़ाने की प्रेरणा देते हैं ।

गणेशजी के पैर छोटे हैं जो इस बात की ओर संकेत करते हैं कि धीरा सो गंभीरा, उतावला सो बावला । कोई भी कार्य उतावलेपन से नहीं; बल्कि सोच-विचार करके करें ताकि असफल न हों ।

भगवान गणेशजी की सवारी क्या है ? चूहा ! इतने बड़े गणपति चूहे पर कैसे जाते होंगे ? यह प्रतीक है समझाने के लिए कि छोटे-से-छोटे आदमी को भी अपनी सेवा में रखो । बड़ा आदमी तो खबर आदि नहीं लायेगा लेकिन चूहा किसी के भी घर में घुस जायेगा । ऐसे छोटे से छोटे आदमी से भी कोई न कोई सेवा लेकर आप दूर तक की जानकारी रखो और अपना संदेश, अपना सिद्धान्त दूर तक पहुँचाओ । ऐसा नहीं कि चूहे पर गणपति बैठते हैं और घर घर जाते हैं । यह संकेत है आध्यात्मिक ज्ञान के जगत में प्रवेश पाने का ।

गणेश चतुर्थी का आध्यात्मिक संदेश

हे साधक ! तुरीयावस्था में जाग…

देव-असुरों, शैव-शाक्तों, सौर्य और वैष्णवों द्वारा पूजित, विद्या के आरंभ में, विवाह में, शुभ कार्यों में, जप-तप-ध्यानादि में सर्वप्रथम जिनकी पूजा होती है, जो गणों के अधिपति है, इन्द्रियों के स्वामी है, सवके कारण है उन गणपतिजी का पर्व है ‘गणेश चतुर्थी’।

जाग्रतावस्था आयी और गयी, स्वप्नावस्था आई और गयी, प्रगाढ़ निद्रा (सुषुप्ति) आयी और गयी – इन तीनों अवस्थाओं को स्वप्न जानकर हे साधक ! तू चतुर्थी अर्थात तुरीयावस्था (ब्राम्ही स्थिति) में जाग ।

तुरीयावस्था तक पहुँचने के लिए तेरे रास्ते में अनेक विघ्न-बाधाएँ आयेगी । तू तब चतुर्थी के देव, विघ्नहर्ता गणपतिजी को सहायता हेतु पुकारना और उनके दण्ड का स्मरण करते हुए अपने आत्मबल से विघ्न-बाधाओं को दूर भगा देना ।

हे साधक ! तू लम्बोदर का चिंतन करना और उनकी तरह बड़ा उदर रखना अर्थात छोटी-छोटी बाते को तू अपने पेट में समां लेना, भूल जाना । बारंबार उनका चिंतन कर अपना समय नहीं बिघड़ना ।

तुझसे जो भूल हो गयी हो उसका निरिक्षण करना, उसे सुधार लेना । दूसरों की गलती याद करके उसका दिल मत खराब करना । तू अब ऐसा दिव्य चिंतन करना की भूल का चिंतन तुच्छ हो जाय । तू गणपतिजी का स्मरण से अपना जीवन संयमी बनाना । भगवान श्रीराम, भगवान श्रीकृष्ण, भगवान गणपति, मीराबाई, शबरी आदि ने तीनों अवस्थाओं को पार कर अपनी चौथी अवस्था-निज स्वरूप में प्रवेश किया और आज के दिन वे तुम्हे ‘चतुर्थी ’की याद दिला रहे है कि ‘हे साधक ! तू अपनी चौथी अवस्था में जागने के लिए आया है । चौथ का चाँद की तरह कलंक लगाये ऐसे संसार के व्यवहार में तू नहीं भटकना । आज की संध्या के चन्द्र को तू निहारना नहीं ।

आज की चतुर्थी तुम्हें यह संदेश देती है कि संसार में थोड़ा प्रकाश तो दिखता है परंतु इसमें चन्द्रमा की नाई कलंक है । यदि तुम इस प्रकाश में बह गये, बाहर के व्यव्हार में बह गये तो तुम्हे कलंक लग जायेगा । धन-पद-प्रतिष्ठा के बल से तुम अपने को बड़ा बनाने जाओंगे तो तुम्हे कलंक लगेगा, परंतु यदि तुम चौथी अवस्था में पहुँच गये तो बड़ा पार हो जायेगा ।

वे चतुर्थी के देव संतों का हर कार्य करने में तत्पर रहते है । वेदव्यासजी महाराज लोकमांगल्य हेतु ध्यानस्थ ‘महाभारत’ की रचना कर रहे थे और गणपतिजी लगातार उनके बोले श्लोक लिख रहे थे । गणपतिजी की  कलम  कभी रुकी नहीं और सहयोग करने का कर्तुत्व-अकर्तुत्व में जरा-भी नहीं आया क्योंकि कर्तुत्व-अकर्तुत्व जीव में होता है । जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति ये अवस्थाएँ जीव की है और तुरीयावस्था गणपति-तत्व की है । भगवान गणपति अपने प्यारों को तुरीय में पहुँचाना चाहते हैं । इसलिए उन्होंने चतुर्थी तिथि पसंद की है ।

गणेश-विसर्जन का आत्मोन्नतिकारक संदेश

गणेश विसर्जन कार्यक्रम आपको अहंकार के विसर्जन, आकृति में सत्यता के विसर्जन, राग-द्वेष के विसर्जन का संदेश देता है । बीते हुए का शोक न करो । जो चला गया वह चला गया । जो चीज-वस्तु बदलती है उसका शोक न करो । आनेवाले का भय न करो । वर्तमान में अहंकार की, नासमझी की दलदल में न गिरो ।

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