श्रीमदभगवतगीता का गर्भवती के लिए महत्व...

श्लोक उच्चारण का महत्व

शास्त्रों में ऐसा वर्णित है और वैज्ञानिकों ने भी इसे प्रमाणित किया है की यदि नियमित संस्कृत के श्लोकों का उच्चारण किया जाए तो स्मरण शक्ति बढ़ती है और शब्दों का उच्चारण स्पष्ट होता है अतः गर्भवती को चाहिए की वह नियमित रूप से श्रीमद भगवद  गीता का पाठ करें जिससे गर्भस्थ शिशु की स्मरण शक्ति में वृद्दि हो और जन्म के बाद जब बच्चा बोलना शुरू करे तो उसके शब्दों के उच्चारण स्पष्ट होंगे। और श्रीमद भगवद गीत अपने आप में एक ऐसा ग्रंथ है जो ज्ञान का सागर है अगर ऐसे गरबटह का पठन गर्भवती करेगी तो निश्चित ही उसकी संतान दैवीय गुणों से सम्पन्न होगी। 

 

गीता का सार आत्म-ज्ञान

श्री कृष्ण कहते हैं कि आत्म मंथन करके स्वयं को पहचानो क्योंकि जब स्वयं को पहचानोगे तभी क्षमता का आंकलन कर पाओगे। ज्ञान रूपी तलवार से अज्ञान को काट कर अलग कर देना चाहिए। जब व्यक्ति अपनी क्षमता का आंकलन कर लेता है तभी उसका उद्धार हो पाता है।भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि मृत्यु एक अटल सत्य है, किंतु केवल यह शरीर नश्वर है। आत्मा अजर अमर है, आत्मा को कोई काट नहीं सकता अग्नि जला नहीं सकती और पानी गीला नहीं कर सकता। जिस प्रकार से एक वस्त्र बदलकर दूसरे वस्त्र धारण किए जाते हैं उसी प्रकार आत्मा एक शरीर का त्याग करके दूसरे जीव में प्रवेश करती है। श्रीमद्भागवत गीता में भगवान कृष्ण के द्वारा रण भूमि में अर्जुन को उपदेश दिए गए हैं। गीता की बातें मनुष्य को सही तरह से जीवन जीने का रास्ता दिखाती हैं। गीता के उपदेश हमें धर्म के मार्ग पर चलते हुए अच्छे कर्म करने की शिक्षा देते हैं। महाभारत में युद्ध भूमि में खड़े अर्जुन और कृष्ण के बीच के संवाद से हर मनुष्य को प्रेरणा लेनी चाहिए। अपने गर्भस्थ शिशु में गीत के ज्ञान का सिंचन अवश्य करें ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी धर्म के मार्ग पर चल सके और आत्म-ज्ञान प्राप्त कर सके। 

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