आदिशक्ति की उपासना का पर्व
सनातन धर्म में निर्गुण निराकार परब्रह्म परमात्मा को पाने की योग्यता बढ़ाने के लिए अनेक प्रकार की उपासनाएँ चलती हैं । उपासना माने उस परमात्म-तत्व के निकट आने का साधन । शक्ति के उपासक नवरात्रि में विशेष रूप से शक्ति की आराधना करते हैं । इन दिनों में पूजन-अर्जन, कीर्तन, व्रत-उपवास, मौन, जागरण आदि का विशेष महत्त्व होता है । जिस दिन महामाया ब्रह्मविद्या आसुरी वृतियों को मारकर जीव के ब्रह्मभाव को प्रकट करती हैं, उसी दिन जीव की विजय होती है । हज़ारों-लाखों जन्मों से जीव त्रिगुणमयी माया के चक्कर में फँसा था, आसुरी वृतियों के फँदे में पड़ा था । जब महामाया जगदम्बा की अर्चना-उपासना-आराधना की तब वह जीव विजेता हो गया । माया के चक्कर से, अविद्या के फँदे से मुक्त हो गया, वह ब्रह्म हो गया । विजेता होने के लिए बल चाहिए, बल बढ़ाने के लिए उपासना करनी चाहिए । उपासना में तप, संयम और एकाग्रता आदि जरूरी है । साधकों के लिए उपासना अत्यंत आवश्यक है । जीवन में कदम-कदम पर कैसी-कैसी मुश्किलें, कैसी-कैसी समस्याएँ आती हैं ! उनसे लड़ने के लिए, सामना करने के लिए भी बल चाहिए । वह बल उपासना-आराधना से मिलता है ।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामजी ने मानो इसका प्रतिनिधित्व किया है । सेतुबंध के समय शिव की उपासना करने के लिए श्रीरामचन्द्रजी ने रामेश्वर में शिवलिंग की स्थापना की थी, युद्ध के पहले नौ दिन चंडी की उपासना की थी । भगवान श्रीकृष्ण ने भी सूर्य की उपासना की थी । इन अवतारों ने हमे बताया है कि अगर आप मुक्ति पाना चाहते हो तो उपासना को अपने जीवन का एक अंग बना लो । बिना उपासना के विकास नहीं होता है । उपासना से चित्त शांत और प्रसन्न होता है, उसका बल बढ़ता है, और तभी आत्मज्ञान के वचन सुनने का और पचाने का अधिकारी बनता है । ऐसा अधिकारी चित्त ब्रह्म्वेता महापुरुषों के अनुभव को अपना अनुभव बना लेता है ।
विशेष :- नवरात्रि में जप, ध्यान, उपवास एवं जागरण का अधिक से अधिक लाभ लेना चाहिए । नवरात्रि में नवार्ण मंत्र “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे.” का पूरे नौ दिन का जप अनुष्ठान करना चाहिए । यदि कोई पूरे नवरात्रि के व्रत न कर सकता हो तो सप्तमी, अष्टमी और नवमीं तीन व्रत करके सम्पूर्ण नवरात्रि के व्रत का फल प्राप्त कर सकता है ।
गर्भिणी बहनें और प्रसूता मातायें अनशन अर्थात् बिना कुछ खाये उपवास न करें। एकादशी, जन्माष्टमी, शिवरात्रि तथा अन्य व्रतों में दूध, फल, पानक अथवा राजगीरे के आटे की रोटी, सिंघाड़े का हलवा या खीर, लौकी, कद्दू आदि की सब्जी, छाछ, नारियल, खजूर, मखाने इत्यादि का सेवन कर सकती है। मोरधन (सामा के चावल), साबूदाना, कुट्टू, आलू, शकरकंद नहीं खायें।
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