प्रेगनेंसी में अवश्य पढ़ें संस्कृत ... होंगे अद्भुत चमत्कार !!!
देवभाषा संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है । संस्कृत व संस्कृति के रक्षक पूज्य बापूजी कहते हैं- “संस्कृत भाषा देवभाषा है और इसके उच्चारणमात्र से दैवी गुण विकसित होने लगते हैं ।” इसलिए दिव्य शिशु गर्भ संस्कार के द्वारा सभी माता-पिता को, विशेष रूप से गर्भवती माताओं को गर्भावस्था में संस्कृत के स्त्रोत-पाठ पढ़ने-सुनने, श्लोकों एवं मंत्रों का उच्चारण करने के लिए कहा जाता है किंतु आधुनिक शिक्षा प्रणाली में अंग्रेजी माध्यम में पढ़े-लिखे कई माता-पिता संस्कृत पढ़ने से कतराते हैं । कई बार संस्कृत के शब्दों का शुद्ध उच्चारण न कर पाने की झिझक के कारण भी वे संस्कृत नहीं पढ़ते-सुनते । ऐसे में वे अनजाने में ही स्वयं को और अपनी संतान को इस वैदिक भाषा के अनगिनत अद्भुत लाभों से वंचित कर देते हैं ।
संस्कृत भाषा से होनेवाले आश्चर्यजनक लाभ :
• संस्कृत बोलना ही अपने आप में एक योग है । संस्कृत के वैदिक मन्त्रों का दीर्घ उच्चारण करने से स्वत: ही सहज प्राणायाम हो जाते हैं ।
• संस्कृत का अध्ययन जितना गर्भवती को सूक्ष्म विचारशक्ति प्रदान करता है, उसमें मौलिक चिंतन को जन्म देता है, उतना शिशु को भी वैचारिक क्षमता और एकाग्रता से परिपूर्ण करता है ।
• शांत मन गर्भावस्था की सबसे महत्वपूर्ण माँग है । संस्कृत के मन्त्रों का दोर्घ उच्चारण करने से सगर्भा का मन स्वाभाविक ही अंतर्मुख होने लगता है, ध्यान में मदद मिलती है । शांत मन में स्त्रावित होनेवाले डोपामिन और सेरोटोनिन नामक हार्मोन बच्चे के शारीरिक, मानसिक और भावात्मक विकास में सहायता करते हैं ।
• संस्कृत के शब्द चित्ताकर्षक एवं आनंददायक भी होते हैं जैसे – सुप्रभातम्, सुस्वागतम्, ‘मधुराष्टकम्’ के शब्द आदि । इनका उच्चारण करने में मन आनंदित रहता है ।
• संस्कृत दुनिया की एकमात्र ऐसी भाषा है जिसे बोलने में जीभ की सभी मांसपेशियों का इस्तेमाल होता है । इसलिए संस्कृत स्पीच थेरेपी में भी मददगार है । इससे बच्चे की वाणी स्पष्ट होती है ।
• जिन माताओं ने गर्भावस्था में संस्कृत का पठन-चिंतन या उच्चारण किया होता है उनके बच्चे की वाणी में एक विशेष मधुरता और विनम्रता देखने को मिलती है ।
• संस्कृत बच्चों में सर्वांगीण बोध ज्ञान को विकसित करने में मदद करती है । संस्कृत बोलने-पढ़नेवाली माताओं के बच्चे अन्य भारतीय भाषाओं को भी सरलतापूर्वक सीख सकते हैं । गणित और विज्ञान में भी कम समय में महारत हासिल कर लेते हैं ।
• संस्कृत स्मरणशक्ति को भी बेहतर बनाती है । संस्कृत का उच्चारण करनेवाली माता के शिशु के पास शब्दों का भंडार होता है ।
• यदि गर्भावस्था में माँ थोड़ा-सा भी संस्कृत का अभ्यास करती है तो जन्म के पश्चात उसका बच्चा बहुत ही कॉम्प्लिकेटेड (कठिन) श्लोकों को भी बड़ी सरलता से बोल पाता है ।
• शिक्षाविद् पॉल मॉस के अनुसार ‘संस्कृत से सेरेब्रेल कॉर्टेक्स सक्रिय होता है । जो मातायें अपने बच्चों की कठोर वाणी से परेशान हैं उन्हें अपने बच्चों से संस्कृत का उच्चारण करवाना चाहिए ।
• गर्भ से ही संस्कृत सुननेवाले बच्चे अपेक्षाकृत अधिक धर्मपरायण और आध्यात्मिक होते हैं । ईश्वर की ओर उनका स्वाभाविक झुकाव होता है और वे जीवनभर अपनी संस्कृति से जुड़े रहते हैं ।
इसलिए गर्भावस्था में संस्कृत जैसी आर्यभाषा को अपनाकर अपने शिशु के व्यवहार में आर्यता, वाणी में मृदुता और
जीवन में आध्यात्मिकता लाने का अपना दायित्व प्रयत्नपूर्वक निभायें ।
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