एक रक्षाबंधन गर्भस्थ शिशु के साथ...

(एक भावनात्मक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण)

“जब माँ का प्रेम राखी बन जाता है, तो संस्कार गर्भ में ही जन्म लेते हैं…”

रक्षाबंधन केवल एक धागा बाँधने का पर्व नहीं है, यह प्रेम, सुरक्षा और निःस्वार्थ संबंधों का महापर्व है। जब एक गर्भवती माँ रक्षाबंधन मनाती है, तो वह केवल अपने भाई को राखी नहीं बाँध रही होती, बल्कि वह गर्भस्थ शिशु के संस्कारों में भी सुरक्षा, प्रेम, कर्तव्य और स्नेह का बीज बो रही होती है। यह पर्व गर्भ संस्कार का भी एक सशक्त अवसर बन सकता है। आइए इसे और भी गहराई से समझें और कुछ विशेष बातें और उपाय जानें — ताकि यह पर्व माँ और गर्भस्थ शिशु दोनों के लिए दिव्य, भावनात्मक और संस्कारमय बन जाए।

गर्भस्थ शिशु के साथ रक्षाबंधन मनाने के सुंदर और आध्यात्मिक उपाय:

  1. गर्भस्थ शिशु को बाँधें ‘संवेदनाओं की राखी

एक सुंदर राखी लेकर अपने गर्भ पर हल्के से बाँधें। मन में यह संकल्प करें कि – “मैं अपने शिशु को ऐसे संस्कार दूँगी कि वह जीवनभर सत्य, धर्म और रक्षा के पथ पर चले। मैं तुझे ये राखी बाँध रही हूँ, जिससे तू हमेशा धर्म की रक्षा करने वाला, सबका आदर करने वाला और अपनी बहनों की रक्षा करने वाला बने।” यह केवल प्रतीक नहीं, संस्कार का बीजारोपण है।

  1. रक्षाबंधन का महत्व गर्भस्थ शिशु को सुनाएँ

सुबह शांत मन से बैठकर अपने गर्भस्थ शिशु से संवाद करें और उसे रक्षाबंधन की कहानी सुनाएँ — जैसे भगवान कृष्ण और द्रौपदी की, रानी कर्णावती और हुमायूं की, या यम और यमुनाजी की। इससे शिशु के मन में बचपन से ही प्रेम और रक्षा के मूल संस्कार उत्पन्न होते हैं।

  1. भाइयों को राखी बाँधते समय गर्भस्थ शिशु को सुनाएँ

जब आप अपने भाई को राखी बाँधें, तो गर्भस्थ शिशु भी आपकी बातों को सुनता है। जब आप प्रेम, सम्मान, स्नेह, रक्षा, वचन और धर्म की बातें करती हैं, तो शिशु के भीतर वही संस्कार बुनते हैं। उसे सुनाइए कि एक भाई कैसा होता है, एक बहन क्या उम्मीद करती है।

  1. रक्षाबंधन की पूजा थाली में गर्भस्थ शिशु का स्थान भी रखें

थाली में एक दीपक, अक्षत, रोली, मिठाई के साथ एक छोटा सा कपड़ा या माला रखें, जो शिशु को समर्पित हो। यह भाव रखें कि यह पर्व मेरे गर्भस्थ देवता को समर्पित है — जो भविष्य में संस्कृतिमान, तेजस्वी और कर्तव्यनिष्ठ बनकर संसार में रक्षाकार्य करेगा।

  1. रक्षासूत्र मंत्र और गरिमा

रक्षा सूत्र बाँधते समय यह वैदिक मंत्र बोलें और मन ही मन शिशु को समर्पित करें:

“येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।

तेन त्वां प्रतिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥”

यह मंत्र शिशु के भाव-जगत में अदृश्य सुरक्षा कवच का निर्माण करता है।

  1. शुद्ध सात्विक आहार और शांत वातावरण

रक्षाबंधन के दिन घर का वातावरण शुद्ध, सकारात्मक और सात्विक रखें। संगीत में बाँसुरी, वीणा, शंखध्वनि जैसी मधुर ध्वनियाँ चलाएँ। गर्भस्थ शिशु ऐसे माहौल में रहकर गहरे भावों को आत्मसात करता है।

  1. परिवार के बीच प्रेम का माहौल बनाएँ

जैसे-जैसे आप परिवार के बीच प्रेम, आदर, उपहारों का आदान-प्रदान करती हैं — शिशु यह सीखता है कि एक परिवार किस भाव से बंधा रहता है। यह सीख संपूर्ण जीवन की नींव बनती है।

  1. रक्षाबंधन पर विशेष संकल्प लें (संस्कार निर्माण हेतु)

माँ यह संकल्प ले कि,

  • “मैं हर दिन शुभ विचारों से अपने शिशु को सींचूँगी।”
  • “मैं उसे कभी भय, द्वेष, दुर्बुद्धि से परिचित नहीं कराऊँगी।”
  • “राखी की यह डोरी केवल एक पर्व नहीं, मेरे शिशु के चरित्र की नींव बनेगी।”
  1. इस रक्षाबंधन पर एक माँ अपने गर्भस्थ शिशु से कहे —

“तू राखी का अर्थ बन , तू रक्षा का व्रत बन ।

तू प्रेम की डोर बन , और इस संसार का दीप बन।”

रक्षाबंधन पर गर्भस्थ शिशु के साथ पर्व मनाना एक बहुत ही पावन और भावनात्मक अनुभव है। यह केवल परंपरा नहीं, बल्कि भविष्य की पीढ़ी में आदर्श मानवीय गुणों का बीजारोपण है। माँ का हर विचार, हर स्पर्श, हर भावना शिशु में उतरती है। इस रक्षाबंधन पर उसे बाँधिए – प्रेम, धर्म और संस्कृति के अमूल्य धागे से।

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गर्भस्थ शिशु को सुसंस्कारी बनाने तथा उसके उचित पालन-पोषण की जानकारी देने हेतु पूज्य संत श्री आशारामजी बापू द्वारा प्रेरित महिला उत्थान मंडल द्वारा लोकहितार्थ दिव्य शिशु संस्कार अभियान प्रारंभ किया गया है ।