वर्षा ऋतु में विहार
पथ्य विहार
अंगमर्दन (मालिश), उबटन से स्नान, हल्के व्यायाम, स्वच्छ व हल्के वस्त्र पहनना योग्य है । वातारवरण में नमी और आर्द्रता के कारण उत्पन्न कीटाणुओं से सुरक्षा हेतु आश्रमनिर्मित धूप-हवन से वातावरण को शुद्ध तथा गौसेवा फिनायल या गोमूत्र से घर को स्वच्छ रखें ।
अपथ्य विहार
- अति व्यायाम, स्त्रीसंग, दिन में सोना, रात्रि जागरण, बारिश में भीगना, नदी में तैरना अथवा स्नान करना, धूप में बैठना, खुले बदन घूमना, रात को छत पर अथवा खुले आँगन में सोना, और गीले वस्त्र जल्दी न बदलना हानिकारक होता है ।
- इस ऋतु में वातावरण में नमी रहने के कारण शरीर की त्वचा ठीक से नहीं सूखती । अतः त्वचा स्वच्छ, सूखी व स्निग्ध बनी रहे, इसका उपाय करें ताकि त्वचा के रोग पैदा न हों । इस ऋतु में घरों के आस-पास गंदा पानी इकट्ठा न होने दें, जिससे मच्छरों से बचाव हो सके । गेंदे के फूलों के पौधे का गमला दिन में बाहर व संध्या को कमरे में रखें । गेंदे के फूलों की गंध से भी मच्छर भाग जाते हैं । मच्छरदानी आदि से भी मच्छरों से बचें, जैसे साधक अहंकार से बचता है । नीम के पत्ते, गोबर के कंडे व गूगल आदि का धुआँ कर सकते हैं ।
- इस ऋतु में त्वचा के रोग, मलेरिया, टायफायड व पेट के रोग अधिक होते हैं । अतः खाने-पीने की सभी वस्तुओं को मक्खियों एवं कीटाणुओं से बचायें व उन्हें साफ करके ही प्रयोग में लें । बाजारू दही व लस्सी का सेवन न करें ।
- चातुर्मास में बेल पत्र और आँवले व तिल के मिश्रण को पानी में डालकर स्नान करने से दोष निवृत्त होते हैं ।
सावधानी –
जो बेपरवाही से बरसाती हवा में घूमते हैं, नहाते हैं, उनको बुढ़ापे में वायुजन्य तकलीफों के दुःखों से टकराना पड़ता है ।
बारिश के पानी में सिर भिगाने से अभी नहीं तो 20 वर्षों के बाद भी सिरदर्द की पीड़ा अथवा घुटनों का दर्द या वायु संबंधी रोग हो सकते हैं ।
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