चतुर्मास प्रारंभ
चतुर्मास प्रारंभ
(6 जुलाई से 2 नवंबर तक)
चतुर्मास में किया हुआ व्रत, जप, संयम, दान, स्नान बहुत अधिक फल देता है। इन दिनों में स्त्री सहवास करने से मानव का पतन होता है। यही कारण है कि चतुर्मास में शादी-विवाह आदि सकाम कर्म नहीं किये जाते हैं।
इन चार महीनों में जो पति-पत्नी, ब्रह्मचर्य पालते हैं और धरती पर सोते हैं, उनकी तपस्या और उनका आध्यात्मिक विकास तोल-मोल के बाहर हो जाता है। पति-पत्नी होते हुए भी संयम रखें। किसी का अहित या बुरा सोचे नहीं, करे नहीं तथा ‘मैं भगवान का हूँ, भगवान मेरे हैं और सर्वत्र हैं’ ऐसा नजरिया
बना ले आपको भगवान की शांति, प्रेरणा और ज्ञान प्राप्त होगा । यदि आप गर्भाधान के लिए पूर्व तैयारी कर रहे हैं तो ये चार महीने आपके लिए वरदानस्वरूप हैं, इनका पूरा-पूरा लाभ लें जिससे आपके पाप-ताप मिट जायेंगे आप शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक व आध्यात्मिक रूप से परिपक्व होकर एक दिव्य संतान को धरती पर लाने के लिए तैयरा हो सकेंगे ।
चतुर्मास व्रत रखने वाले व्यक्ति को एक हजार अश्वमेध यज्ञ करने का फल सहज में ही मिलता है। गर्भाधान की तैयारी कर रहे दम्पति व्रत-उपवास आदि रखें परन्तु गर्भवती उपवास करने में सावधानी रखें । मौन,भगवन्नाम जप, शुभकर्म आदि का आश्रय लेकर हीन कर्म छोड़े और भगवान की स्मृति बढ़ाये । चतुर्मास में धरती पर चटाई अथवा कम्बल आदि पर सोने का विधान है परन्तु गर्भवती के लिए यह नियम अनिवार्य नहीं है ।
‘नमो नारायणाय’ का जप बढ़ा दे तो उसके चित्त में भगवान आ विराजते हैं।
चतुर्मास में क्या त्यागने से क्या फल ?
- गुड़ के त्याग से मधुरता, तेल(लगाना, मालिश आदि) के त्याग से संतान दीर्घजीवी तथा सुगंधित तेल के त्याग से सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
- असत्य भाषण, क्रोध, शहद और मैथुन के त्याग से अश्वमेध यज्ञ का फल होता है। यह उत्तम फल, उत्तम गति देने में सक्षम है।
- चतुर्मास में परनिन्दा का विशेष रूप से त्याग करें।
- परनिन्दा महापापं परनिन्दा महाभयम्। परनिन्दा महद्दुःखं न तस्याः पातकं परम्।। परनिन्दा से बड़ा कोई पाप नहीं है। और पाप हो जाने पर प्रायश्चित्त करने से माफ हो जाता है लेकिन परनिन्दा तो जानबूझकर की है, उसका कोई प्रायश्चित्त नहीं है।
विशेष लाभदायी प्रयोग –
- आँवला, तिल व बिल्वपत्र आदि से स्नान करे तो वायुदोष और पापदोष दूर होता है।
- वायु की तकलीफ हो तो बेल-पत्ते को धोकर एक काली मिर्च के साथ चबा के खा लें, ऊपर से थोड़ा पानी पी लें। यह बड़ा स्फूर्तिदायक भी रहेगा।
- पलाश के पत्तों में भोजन करने से ब्रह्मभाव की प्राप्ति होती है।
- इन दिनों में कम भोजन करना चाहिए।
- जल में आँवला मिलाकर स्नान करने से पुरुष तेजवान होता है और नित्य महान पुण्य प्राप्त होता है।
- एकादशी का व्रत चतुर्मास में जरूर करना चाहिए।
बुद्धिशक्ति की वृद्धि हेतु
- चतुर्मास में विष्णु जी के सामने खड़े होकर ‘पुरुष सूक्त’ का पाठ करने वाले की बुद्धि बढ़ती है । अतः गर्भाधान की तैयारी कर रहे दंपति एवं गर्भवती इस प्रयोग को अवश्य करें । इस प्रयोग से गर्भस्थ शिशु की बुद्धिशक्ति में विलक्ष्ण परिणाम होगा ।
