गर्भवती और गर्भस्थ शिशु के लिए अमृतमय वरदान : शरद पूर्णिमा
अश्विन मास की पूर्णिमा को ‘शरद पूर्णिमा’ कहते हैं जो इस वर्ष 6 अक्टूबर को है । शरद पूर्णिमा की रात को चन्द्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ पृथ्वी पर शीतलता, पोषकशक्ति एवं शांतिरूपी अमृतवर्षा करता है । यूँ तो बारहों महीने चन्द्रमा की चाँदनी गर्भ को और औषधियों को पुष्ट करती है, लेकिन शरद पूनम की चाँदनी का अपना विशेष महत्व है ।
शरद पूर्णिमा की रात को सगर्भा माता चन्द्रमा के दर्शन करती जाये और भावना करे कि ‘चन्द्रमा के रूप में साक्षात् परब्रह्म-परमात्मा की रसमय, पुष्टिदायक रश्मियाँ आ रही हैं । मैं और मेरा गर्भस्थ शिशु उसमें विश्रांति पा रहे हैं । मन पावन हो रहा है, तन पुष्ट हो रहा है, ॐ शांति… ॐ आनंद…’ पहले होंठों से, फिर हृदय से जप करते-करते अपने गर्भस्थ शिशु के लिये शुभ संकल्प करे ।
सगर्भा माता महीन कपड़े से ढँककर चन्द्रमा की चाँदनी में रखी हुई खीर भगवान को भोग लगाकर प्रसादरूप में ग्रहण करे । लेकिन देर रात को खाते हैं, इसलिए थोड़ी कम खाए और थोड़ी बच जाये तो फ्रिज में रख देवे । सुबह गर्म करके खा सकते हैं । (खीर दूध, चावल, मिश्री, चाँदी, चन्द्रमा की चाँदनी – इन पंचश्वेतों से युक्त होती हैं, अतः सुबह बासी नहीं मानी जाती।)
पूर्णिमा को चन्द्रमा के विशेष प्रभाव से समुद्र में ज्वार-भाटा आता है । जब चन्द्रमा समुद्र में उथल-पुथल कर उसे विशेष कम्पायमान कर देता है तो हमारे शरीर में जो जलीय अंश है, सप्तधातुएँ हैं, सप्तरंग हैं, उन पर भी चन्द्रमा का प्रभाव पड़ता है, इसमें क्या संदेह ? इन दिनों में अगर काम-विकार भोगा तो विकलांग संतान अथवा ला-ईलाज बीमारी हो जाती है ।
शरद पूर्णिमा के अवसर पर निम्न प्रयोग विशेष लाभकारी हैं –
दशहरे से शरद पूर्णिमा तक प्रतिदिन गर्भवती यदि 15 से 20 मिनट चन्द्रमा का त्राटक करे और सूई में धागा पिरोने का अभ्यास करे तो माता और गर्भस्थ शिशु की नेत्रज्योति बढ़ती है ।
यदि गर्भवती हल्के-फुल्के परिधान पहनकर शरद पूर्णिमा की चाँदनी में टहलती है तो चन्द्र-किरणें त्वचा के रोमकूपों में समा जाती हैं और बंद रोम-छिद्र प्राकृतिक ढंग से खुलते हैं जिससे गर्भस्थ शिशु की त्वचा भी सुंदर, कोमल और स्वस्थ बनती है ।
गर्भवती यदि शरद पूर्णिमा की शीतल रात्रि को चन्द्रमा की किरणों में महीन कपड़े से ढँककर रखी हुई दूध-चावल की खीर का सेवन करे तो माँ के साथ-साथ गर्भस्थ शिशु भी पुष्ट होता है ।
सगर्भा शरद पूर्णिमा की रात खीर बनाकर चन्द्रमा की चाँदनी में रखे और भगवान को भोग लगाकर देवताओं के वैद्य अश्विनी कुमारों से प्रार्थना करे – ‘हे देव ! मेरे गर्भस्थ शिशु की सभी इन्द्रियों का बल-ओज बढ़े ।’ फिर वह खीर खा लें । यह प्रयोग करने से शिशु हृष्ट-पुष्ट होगा ।
शरद पूर्णिमा की रात दो पके सेवफल काटकर चाँदनी में रखने से उनमें चन्द्र किरणें और ओज के कण समा जाते हैं । सुबह खाली पेट सेवन करने से गर्भावस्था के दौरान होनेवाली कब्ज की तकलीफ में राहत मिलती है ।
गर्भवती बहनें नियमित सेवनीय खाद्य सामग्रियों (घी, आँवला, सूखे मेवे आदि) व औषधियों को भी चंद्रमा की किरणों में रखें जिससे ये सभी सामग्रियाँ अधिक बलवर्धक व दिव्य हो जाएँगी ।
विशेष लाभकारी प्रयोग
250 ग्राम दूध में 1-2 बादाम व 2-3 छुहारों के टुकड़े करके उबालें । फिर इस दूध को पतले सूती कपड़े से ढँककर चन्द्रमा की चाँदनी में 2-3 घंटे तक रख दें । यह दूध औषधिय गुणों से पुष्ट हो जायेगा । सुबह इस दूध को पी लें ।
गर्भवती माताएं शरद पूनम का लाभ अवश्य लें ।
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