गर्भस्थ शिशु पर संस्कारों का प्रभाव
गर्भावस्था में शिशु व माता का बहुत ही प्रगाढ़ संबंध होता है । माता के पेट में शिशु 9 माह गुजारता है । इस अवधि में शिशु को एक अति कोमल नाल के द्वारा माता के श्वास से श्वास तथा भोजन से पोषण मिलता रहता है । इस दौरान स्वाभाविक ही माता के शारीरिक, मानसिक व नैतिक स्थिति का प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर पड़ता है ।
कुछ ऐतिहासिक दृष्टांत इसके प्रमाण हैं :- अभिमन्यु ने माता के गर्भ में रहते हुए ही चक्रव्यूह में प्रवेश करने की कला पिता द्वारा सुनी । गर्भस्थ अभिमन्यु पर इस विवरण का इतना प्रभाव पड़ा कि ‘महाभारत’ के भीषण युद्ध में गर्भावस्था में जानी हुई विद्या का उपयोग करके वह दुर्भेद्य चक्रव्यूह में प्रवेश कर गया । इस प्रकार जन्म के बाद भी उसे चक्रव्यूह में प्रवेश करने की युक्ति याद थी । राक्षसराज हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद महान भक्त कैसे हुआ ? गर्भावस्था में देवर्षि नारदजी ने माता कयाधू को ज्ञान-भक्ति का उपदेश दिया था । उसका प्रभाव गर्भस्थ प्रह्लाद पर पड़ा । इसलिए पिता ईश्वरद्रोही होते हुए भी पुत्र महान भक्त हुआ । हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को अनेक प्रकार के भय दिखाये व सजाएँ दीं किंतु प्रह्लाद में सत्संग के वे संस्कार इतने दृढ़ हो गये थे कि भयंकर सजाएँ भी प्रह्लाद को ईश्वरभक्ति के मार्ग से डिगा नहीं सकीं । नेपोलियन बोनापार्ट को युद्ध की शिक्षा गर्भावस्था में मिली थी । सगर्भावस्था में उसकी माता को घुड़सवारी व युद्ध करने पड़ते थे । कई बार तो घोड़े पर ही रात्रि-विश्राम लेना पड़ता था । एक जगह से दूसरी जगह घोड़े पर ही भागते रहना पड़ता था ।
सन् 1804 में केबोट गाँव में एक छः वर्षीय बालक में असाधारण स्मृतिशक्ति पायी गयी । वह पाँच अंकों का गुणन तुरंत मुँह-जबानी कर देता था । उसमें ऐसी विलक्षण प्रतिभा के जगने का कारण यह था कि उसकी माता को कपड़ों पर अलग-अलग आकृतियाँ बनाने के लिए ताने-बाने बड़ी सूक्ष्मता से गिनने पड़ते थे । सगर्भावस्था के दौरान एक बार एक आकृति बनाने के लिए उसकी दिन-रात की सब कोशिशें निष्फल हो गयीं । इस दौरान मस्तिष्क को असाधारण परिश्रम पड़ा । रात जगने पर भी सफलता न मिलने से वह निराश होकर काम छोड़ने ही वाली थी, तभी अचानक उसके मन में हुआ कि कुछ ताने-बाने इस प्रकार बुनें तो यह आकृति बन सकती है । उन विचारों का गहरा असर गर्भस्थ शिशु पर पड़ा और उस बालक में असाधारण क्षमता का विकास हुआ । इस प्रकार माता-पिता के आचार-विचार का असर गर्भस्थ शिशु पर पड़ता ही है । अतः गर्भिणी माताएँ अधिक-से-अधिक सत्संग-श्रवण व भगवन्नाम-जप करते हुए भगवद्-चिंतन करें ।
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