कार्तिक मास क्यों महत्वपूर्ण ?
‘स्कन्द पुराण’ में आया हैः न कार्तिकसमो मासो न कृतेन समं युगम्।। न वेदसदृशं शास्त्रं न तीर्थं गंगया समम्।…. ‘कार्तिक मास के समान कोई मास नहीं, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं, वेदों के समान कोई शास्त्र नहीं और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है।’ (वैष्णव खंड, का. मा. 1.36.37)
कार्तिक मास में पालनीय नियम
1. दीपदान :
कार्तिक मास में दीपदान का जो विधान है, वह गर्भवती स्त्री के लिए भीतर के अंधकार को मिटाने का प्रतीक है। जब वह हर संध्या दीप जलाती है, तो यह केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि उसके भीतर के विचारों में उजाला भरने की प्रक्रिया है। गर्भ में पल रहा शिशु उस शुद्ध प्रकाश की ऊर्जा को अनुभव करता है। गर्भ में प्रकाशित यह दीपभाव शिशु के मस्तिष्क और चित्त को शांत, कोमल और तेजस्वी बनाता है।
2. तुलसी सेवा :
तुलसी को जल चढ़ाना केवल धार्मिक नहीं, वैज्ञानिक रूप से भी लाभकारी है। तुलसी वायु को शुद्ध करती है, वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा फैलाती है। जब गर्भवती माता तुलसी के पास बैठकर उसे जल चढ़ाती है, तो वह गहरी साँसों के साथ ऑक्सीजन युक्त, शुद्ध प्राणवायु ग्रहण करती है। यह श्वसन क्रिया गर्भ में पल रहे शिशु के मस्तिष्क के विकास में सहायता करती है।
3. ब्रह्मचर्य और संयम का पालन:
शास्त्र कहते हैं कि कार्तिक मास में ब्रह्मचर्य का पालन करें। गर्भवती स्त्री के लिए इसका अर्थ केवल शारीरिक संयम नहीं, बल्कि विचारों, बोल और आहार में संयम है। क्रोध, लोभ, आलस्य या असंयम से गर्भस्थ शिशु के संस्कार प्रभावित होते हैं। इस महीने में यदि माता स्वयं को शांत, सात्त्विक और अनुशासित रखे — तो गर्भस्थ शिशु में संयम, धैर्य और विवेक के संस्कार सहज रूप से विकसित होते हैं।
4. साधु-संतों का सत्संग और सकारात्मक श्रवण:
कार्तिक मास में साधु-संतों के चरित्र सुनना, भगवान की कथाएँ, गीता पाठ या भजन — यह सब गर्भसंस्कार के लिए स्वर्ण समान हैं। जो माता इन दिनों ऐसी सत्संगीय बातें सुनती है, उसके गर्भस्थ शिशु के चित्त में भक्ति, विनम्रता और कृतज्ञता के संस्कार सहज रूप से बसते हैं।
5. अंतिम तीन दिन — विशेष ध्यान:
यदि संपूर्ण कार्तिक मास के नियम न निभा पाएँ, तो अंतिम तीन दिनों में सूर्योदय से पहले स्नान, श्रीविष्णुसहस्रनाम और गीता पाठ अवश्य करें। यह मानसिक और आध्यात्मिक डिटॉक्सिफिकेशन है — यानी मन, विचार और भावनाओं का शुद्धिकरण। यह गर्भस्थ शिशु को संतुलित, शांत और धर्मनिष्ठ बनने की ऊर्जा देता है।
कार्तिक मास के नियम सभी के लिए पालनीय है । पूरे कार्तिक मास में प्रातःकाल का स्नान पाप शमन करने वाला तथा आरोग्य व प्रभुप्रीति को बढ़ाने वाला है और इससे सुख-दुःख, अनुकूलता-प्रतिकूलता में सम रहने के सदगुण विकसित होते हैं। आँवले के फल व तुलसी-दल मिश्रित जल से स्नान करें तो गंगास्नान के समान पुण्यलाभ होता है। भगवान नारायण देवउठी (प्रबोधिनी) एकादशी को अपनी योगनिद्रा से उठेंगे, उस दिन कपूर से आरती करने वाले को अकाल मृत्यु से सुरक्षित होने का अवसर मिलता है। (इस दिन गुरु का पूजन करने से भगवान प्रसन्न होते हैं। – पद्म पुराण)
सभी प्रकार दोषों के शमन और भगवदभक्ति की प्राप्ति के लिए कार्तिक के अंतिम तीन दिन प्रातःस्नान, श्रीविष्णुसहस्रनाम’ और ‘गीता’ पाठ विशेष लाभकारी है।
यह महीना एक गर्भवती माँ के लिए अंतर्यात्रा का काल है। जब आपका हृदय भक्ति से भर जाता है — तब गर्भ में पल रहा शिशु उसी प्रकाश, उसी शांति, और उसी दिव्यता को धारण करता है।
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