आत्म साक्षात्कार का अर्थ क्या है ?

साक्षात्कार का मतलब है पूर्ण विश्रांति, पूर्व है ज्ञान, पूर्ण शांति, पूर्ण उपलब्धि ! पूर्ण तो परमात्मा है। गुरुकृपा से परमात्मा के सत्यत्व को परमात्मा के चेतनत्व को, परमात्मा के आनंदत्व को, परमात्मा के अमिट तत्त्व को जानकर अपनी देह के गर्व, अभिमान और अपनी देह की कृति तुच्छ मान के उसमें कर्तृत्वभाव को अलविदा कर देना, इसका नाम है ‘साक्षात्कार’ । भोग में है तो भोगी भोग से मिलता है। त्याग में है तो त्यागी त्याग करता है। तपस्वी भी लोकांतर में सुख से मिलता है लेकिन साक्षात्कार का अर्थ है कि ईश्वर ईश्वर से मिले। देवो भूत्वा यजेद् देवम् । निर्वासनिक हो तो तुम ईश्वर हो। निश्चिंत हो तो तुम ईश्वर हो। यदि देह की मैल तुम्हारे में नहीं है और तुम अपने को आत्मभाव से प्रकट कर सको तो तुममें और ईश्वर में फर्क नहीं है। यदि देह के साथ जुड़ गये तो तुम्हारे और ईश्वर में बड़ा फासला है। भोग के साथ जुड़ गये, स्वर्ग के साथ जुड़ गये, धन के साथ जुड़ गये, कुछ पाने के साथ जुड़ गये तो भिखारी हो और कुछ पाने की इच्छा नहीं है, अपने आपको तुमने खो दिया तो समझो साक्षात्कार !

साक्षात्कार का अर्थ है कि कहीं भी मस्त न होना देखा अपने आपको मेरा दिल दीवाना हो गया। न छेड़ो मुझे यारों मैं खुद पे मस्ताना हो गया । खुद पर, अपने आत्मा पर जब चित्त मस्त हो जाय, अपने-आपमें जब आप विश्रांति पाने लगो, आपके आगे स्वर्ग फीका हो जाय, आपके आगे वैकुंठ फीका हो जाय, आपके आगे प्रधानमंत्री का पद तो क्या होता है, इन्द्र-पद, ब्रह्माजी का पद भी फीका हो जाय तो समझो कि साक्षात्कार हो गया। भक्त लोग ब्रह्मा, विष्णु, महेश के लोक में जाते हैं । तपस्वी तप करके स्वर्ग में जाते हैं । साक्षात्कार का अर्थ है कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश का जो पद है, वह भी तुच्छ भासने लग जाय । इससे बढ़कर साधना की पराकाष्ठा नहीं हो सकती, इससे बढ़कर कोई उपलब्धि नहीं हो सकती । आत्मसाक्षात्कार आखिरी उपलब्धि है।

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