श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की बधाइयाँ !!!
परात्पर ब्रह्म, निर्गुण-निराकार, पूर्णकाम, सर्वव्यापक, सर्वेश्वर, परमेश्वर, देवेश्वर, विश्वेश्वर…. क्या-क्या कहें… वही निराकार ब्रह्म नन्हा-मुन्ना होकर मानवीय लीला करते हुए मानवीय आनंद, माधुर्य, चेतना को ब्रह्मरस से सम्पन्न करने के लिए अवतरित हुआ जिस दिन, वह है जन्माष्टमी का दिन ।
जन्माष्टमी का दिन एक उत्सव तो है ही, साथ ही महान व्रत और पावन दिन भी है । जन्माष्टमी के दिन किया हुआ जप अनंत गुना फल देता है । उसमें भी रात्रि जागरण करके जप-ध्यान करने का विशेष महत्त्व है । जिसे “क्लीं कृष्णाय नमः” मंत्र का थोड़ा जप करने को भी मिल जाय, उसके त्रिताप (आधि, व्याधि, उपाधि) नष्ट होने में देर नहीं लगती ।’ ब्रह्माजी सरस्वती को और भगवान श्रीकृष्ण उद्धवजी को कहते हैं कि जो जन्माष्टमी का व्रत रखता है, उसे करोड़ों एकादशी व्रत करने का पुण्य प्राप्त होता है ।
‘भविष्य पुराण’ के अनुसार जन्माष्टमी का व्रत संसार में सुख-शांति और प्राणीवर्ग को रोग-शोक से रहित जीवन देनेवाला, अकाल मृत्यु को टालनेवाला तथा दुर्भाग्य और कलह को दूर भगानेवाला होता है ।
‘ब्रह्मवैवर्त पुराण’ के अनुसार धर्मराज सावित्री से कहते हैं: ‘भारतवर्ष में रहनेवाला जो प्राणी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत करता है, वो १०० जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है ।”
‘स्कंद पुराण’ में आता है कि जो जन्माष्टमी व्रत करते हैं या करवाते हैं, उनके समीप सदा लक्ष्मी स्थिर रहती है । व्रत करनेवाले के सारे कार्य सिद्ध होते हैं ।
जन्माष्टमी के दिन यह करें, यह न करें ...
दिव्य, सुंदर, स्वस्थ, संस्कारी एवं तेजस्वी संतान चाहनेवाले जन्माष्टमी के दिन…
यह करें
जन्माष्टमी के दिन पति-पत्नी यथाशक्ति निर्जला या फलाहार पर रहकर व्रत करें (सगर्भा बहनें निर्जला उपवास न करें) । रात्रि जागकर जप-ध्यान- कीर्तन-भजन करें । सत्संग श्रवण, मनन, चिंतन, निदिध्यासन करते-करते स्व में विश्रांति पाने का अभ्यास करें ।
- जन्माष्टमी के व्रत से नि:संतान को मनचाही संतान की प्राप्ति होती है ।
- जो जन्माष्टमी का व्रत करते हैं, उनके घर में गर्भपात नहीं होता ।
- जन्माष्टमी का व्रत माँ के गर्भ में शिशु के स्वास्थ्य की रक्षा करता है ।
- इस व्रत से बालक का जन्म ठीक समय पर होता है ।
- जन्माष्टमी के दिन “ओम नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का अर्थ सहित जप करना चाहिए । ‘ओम’ माने अखिल ब्रह्मांडों में व्याप रहे, ‘नमो’ माने नमन करते हैं, ‘भगवते’ माने भगवान कृष्ण, राम, वामन, नृसिंह आदि कई भगवान होने के बाद भी तुम सबमें वास करनेवाले ‘वासुदेव’ अभी भी वैसे के वैसे हो- इस प्रकार परम प्रेमास्पद प्रभु का स्मरण-चिंतन करते हुए उनके प्रेम में डूब जाना चाहिए और इस जन्माष्टमी का लाभ लेना चाहिए । इससे गर्भवती माता व गर्भस्थ शिशु के हृदय में भगवत्भाव का विकास होता है ।
यह न करें :
- ‘जन्माष्टमी के दिन अगर कोई संसार-व्यवहार करता है तो विकलांग संतान होगी अथवा तो जानलेवा बीमारी पकड़ लेगी ।
- जन्माष्टमी व्रत की महिमा जानकर भी जो जन्माष्टमी व्रत नहीं करते, वे जंगल में सर्प और व्याघ्र होते हैं ।
विशेष ध्यान दें :
नि:संतान एवं दिव्य संतान के चाहक दंपत्ति हो सके तो निर्जला उपवास करें । अगर निर्जला न कर सकें तो फलाहार पर उपवास करें ।
गर्भिणी मातायें बिना कुछ खाये उपवास न करें । वे दूध, फल, पानक अथवा राजगीरे के आटे की रोटी, सिंघाड़े का हलवा या खीर, लौकी, कद्दू आदि की सब्जी, छाछ, खजूर, मखाने इत्यादि का सेवन कर सकती है । मोरधन (सामा के चावल), साबूदाना, कुट्टू, आलू, शकरकंद नहीं खायें ।
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