संस्कार क्या हैं ?

संस्कार शब्द सुनने में बड़ा अच्छा लगता है । हम संस्कारों के विषय में बहुत बातें भी करते हैं लेकिन क्या कभी हमने यह सोचा है कि आखिर सही मायने में संस्कार क्या हैं ? 

महर्षि चरक ने कहा है कि – पहले से विद्यमान दुर्गुणों को हटाकर उनकी जगह सद्गुणों का आधान कर देने का नाम संस्कार है । 

संस्कार भले ही एक छोटा सा शब्द है लेकिन जीवन में उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि फूल के लिए सुगंध । जिस प्रकार सुगंधहीन पुष्प कोई पसंद नहीं करता उसी प्रकार संस्कारहीन मनुष्य भी किसीको प्रिय नहीं होता । संस्कार ही हमारे भारतीय संस्कृति का आधारस्तंभ है । यही कारण है कि हमारी भारतीय संस्कृति में संस्कारों को इतना महत्व दिया गया है ।

संस्कारों का आरंभ कहाँ से ?

संस्कारों की शुरुआत होती है माँ के गर्भ से । गर्भावस्था ही वह काल है जब शिशु के हृदय में संस्कारों के बीज पड़ते हैं । किसी भी महल की नींव जितनी मजबूत होती है उतनी ही मजबूत महल बनता है । शिशु को महान बनाने के लिए सबसे मजबूत नींव है माता का गर्भ । कच्ची मिट्टी से बने हुए बर्तन पर जो चित्र खींचा जाता है वह दृढ़ता से अंकित हो जाता है । इसी तरह मनुष्य में बचपन या गर्भ में स्थित रहने पर जो संस्कार डाला जाता है, वह दृढ़ हो जाता है । संस्कारों से ही बच्चे सद्गुणी, उच्च चरित्रवान, सदाचारी, सत्कर्मपरायण, आदर्शपूर्ण, साहसी एवं संयमी बनेंगे । 

गर्भसंस्कार

संस्कारों की शुरुआत होती है माँ के गर्भ से । गर्भावस्था ही वह काल है जब शिशु के हृदय में संस्कारों के बीज पड़ते हैं । किसी भी महल की नींव जितनी मजबूत होती है उतनी ही मजबूत महल बनता है । शिशु को महान बनाने के लिए सबसे मजबूत नींव है माता का गर्भ । कच्ची मिट्टी से बने हुए बर्तन पर जो चित्र खींचा जाता है वह दृढ़ता से अंकित हो जाता है । इसी तरह मनुष्य में बचपन या गर्भ में स्थित रहने पर जो संस्कार डाला जाता है, वह दृढ़ हो जाता है । 

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गर्भ संस्कार केन्द्र में सम्पर्क करें -
गर्भस्थ शिशु को सुसंस्कारी बनाने तथा उसके उचित पालन-पोषण की जानकारी देने हेतु पूज्य संत श्री आशारामजी बापू द्वारा प्रेरित महिला उत्थान मंडल द्वारा लोकहितार्थ दिव्य शिशु संस्कार अभियान प्रारंभ किया गया है ।