Rainy care

  • वर्षा ऋतु में वायु का विशेष प्रकोप तथा पित्त का संचय होता है । वर्षा ऋतु में वातावरण के प्रभाव के कारण स्वाभाविक ही जठराग्नि मंद रहती है, जिसके कारण पाचनशक्ति कम हो जाने से अजीर्ण, बुखार, वायुदोष का प्रकोप, सर्दी, खाँसी, पेट के रोग, कब्जियत, अतिसार, प्रवाहिका, आमवात, संधिवात आदि रोग होने की संभावना रहती है ।
  • इन रोगों से बचने के लिए तथा पेट की पाचक अग्नि को सँभालने के लिए आयुर्वेद के अनुसार उपवास तथा लघु भोजन हितकर है । इसलिए हमारे आर्षदृष्टा ऋषि-मुनियों ने इस ऋतु में उपवास का संकेत कर धर्म के द्वारा शरीर के स्वास्थ्य का ध्यान रखा है । गर्भवती बहनों को पूर्ण उपवास न करके युक्ताहार विहार का आश्रमय लेना चाहिए । 
  •  इस ऋतु में गर्भावस्था में होनेवाले रोगों से  शरीर की रक्षा करने का एक ही मूलमंत्र है कि पेट और शरीर को साफ रखा जाय अर्थात् पेट में अपच व कब्ज न हो और त्वचा साफ और स्वस्थ रखी जाय ।
  • इस ऋतु में जल की स्वच्छता पर विशेष ध्यान दें । जल द्वारा उत्पन्न होनेवाले उदर-विकार, अतिसार, प्रवाहिका एवं हैजा जैसी बीमारियों से बचने के लिए पानी को उबालें, आधा जल जाने पर उतार कर ठंडा होने दें, तत्पश्चात् हिलाये बिना ही ऊपर का पानी दूसरे बर्तन में भर दें एवं उसी पानी का सेवन करें । जल को उबालकर ठंडा करके पीना सर्वश्रेष्ठ उपाय है । आजकल पानी को शुद्ध करने हेतु विविध फिल्टर भी प्रयुक्त किये जाते हैं । उनका भी उपयोग कर सकते हैं । पानी में फिटकरी का टुकड़ा घुमायें, जिससे गंदगी नीचे बैठ जायेगी । वह पानी भी पी सकते हैं । पीने के लिए और स्नान के लिए गंदे पानी का प्रयोग बिल्कुल न करें क्योंकि गंदे पानी के सेवन से उदर व त्वचा सम्बन्धी व्याधियाँ पैदा हो जाती हैं ।

विशेष : वर्षा ऋतु की बीमारियों को भगाने के लिए एक सुंदर युक्ति है- अश्विनी मुद्रा । (विधिः सुबह खाली पेट शवासन में लेट जायें । पूरा श्वास बाहर फेंक दें और 30-40 बार गुदाद्वार का आकुंचन-प्रसरण करें, जैसे घोड़ा लीद छोड़ते समय करता है । इस प्रक्रिया को 4-5 बार दुहरायें।)

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