बीज शुद्धि
हम कर्ण, नेत्र, नासिका, जिह्वा और त्वचा, इन पाँच के द्वारा शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध ये पाँच विषय ग्रहण करते हैं । उन सबका प्रभाव हमारे मन पर पड़कर रक्त आदि द्वारा रज एवं वीर्य तक पहुँच जाता है । जैसा रज-वीर्य होता है वैसी संतानें उत्पन्न होती हैं । अतः उत्तम संतान के इच्छुकों को अपने रजवीर्य की सात्त्विकता लिये, उसकी सुरक्षा के लिये अपने स्थूल एवं सूक्ष्म आहार की ओर विशेष ध्यान देना आवश्यक है ।
मनुष्य नेत्र द्वारा जिस प्रकार का सात्त्विक, राजस या तामस भाव का वर्धक रूप आँखों से देखता है उसंका प्रथम प्रभाव नेत्रों के द्वारा में मन पर पड़कर रक्त आदि द्वार वीर्य तक पहुँच जाता है । जैसे कामवर्धक रंग-बिरंगी चमकीली, भड़कीली पोशाक युक्त स्त्री-पुरुषों के रूपों को, इन साधनों से संपन्न आलिंगन, चुम्बन, मैथुन आदिवाले चलचित्रों को तथा पोस्टरों को देखकर मन में राजस कामभाव का उदय होकर वीर्य उत्तेजित हो जाता है । इसी प्रकार तामस हिंसा आदि के चित्रों को और सात्त्विक दया, परोपकार आदि से युक्त चित्रों को देखकर भी उनका प्रभाव प्रथम मन में तथा अंत में वीर्य तक पड़ता है । अतः अपने को तथा भावी संतान को सात्त्विक बनाने के लिये सात्त्विक रूपों को ही देखना चाहिये ।
चबाकर, चूसकर तथा पीकर जिन पदार्थों का रसना इन्द्रिय से ग्रहण करते हैं उसका प्रभाव रक्त और मांस में और अन्त में वीर्य पर पड़ता है, इसमें तो किसी तरह का विवाद ही नहीं है । यही कारण है कि वीर्य की निर्बलता के कारण जिनको सन्तान नहीं होती उन्हें डॉक्टर तथा वैद्य दोनों ही वीर्य को बलवान बनानेवाले रसादिक पदार्थ खिलाते हैं ।
एक बार पटना की अदालत में एक मुकदमा आया । स्त्री कहती थी कि यह मेरे पति का पुत्र है । वे गर्भाधान करने के एक महीने बाद मर गये । अतः सम्पत्ति का अधिकारी उनका पुत्र ही है । उसके देवर कहते थे कि इसे हमारे भाई से गर्भ नहीं रहा, यह स्त्री बदचलन है अतः सम्पत्ति के अधिकारी हम हैं । इस पर स्त्री ने कहा कि बहुत दिनों तक सन्तान न होने पर डॉक्टरों ने अमुक जाति की मछली खाने के लिए मेरे पति से कहा था । मैंने उन्हें बहुत दिनों तक उस मछली का मांस खिलाया था । परीक्षण कराके देखा जाय, इस शिशु के शरीर में उस मछली के परमाणु अवश्य निकलेंगे । न्यायाधीश ने परीक्षण कराया, शिशु में उस मछली के परमाणु मिले, अतः शिशु को उन्हीं का पुत्र है ऐसा कहकर उसीको सम्पत्ति का अधिकारी घोषित किया ।
इससे यह स्पष्ट होता है कि हम रसना इन्द्रिय से जो ग्रहण करते हैं उसका गहरा प्रभाव रज-वीर्य पर और उसके द्वारा होनेवाली सन्तान में पड़ता है ।
आज के वैज्ञानिक युग में ट्रांजिस्टर, रेडियो तथा लाउडस्पीकरों के ९५ प्रतिशत कामोत्तेजक, गन्दे, अश्लील गीतों के शब्द दूर-दूर एकान्त स्थानों तक अति स्पष्ट ध्वनि में प्रसारित होते रहते हैं । श्रवण की इच्छा न होने पर भी वे शब्द बलात् कानों में प्रविष्ट होकर एकान्तवासी सात्त्विक साधकों के प्रथम मन में कामुकता का संचार करके बाद में वीर्य को भी उत्तेजित कर देते हैं । ऐसी दशा में ये शब्द शहर में रहनेवाले अन्य सहायक सामग्री से सम्पन्न कामभाववाले लोगों के मनों का मंथन करके वीर्य को उत्तेजित कर देते हों, इसमें संदेह नहीं । बार-बार वीर्य के उत्तेजित होने से वीर्य कमजोर हो जाता है । अतः इन सभी से अपने को बचाकर शास्त्रीय संगीत, भगवन्नाम संकीर्तन, सत्संग व सात्त्विक भजनों का ही श्रवण करना चाहिये ।
रजस्वला स्त्री यदि दिन में सोये और कदाचित् उसे उसी ऋतुकाल में गर्भ रह जाय तो भावी शिशु अति सोनेवाला उत्पन्न होगा | काजल लगाने से अँधा, रोने से विकृत दृष्टि, स्नान और अनुलेपन से शरीर पीड़ावाला, तेल लगाने से कुष्ठी, नख काटने से कुनखी, दौड़ने से चंचल, हँसने के काले दाँत, काले ओष्ठ तथा विकृत जिव्हा और तालुवाला, बहुत बोलने से बकवादी, बहुत सुनने से बहरा, कंघी से बाल खींचने पर गंजा, अधिक वायु–सेवन से तथा परिश्रम करने से पागल पुत्र उत्पन्न होता है | इसलिए रजस्वला स्त्री इन कार्यो को न करे | इन शास्त्रीय नियमों का पालन न करने से ही अनिच्छित सन्तानें होती हैं | अतः इच्छित व तेजस्वी सन्तान चाहनेवालों को गर्भाधान संस्कार के नियमों का पालन अवश्य करना चाहिए
आँवला रस
आँवला रस वार्धक्य निवृत्ति व यौवन सुरक्षा करने वाला तथा पित्त व वायु द्वारा होने वाली 112 बीमारियों को मार भगानेवाला सर्वश्रेष्ठ रसायन है । इसके रस से शरीर में शीघ्र शक्ति, स्फूर्ति, शीतलता व ताजगी का संचार होता है । आँवला रस रक्त व शुक्र धातु की वृद्धि करता है ।
आँवले के रस में दो ग्राम अश्वगंधा चूर्ण व मिश्री मिलाकर लेने से शरीर पुष्टि, वीर्य वृद्धि एवं वंधत्व में लाभ होता है । स्त्री-पुरुषों के शरीर में रज-वीर्य की कमी नहीं रहती और संतान प्राप्ति की ऊर्जा बनती है ।