नामकरण संस्कार

नामकरण संस्कार में बच्चे को शहद चटाकर भगवान सूर्यनारायण के दर्शन कराये जाते हैं और शुभ संकल्प किया जाता है कि ‘बालक सूर्य की प्रखरता, तेजस्विता धारण करे ।’

इसके साथ ही भूमि को नमन करके देव संस्कृति के प्रति श्रद्धापूर्वक समर्पण किया जाता है ।

बच्चे का नाम रखकर सब लोग उसके चिरंजीवी, धर्मवान, स्वस्थ एवं लौकिक, ध्यात्मिक – सर्व प्रकार से उन्नतिशील होने, समृद्ध होने का सद्भाव करते हैं ।

मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि जिस तरह के नाम से व्यक्ति को पुकारा जाता है, उसे उसी प्रकार के गुणों की अनुभूति होती है । अतः नाम की सार्थकता समझते हुए ऐसा नाम रखना चाहिए जिससे आगे चलकर बालक को लगे कि मुझे बड़े होकर मेरे नाम के गुणानुसार बनना है । हमारे लाड़लों के नाम कैसे हों इस बारे में पूज्य बापूजी के सत्संग में आता है : “बालक का नाम ऐसा पवित्र रखो कि पवित्र भगवान का सुमिरन हो । आजकल लोग बच्चों के नाम गजब के रखते हैं । लड़कियों के नाम रखते हैं- लेष्मा, श्लेष्मा… अब श्लेष्मा तो नाक से निकली हुई गंदगी को बोलते हैं । लड़कों के नाम रखते हैं- टिन्नू, मिन्नू, टुंकी, बंकी, विक्की, पुम्बु… ये कोई नाम हैं ! अभिनेत्रियों के नाम लड़कियों के रखेंगे, अभिनेताओं के नाम लड़कों के रखेंगे – यह तो बहुत हो गया । वे बेचारे अंदर से ‘खुद ही अशांत हैं तो अपने बच्चों को उनके नाम से क्या शांति मिलेगी, क्या ज्ञान मिलेगा ?

अरे हरिदास रखो, गोविंद, अम्बादास, हरिप्रसाद, शिवप्रसाद… भगवान की स्मृति आये ऐसे नाम रखो । अभिनेता के नाम रखोगे तो लड़का अभिनेता जैसा होगा और भक्तों व भगवान के नाम रखोगे तो कुछ तो नाम का भी प्रभाव पड़ेगा उसके चित्त पर । ‘रावण’ नाम नहीं रखते, किसीका नाम ‘रावण’ रखें तो कैसा मन हो जाय ? रावण, कुम्भकर्ण, हिटलर नाम नहीं रखते, अच्छे-अच्छे नाम रखते हैं । ऐसे ही लेष्मा-श्लेष्मा नाम रखते हैं बेचारी कन्याओं के, उन्होंने क्या अपराध किया ? सावित्री, गार्गी, अनसूया, मदालसा, अम्बा, अम्बिका नाम रख दें अपनी कन्या का… शबरी नाम रख दें तो भक्त शबरी की याद आ जायेगी, भगवान श्रीरामजी की याद आ जायेगी । स्वयंप्रभा, सुलभा, ज्योति, सीता, पार्वती रख दें… ऐसे-ऐसे और भी कई पावन पवित्र नाम हैं ।

चिंता न करें कि नाम कम पड़ जायेंगे । भारत के ऋषियों ने श्रीविष्णुसहस्रनाम, श्रीशिवसहस्रनाम, श्रीदुर्गासहस्रनाम आदि की रचना करके आपके लिए भगवन्नामों का भंडार खोल रखा है अपने सत्शास्त्रों में । तो ऐसे पवित्र पावन नाम रखो ताकि भगवान की स्मृति आ जाय । और बच्चों में दैवी गुण आ जायें तथा माता-पिता में उच्च विचार आ जायें ।

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गर्भस्थ शिशु को सुसंस्कारी बनाने तथा उसके उचित पालन-पोषण की जानकारी देने हेतु पूज्य संत श्री आशारामजी बापू द्वारा प्रेरित महिला उत्थान मंडल द्वारा लोकहितार्थ दिव्य शिशु संस्कार अभियान प्रारंभ किया गया है ।