धर्ममय जीवन

  • श्रीकृष्ण कहते हैं- “जो इहलोक और परलोक में हमारे साथ चले, हमारी रक्षा करे वह धर्म ही असली धन है।” धर्म ही सच्चा धन है।

  • जैसे मनुष्य को श्वास की जरूरत है । अग्नि को दाहकता की जरूरत है । पानी को शीतलता की जरूरत है । क्योंकि शीतलता पानी का धर्म है । दाहकता अग्नि का धर्म है । ऐसे ही जीवन में धर्म की जरूरत है । मनुष्य में धर्म न हो तो मनुष्यता ही नहीं रहेगी, मनुष्य दो पैरवाला पशु हो जायेगा ।

  • जैसे गंभीर हालत में आदमी को विशेष डॉक्टर की और विशेष औषधियों की आवश्यकता होती है, ऐसे ही आधुनिक युग में धर्म की विशेष जरूरत है ।

  • धर्म आपमें स्वार्थ की जगह निःस्वार्थता लाता है, भय की जगह पर निर्भयता लाता है, उच्छृंखलता की जगह पर नियंत्रण लाता है, शोषण की जगह पर अपना और दूसरों का पोषण हो ऐसा ज्ञान और सूझबूझ देता है । अगर आपके जीवन में धर्म नहीं होगा तो क्या आपके जीवन में बरकत रहेगी, परोपकार रहेगा, सज्जनता रहेगी, शांति रहेगी, परदुःखकातरता रहेगी ? नहीं ।

  • जीवन में धर्म चाहिए, कर्तव्यपालन का महत्त्व चाहिए । वह आयेगा सत्संग और सद्विचार से । धर्म आंतरिक अनुशासन करता है । वह धर्म ही है जो हमारी मानवता को चमकाता है, हमारे संसारी जीवन को सुंदर बनाता है और भोग व मोक्ष पाने में हमें सफल बनाता है । इसलिए धर्म की नितांत आवश्यकता है । जीवन धर्ममय होगा तभी आपकी संतान भी धर्म के रास्ते पर चलनेवाली होगी और आपका, परिवार का, समाज का व देश का नाम रोशन करनेवाली होगी ।

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