क्या है आरोग्यता का आधार ?

      हमारे शारीरिक व मानसिक आरोग्य का आधार हमारी जीवनशक्ति है यानि Vitality । वह ‘प्राण-शक्ति’ भी कहलाती है । हमारे जीवन जीने के ढंग के मुताबिक हमारी जीवन-शक्ति का ह्रास या विकास होता है ।

      दिव्य संतान की चाहना रखनेवाले नवविवाहित दंपत्तियों, अपने गर्भकोष में नवनिर्माण कर सही सगर्भा माताओं एवं इस वसुंधरा पर नन्ही दिव्यात्माओं का पालन-पोषण कर संस्कारित कर रही महान माताओं के जीवन में जीवनी शक्ति का विकास विशेष, अनिवार्य और महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि जीवनी शक्ति से समृद्ध माता-पिता ही समृद्ध जीवनी शक्ति से संपन्न संतान का सृजन कर सकते हैं ।

हमारी जीवनी शक्ति को प्रभावित करनेवाली छोटी-छोटी किंतु महत्वपूर्ण बातें इस प्रकार हैं –  

  • तालुस्थान में जिह्वा लगाने से जीवन-शक्ति केन्द्रित हो जाती है । इससे मस्तिष्क के दायें और बायें दोनों भागों में सन्तुलन रहता है जिससे व्यक्ति का सर्वांगीण विकास होता है, सर्जनात्मक प्रवृत्ति खिलती है, प्रतिकूलताओं का सामना सरलता से हो सकता है ।
  • कुदरती दृश्य देखने से, प्राकृतिक सौन्दर्य के चित्र देखने से, जलराशि, सरिता-सरोवर-सागर आदि देखने से, हरियाली व वन आदि देखने से, आकाश की ओर निहारने से जीवनी शक्ति बढ़ती है ।
  • कोई प्रिय काव्य, गीत, भगवद-भजन, श्लोक, मंत्र आदि का वाचन, संस्कृत-पठन-उच्चारण करने से भी जीवन-शक्ति का संरक्षण होता है ।
  • सात्विक और शास्त्रीय संगीत जीवन-शक्ति को बढ़ाता है । जलप्रपात, झरनों के कल-कल छल-छल मधुर ध्वनि से भी जीवन शक्ति का विकास होता है । पक्षियों के कलरव से भी प्राण-शक्ति बढ़ती है ।
  • धन्यवाद देने से, धन्यवाद के विचारों से हमारी जीवन-शक्ति का विकास होता है । ईश्वर को धन्यवाद देने से अन्तःकरण में खूब लाभ होता है ।
  • स्वस्तिक, ओमकार समृद्धि व अच्छे भावी का सूचक है । उसके दर्शन से जीवनशक्ति बढ़ती हैं ।
  • तुलसी, रूद्राक्ष, सुवर्णमाला धारण करने से जीवन-शक्ति बढ़ती है।
  • जप. ध्यान, योगासन, प्राणायाम, सूर्य-स्नान से जीवनी शक्ति में वृद्धि होती है ।
  • दिव्य प्रेम, श्रद्धा, करुणा, दया, सहानुभूति, विश्वास, हिम्मत, कृतज्ञता और सकारात्मकता जैसे भावों से जीवन-शक्ति पुष्ट होती है; वहीं राग-द्वेष, निंदा, ईर्ष्या, घृणा, तिरस्कार, भय, कुशंका, नकारात्मकता आदि कुभावों से जीवन-शक्ति क्षीण होती है ।
  • हँसने से और मुस्कराने से जीवन शक्ति बढ़ती है । इतना ही नहीं, हँसते हुए व्यक्ति को या उसके चित्र को भी देखने से जीवन-शक्ति बढ़ती है । इसके विपरीत, रोते हुए उदास, शोकातुर व्यक्ति को या उसके चित्र को देखने से जीवन शक्ति का ह्रास होता है ।
  • रेडियो, टी.वी., समाचार पत्र, सिनेमा आदि के द्वारा बाढ़, आग, खून, चोरी, डकैती, अपहरण आदि दुर्घटनाओं के समाचार पढ़ने-सुनने अथवा उनके दृश्य देखने से जीवन-शक्ति का ह्रास होता है।
  • रंगीन चश्मा, इलेक्ट्रोनिक घड़ी आदि पहनने से, मोबाईल फोन के उपयोग से प्राणशक्ति क्षीण होती है । ऊँची एड़ी के चप्पल, सेन्डल आदि पहनने से जीवनशक्ति कम होती है ।
  • ब्रेड, बिस्कुट, मिठाई आदि कृत्रिम खाद्य पदार्थों से एवं अतिशय पकाये हुए पदार्थों से जीवनशक्ति क्षीण होती है तथा बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू, मदिरा जैसे मादक द्रव्यों के सेवन से जीवन शक्ति नष्ट हो जाती है |
  • जो लोग बिना ढंग के बैठते हैं, सोते हैं, खड़े रहते हैं या चलते हैं वे अधिक जीवनशक्ति का व्यय करते हैं । सीधे बैठने और सीधे चलने और सही ढंग से सोने से जीवनशक्ति बढ़ती है । चलते वक्त दोनों हाथ आगे-पीछे हिलाने से भी जीवन-शक्ति का विकास होता है ।
  • पूर्व और दक्षिण दिशा की ओर सिर करके सोने से जीवनशक्ति का विकास होता है। जबकि पश्चिम और उत्तर की दिशा की ओर सिर करके सोने से जीवनशक्ति का ह्रास होता है । रात्रि को देर से भोजन करने व दिन को भोजन करके सोने से जीवनी शक्ति कम होती है ।
  • वीर्यरक्षा (ब्रह्मचर्य) की उपेक्षा करने जीवनी शक्ति क्षीण हो जाती है ।

उपरोक्त बातों को ध्यान में रखकर दिव्यता से भरपूर, ओजस्वी, तेजस्वी और संस्कारी संतान के अभिलाषी माता-पिता अपनी और अपनी संतान की जीवनी शक्ति का संरक्षण और संवर्धन कर सकते हैं ।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Views: 65

Open chat
1
गर्भ संस्कार केन्द्र में सम्पर्क करें -
गर्भस्थ शिशु को सुसंस्कारी बनाने तथा उसके उचित पालन-पोषण की जानकारी देने हेतु पूज्य संत श्री आशारामजी बापू द्वारा प्रेरित महिला उत्थान मंडल द्वारा लोकहितार्थ दिव्य शिशु संस्कार अभियान प्रारंभ किया गया है ।