- यदि किसी बालक की बुद्धि कमजोर हो तो ‘पुरुष सूक्त’ का पाठ भगवान नारायण के समक्ष करवाओ, बुद्धि बढ़ेगी। भ्रूमध्य में सूर्यनारायण का ध्यान करवाओ, बुद्धि बढ़ेगी।
स्वास्थ्य रक्षक प्रयोग
बारिश के दिनों में धरती पर सूर्य की किरणें कम पड़ती हैं इसलिए जठराग्नि मंद पड़ जाती है और वायु (गैस) की तकलीफ ज्यादा होती है। अतः 50 ग्राम जीरा व 50 ग्राम सौंफ सेंक लें। उसमें 20-25 काला नमक तथा थोड़ी इलायची मिला के पीसकर रख लें। वायु, अम्लपित्त (एसिडिटी), अजीर्ण, पेटदर्द, भूख की कमी हो तो 1 चम्मच मिश्रण पानी से सेवन करें। इसमें थोड़ी सोंठ मिला सकते हैं।
दीर्घजीवी व यशस्वी होने हेतु –
भगवान ब्रह्मा जी कहते हैं-
सद्धर्मः सत्कथा चैव सत्सेवा दर्शनं सताम् ।
विष्णुपूजा रतिर्दाने चातुर्मास्यसुदुर्लभा ।।
‘सद्धर्म (सत्कर्म), सत्कथा, सत्पुरुषों की सेवा, संतों का दर्शन-सत्संग, भगवान का पूजन और दान में अनुराग – ये सब बातें चौमासे में दुर्लभ बतायी गयी हैं।
ये सद्गुण तो मनुष्य को सारे इष्ट दे देते हैं, सारे दुःखों की कुंजियाँ दे देते हैं। इनसे मनुष्य दीर्घजीवी, यशस्वी होता है। जप, सेवा सत्कर्म है, भूखे को अन्नदान करना सत्कर्म है और खुद अन्न का त्याग करके शास्त्र में बताये अनुसार उपवास करना यह तो परम सत्कर्म है।
सुबह उठकर संकल्प करें
देवशयनी एकादशी को सुबह उठकर संकल्प करना चाहिए कि ‘यह चतुर्मास के आरंभ वाली एकादशी है। पापों का नाश करने वाली यह एकादशी भगवान नारायण को प्रिय है। मैं भगवान नारायण, परमेश्वर को प्रणाम करता हूँ। कई नाम हैं प्यारे प्रभु के। आज के दिन मैं मौन रहूँगा, व्रत रखूँगा। भगवान क्षीर-सागर में कार्तिक शुक्ल एकादशी तक मौन, समाधिस्थ रहेंगे तो इन चार महीनों तक मैं धरती पर सोऊँगा और ब्रह्मचर्य का पालन करूँगा।’
गर्भवती भी अपने गर्भस्थ शिशु को संस्कारित व महान बनाने के लिए बताए गए नियमों को पालन करने का संकल्प करे व शिशु के कल्याण हेतु ईश्वर से प्रार्थना करे ।
श्रावण मास, चतुर्मास शुरु हो रहा है संकल्प करो कि ‘3,6 या 12 महीने का ब्रह्मचर्य व्रत रखेंगे।’ भीष्म पितामह, लीलाशाह जी बापू, अर्यमा देव को याद करना, वे आपको विकारों से बचने में मदद करेंगे। ॐ अर्यमायै नमः। इस मंत्र से, प्राणायाम से ब्रह्मचर्य की रक्षा होती है।
जैसे संसार-व्यवहार से वीर्य नाश होता है, वैसे बोलने से भी वीर्य का सूक्ष्म अंश खर्च होता है, अतः संकल्प करें कि ‘हम मौन रहेंगे, कम बोलेंगे, सारगर्भित बोलेंगे।’ रूपये पैसों की आवश्यकता नहीं है, इतना भिक्षा में दे दो कि ‘अब इस चतुर्मास में हे व्यासजी ! हे गुरुदेव ! हे महापुरुषो ! आपकी प्रसादी पाने के लिए इस विकार का, इस गंदी आदत का हम त्याग करेंगे…..।’ मैं ईश्वर की प्रीति के निमित्त व्रत रखता था, जप करता था और ईश्वर की प्रीति के निमित्त ही सेवाकार्य करता था।
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