मनः शुद्धि
मन: शुद्धि के लिए सर्वप्रथम अपने विचारों पर सतत् निगरानी रखनी चाहिए | क्योंकि मन में जैसे विचार चलते हैं उनसे ही हमारा सारा व्यवहार प्रभावित होता है इसीलिए टी.वी., सीरियल्स व चलचित्रों से सावधान रहना चाहिए । अश्लील गाने आदि सुनने में रूचि न रखें तो अच्छा है ।
सिनेमा देखने से मन पर बहुत खराब प्रभाव पड़ता है उससे हममें कई प्रकार के स्थूल एवं सूक्ष्म दुर्गुण आ जाते हैं । सिनेमा देखने से फैशन एवं श्रंगार के साथ चरित्रहीनता की बुराइयाँ फैलती हैं ।
आरंभ में तो इनके दुष्प्रभाव का आभास हमें नहीं होता । लेकिन इनके द्वारा हमारे मन पर बुरा प्रभाव पड़ता है । अशलील चलचित्रों को तथा तथा पोस्टरों को देखकर मन में राजस कामभाव का उदय हो जाता है । इसी प्रकार हिंसा आदि के तामसिक दृश्यों को और दया, परोपकार आदि से युक्त सात्विक दृश्यों को देखकर भी उनका प्रभाव प्रथम गर्भिणी के मन पर तथा अंत में गर्भस्थ शिशु पर पड़ता है । अतः अपने को तथा बालक को सात्विक गुणों से युक्त बनाने के लिए सात्विक रूपों को ही देखना चाहिए व तदनुसार चिंतन करना चाहिए ।
आपके अंदर यदि चंचलता तथा विकृत विचारों का बाहुल्य होगा तो उन विचारों से आपकी भावी संतान भी चंचल, कामुक व आपराधिक प्रवृत्ति की हो सकती है ।
अत: मन: शुद्धि के लिए सत्संग-श्रवण, सत्शास्त्रों का अध्ययन, संत-दर्शन, देव-दर्शन, भगवद्-उपासना पर विशेष ध्यान दें तथा मन को सद्विचारों से ओत-प्रोत रखें ।
निंदा, चुगली न स्वयं करना चाहिए न ही सुनना चाहिए क्योंकि अशुद्ध वचन सुनने से मन मलिन हो जाता है ।
भगवन्नाम का अधिकाधिक मानसिक जप करें । इससे आपकी संतान दैवी सद्गुणों से युक्त होगी । कहा भी गया है, जैसी भूमि वैसी उपज ।