मुद्रा विज्ञान

ज्ञान मुद्रा –

तर्जनी अर्थात प्रथम उँगली को अँगूठे के नुकीले भाग से स्पर्श करायें । शेष तीनों उँगलियाँ सीधी रहें ।

लाभः मानसिक रोग जैसे कि अनिद्रा अथवा अति निद्रा, कमजोर यादशक्ति, क्रोधी स्वभाव आदि हो तो यह मुद्रा अत्यंत लाभदायक सिद्ध होगी । यह मुद्रा करने से पूजा पाठ, ध्यान-भजन में मन लगता है ।

अपानवायु मुद्रा – 


अँगूठे के पास वाली पहली उँगली को अँगूठे के मूल में लगाकर अँगूठे के अग्रभाग की बीच की दोनों उँगलियों के अग्रभाग के साथ मिलाकर सबसे छोटी उँगली (कनिष्ठिका) को अलग से सीधी रखें । इस स्थिति को अपानवायु मुद्रा कहते हैं । अगर किसी को हृदयघात आये या हृदय में अचानक पीड़ा होने लगे तब तुरन्त ही यह मुद्रा करने से हृदयघात को भी रोका जा सकता है ।

लाभः हृदयरोगों जैसे कि हृदय की घबराहट, हृदय की तीव्र या मंद गति, हृदय का धीरे-धीरे बैठ जाना आदि में थोड़े समय में लाभ होता है । पेट की गैस, मेद की वृद्धि एवं हृदय तथा पूरे शरीर की बेचैनी इस मुद्रा के अभ्यास से दूर होती है ।

आवश्यकतानुसार हर रोज़ 20 से 30 मिनट तक इस मुद्रा का अभ्यास किया जा सकता है ।

अश्विनी मुद्रा –

विधि: प्रात: संध्या-वंदन के बाद चटाई/कम्बल पर पीठ के बल सीधे लेट जायें । नाक के द्वारा श्वास पूर्णतः बाहर निकाल दें | जैसे घोड़ा लीद छोड़ते समय गुदा का संकोचन-प्रसारण करता है उसी प्रकार २५ बार गुदा (मलद्वार) को सिकोड़ें और छोड़ दें । यह प्रक्रिया ३ से ४ बार करें ।
प्रथम माह से लेकर प्रसवकाल तक मूलबंध व अश्विनी मुद्रा का नियमित अभ्यास करें । इससे योनि की पेशियों में लचीलापन बना रहता है, प्रसव पीड़ा रहित हो जाता है । प्रसूति के बाद भी माताओं को इस मुद्रा का अभ्यास करना चाहिए । इससे सगर्भावस्था की अवधि में तने हुए स्नायुओं को पुनः स्वास्थ्य पाने में सहायता मिलती है । प्रसव के उपरांत हार्मोन्स शीघ्रता से संतुलित होते है । श्वेत-प्रदर (Leucorrhoea), योनिभ्रंश (Uterine Prolapse) व अनियंत्रित मूत्रप्रवृत्ति (Incontinence) के उपचार में अश्विनी-मुद्रा का अभ्यास सर्वोपरि सिद्ध हुआ है ।

ब्रह्ममुद्रा –

वज्रासन या पद्मासन में बैठें । हाथों को घुटनों पर रखें । कंधों को ढीला रखें । अब गर्दन व सिर को १० बार धीरे-धीरे ऊपर-नीचे करें । सिर को अधिक पीछे जाने दें । गर्दन ऊपर-नीचे करते समय आँखे खुली रखें, गर्दन को झटका न दें । श्वास नियमित चलने दें । फिर गर्दन को धीरे-धीरे १० बार दायें-बायें चलायें । गर्दन को इस प्रकार घुमायें कि ठोड़ी और कन्धा एक ही दिशा में आये । इसके बाद गर्दन को गोल घुमाना है । गर्दन को ढ़ीला छोड़कर एक तरफ से धीरे-धीरे गोल घुमाते हुए १० चक्कर लगायें । आँखे खुली रखें । फिर दूसरी तरफ से गोल घुमायें । गर्दन घुमाते समय कान को हो सके तो कन्धों से लगायें । इस प्रकार ब्रह्ममुद्रा का अभ्यास करें ।
लाभ – ध्यान-भजन तथा दिन में नींद नहीं आयेगी । उल्टी-चक्कर, अतिनिद्रा पर ब्रह्ममुद्रा का अचल प्रभाव पड़ता है । मानसिक अवसाद (Depression) चला जाता है । हार्मोन्स को संतुलित रखने में सहायता मिलती है ।

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