वर्षा ऋतु में स्वास्थ्य की देखभाल

🌧️ वर्षा ऋतु में गर्भवती महिलाओं के लिए विशेष स्वास्थ्य-निर्देश

(गर्भस्थ शिशु की सुरक्षा व माता की शक्ति हेतु आयुर्वेदिक जीवनचर्या)

वर्षा ऋतु में मंदाग्नि, वायुप्रकोप, पित्त का संचय आदि दोषों की अधिकता होती है। इस ऋतु में यदि भोजन आवश्यकता से थोड़ा कम लिया जाए तो आम (कच्चा रस) तथा वायु नहीं बनेंगे और गर्भवती का पाचन भी ठीक रहेगा। भूल से भी थोड़ा अधिक खा लिया जाए तो ये दोष कुपित होकर बीमारी का रूप ले सकते हैं, जिससे माँ और गर्भस्थ शिशु दोनों पर असर पड़ सकता है।

🚫 क्या न खाएं:

  1. बाजारू खाद्य पदार्थ, मावा, मिठाइयाँ – गर्भवती स्त्रियाँ वर्षा ऋतु में बासी, डिब्बा-बंद, भारी और गर्म चीज़ों से दूर रहें। इससे बुखार व पाचन संबंधित विकार हो सकते हैं।

  2. अशुद्ध पानी पीने से पेचिश और कई बीमारियाँ हो सकती हैं, जो गर्भस्थ शिशु के लिए हानिकारक हैं। यदि दस्त हो जाएँ, तो देशी गाय के घी वाली खिचड़ी अत्यंत लाभकारी है।

  3. खट्टी, तीखी चीज़ें, जैसे अचार, चाट आदि से बचें – ये पित्त को बढ़ाते हैं और गर्भ में जलन, घबराहट व बेचैनी उत्पन्न कर सकते हैं।

  4. खुले बदन या भीगे कपड़ों में रहना – यह गर्भवती स्त्रियों के लिए विशेष रूप से हानिकारक है। इससे भविष्य में जोड़ों का दर्द, सिरदर्द, वायुजन्य रोगों की संभावना बढ़ती है।

🌿 गर्भावस्था में विशेष सावधानियाँ:

  • बारिश में सिर पर छाता या दुपट्टा अवश्य रखें।

  • कभी भी बारिश में भीगना या सिर पर पानी गिराना उचित नहीं — यह आने वाले वर्षों में सिरदर्द या हड्डियों की समस्याओं का कारण बन सकता है।

  • दिन में नहीं सोएं, विशेषकर गर्भवती महिलाएँ — इससे पाचन शक्ति कमजोर होती है।

  • रात को खुले में या छत पर नहीं सोएँ।


🧘‍♀️ प्राकृतिक उपाय व घरेलू नुस्खे (गर्भवती के लिए सुरक्षित विकल्प):

  • दस्त, अपच, अम्लपित्त या पेट में गैस होने पर:
    50 ग्राम सौंफ + 50 ग्राम जीरा + 20 ग्राम काला नमक मिलाकर चूर्ण बनाएं।
    आवश्यकता होने पर 5 ग्राम गुनगुने पानी से लें।
    (मात्रा लेने से पूर्व वैद्य से परामर्श करें।)

  • अनुलोम-विलोम प्राणायाम – गर्भवती स्त्री हल्के रूप में कर सकती हैं, श्वास को जोर से खींचना-रोकना नहीं चाहिए। यह वात-पित्त दोषों को शांत करता है, मानसिक तनाव कम करता है और गर्भस्थ शिशु पर भी सकारात्मक प्रभाव डालता है।


🥣 भोजन में क्या लें:

  • हलका, सुपाच्य, गरम भोजन करें — जैसे मूँग की दाल की खिचड़ी, उबली सब्जियाँ, सूप आदि।

  • भोजन में अदरक, हींग, पुदीना, अजवाइन, नींबू, सेंधा नमक का प्रयोग लाभदायक है।

  • हरड़-सौंठ का मिश्रण थोड़ा सा गुड़ के साथ लेने से भी जठराग्नि प्रदीप्त रहती है।
    (मात्रा सीमित रखें और वैद्य से अनुमति लें)


🌸 गर्भवती माताओं के लिए वर्षा ऋतु का मूलमंत्र:

“जठराग्नि (पाचन शक्ति) को प्रदीप्त रखना ही गर्भस्थ शिशु की शारीरिक व मानसिक सुरक्षा का आधार है।”

गर्भ में पल रहा शिशु आपकी दिनचर्या, आपकी पाचनशक्ति, मानसिक स्थिति और व्यवहार से ही संस्कार ग्रहण करता है।


🦠 संक्रमणों से बचाव:

  • पानी को हमेशा उबालकर पिएं या उसमें फिटकरी घुमा लें।

  • गेंदे के फूल का गमला कमरे में रखें – इसकी गंध से मच्छर दूर रहते हैं।

  • मच्छरदानी का प्रयोग अवश्य करें।


🛑 क्या न करें (गर्भवती महिलाएँ विशेष ध्यान रखें):

  • गीले कपड़ों में देर तक न रहें

  • ज़्यादा देर भीगने या नदी-सरोवर में स्नान से बचें

  • ज़ोरदार व्यायाम न करें

  • भावनात्मक अस्थिरता और डर से दूर रहें

  • भारी, तली-भुनी चीज़ों और अत्यधिक मीठा खाने से बचें


🌼 गर्भवती माँ के लिए प्रेरणा:

❝ जो गर्भवती स्त्री वर्षा ऋतु में अपनी दिनचर्या, आहार और विचारों को शुद्ध रखती है,
वह अपने शिशु को भी शुद्ध, तेजस्वी, रोगप्रतिरोधक और सुखदायक जीवन की ओर अग्रसर करती है। ❞

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गर्भ संस्कार केन्द्र में सम्पर्क करें -
गर्भस्थ शिशु को सुसंस्कारी बनाने तथा उसके उचित पालन-पोषण की जानकारी देने हेतु पूज्य संत श्री आशारामजी बापू द्वारा प्रेरित महिला उत्थान मंडल द्वारा लोकहितार्थ दिव्य शिशु संस्कार अभियान प्रारंभ किया गया है ।