प्रार्थना
घर आँगन में किलकारियों की गूंज किसे अच्छी नहीं लगती ? इस गूंज की चाह में बच्चे के जन्म के पहले से ही माता-पिता की हर धड़कन प्रार्थना के स्वरों के साथ चलती है और गर्भावस्था के दौरान यही प्रार्थना गर्भस्थ शिशु में भगवद्भक्ति, शारीरिक-मानसिक-बौद्धिक स्वास्थ्य और उच्च नैतिक मूल्यों के संवर्धन का कार्य करती है । सच्चे हृदय की गयी प्रार्थना भगवान तक तुरंत पहुँचती है । हरि ओम गुंजन के बाद संस्कार साधना के अगले क्रम में हम बढ़ते हैं प्रार्थना की ओर । कैसी है प्रार्थना की महिमा ! एक पपीहा पेड़ पर बैठा था । वहाँ उसे बैठा देखकर एक शिकारी ने धनुष पर बाण चढ़ाया । आकाश से भी एक बाज उस पपीहे को ताक रहा था । इधर शिकारी ताक में था और उधर बाज । पपीहा क्या करता ? कोई ओर चारा न देखकर पपीहे ने प्रभु से प्रार्थना कीः “हे प्रभु ! तू सर्वसमर्थ है । इधर शिकारी है, उधर बाज है । अब तेरे सिवा मेरा कोई नहीं है । हे प्रभु ! तू ही रक्षा कर….” पपीहा प्रार्थना में तल्लीन हो गया ।वृक्ष के पास बिल में से एक साँप निकला । उसने शिकारी को दंश मारा । शिकारी का निशाना हिल गया । हाथ में से बाण छूटा और आकाश में जो बाज मँडरा रहा था उसे जाकर लगा । शिकारी के बाण से बाज मर गया और साँप के काटने से शिकारी मर गया । पपीहा बच गया । वाह ! परमात्मा कैसा समर्थ है ! वह कर्तुं अकर्तुं अन्यथा कर्तुं समर्थः…. है । असम्भव भी उसके लिए सम्भव है । सृष्टि में चाहे कितनी भी उथल-पुथल मच जाये लेकिन जब वह अदृश्य सत्ता किसी की रक्षा करना चाहती है तो वातावरण में कैसी भी व्यवस्था करके उसकी रक्षा कर देती है । कितना बल है प्रार्थना में ! कितना बल है उस अदृश्य सत्ता में !
गर्भ संस्कार में प्रार्थना का अद्भुत महत्व है । माता-पिता दोनों को संध्या-वंदन करते समय हरि ओम का गुंजन करने के बाद अपने सद्गुरुदेव और इष्टदेव की हृदयपूर्वक प्रार्थना करनी चाहिए । गर्भाधान से पूर्व माता इस प्रकार प्रार्थना करे – “हे प्रभु ! हे परमात्मा ! आप सम्पूर्ण सृष्टि के रचयिता, पालक और संहारक हैं । सम्पूर्ण जगत आपकी ही कृति है । हे सृजनकर्ता ! जिस प्रकार धरती पर अनेक माताओं के गर्भ से दिव्य संतानें अवतरित हुई, उसी प्रकार हे प्रभु ! मेरे गर्भ से आपका ही दिव्य अंश प्रकट हो और उस अलौकिक संतान की माता-पिता कहलाने का सौभाग्य हमें प्राप्त हो, हमारी यह प्रार्थना आप स्वीकार करें।“
बिना प्रार्थना के किया गया गर्भाधान निम्न स्वभाववाली संतान को आमंत्रित करता है । एक शोध के अनुसार, प्रार्थना करनेवाली महिलाओं में गर्भधारण करने की संभावना, प्रार्थना न करनेवाली महिलाओं की अपेक्षा दुगुनी हो पाई गई थी ! इसी प्रार्थना का आश्रय जब गर्भवती माता लेती है तो गर्भस्थ शिशु की रक्षा का दायित्व भगवान स्वयं पर ले लेते हैं । जैसे – उत्तरा की प्रार्थना और समता से प्रभावित होकर अपनी समता का परीक्षा स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा के गर्भ में पल रहे मृत परीक्षित को जीवित कर दिया था । जिन माताओं को बार-बार गर्भ गिर जाता हो उन्हें उत्तरा की तरह भगवान से प्रार्थना करना चाहिए ।
महाराष्ट्र स्थित मनशक्ति रिसर्च सेंटर में की गई स्टडी के अनुसार गर्भावस्था में माँ द्वारा की गई प्रार्थना उसके साथ गर्भ में मौजूद शिशु की pulse rate को नॉर्मल रखती है । इससे माँ और गर्भ में पल रहे शिशु दोनों का ही स्वास्थ्य बेहतर रहता है ।
सगर्भा की प्रार्थना के फलस्वरूप संतान में असाधारण दैवी सद्गुणों का विकास होता है । आनेवाली संतान वीर, सद्गुणी, विद्वान, यशस्वी, श्रेष्ठ और दीर्घजीवी होती है ।प्रार्थना के फलस्वरूप जन्म लेनेवाली दिव्यात्मा परमात्मा द्वारा भेजा गया सुंदर उपहार है ।
संत विनोबा भावे माँ रुक्मिणी रात को जब दही जमाती तो भगवान की प्रार्थना करके जमातीं थीं । बालक विनोबा ने एक दिन पूछाः “माँ ! दही जमाने में परमेश्वर को बीच में घसीटने की क्या जरूरत है ? उनकी प्रार्थना न करें, उनका नाम न लें तो क्या दही नहीं जमेगा ? माँ ने कहाः “विन्या ! हम अपनी तरफ से भले ही पूरी तैयारी कर लें, पर दही तो ठीक से तभी जमेगा, जब भगवान की कृपा होगी।“ विनोबा जी कहते है- “जेल में मैं सब बातों का ध्यान रखकर दही जमाता था, फिर भी कभी-कभी खट्टा हो जाता था, तब मुझे माँ की यह बात याद आती थी ।“
कितनी ऊँची शिक्षा दी है भारत की इस माता ने अपने बालक को ! बचपन से ही वेदांत के संस्कारों का सिंचन किया कि दही भले जमता हुआ दिखता है परंतु वह जिसकी सत्ता से जमता है, उसका स्मरण कर हमें उसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए । हे भारत की माताओं ! आप भी गर्भाधान से लेकर गर्भावस्था के दौरान और शैशवकाल से ही अपने बच्चों में प्रार्थना द्वारा ऐसे दिव्य संस्कारों का सिंचन करोगी तो आगे चलकर उनके कर्मों में भक्तिरस आयेगा जो उन्हें निर्वासनिक नारायण के सुख में प्रतिष्ठित कर देगा ।
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