वटसावित्री पर्व नारी-सशक्तिकरण का पर्व है, जो को अपने सामर्थ्य की याद दिलाता है। यह आत्मविश्वास व दृढ़ता को बनाये रखने की प्रेरणा देता है, साथ ही ऊँचा दार्शनिक सिद्धान्त प्रतिपादित करता है कि हमें अपने मूल आत्म-तत्त्व की ओर, आत्म-सामर्थ्य की ओर लौटना चाहिए।
इसमें वटवृक्ष की पूजा की जाती है । विशेषकर सौभाग्यवती महिलाएँ श्रद्धा के साथ ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी से पूर्णिमा तक अथवा कृष्ण त्रयोदशी से अमावास्या तक तीनों दिन अथवा मात्र अंतिम दिन व्रत-उपवास रखती हैं । यह कल्याणकारक व्रत विधवा, सधवा, बालिका, वृद्धा, सपुत्रा, अपुत्रा सभी स्त्रियों को करना चाहिए ऐसा ‘स्कंद पुराण में आता है।
प्रथम दिन संकल्प करें कि ‘मैं मेरे पति और पुत्रों की आयु, आरोग्य व सम्पत्ति की प्राप्ति के लिए एवं जन्म-जन्म में सौभाग्य की प्राप्ति के लिए वट-सावित्री व्रत करती हूँ ।
वट के समीप भगवान ब्रह्माजी, उनकी अर्धांगिनी सावित्री देवी तथा सत्यवान व सती सावित्री के साथ यमराज का पूजन कर ‘नमो वैवस्वताय इस मंत्र को जपते हुए वट की परिक्रमा करें । इस समय वट को १०८ बार या यथाशक्ति सूत का धागा लपेटें । फिर निम्न मंत्र से सावित्री को अघ्र्य दें।
अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते । पुत्रान् पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणाघ्र्यं नमोऽस्तु ते ।।
निम्न श्लोक से वटवृक्ष की प्रार्थना कर गंध, फूल, अक्षत से उसका पूजन करें।
वट सिंचामि ते मूलं सलिलैरमृतोपमैः । यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोऽसि त्वं महीतले ।
तथा पुत्रैश्च पौत्रैश्च सम्पन्नं कुरु मां सदा ।।

महान पतिव्रता सावित्री के दृढ़ संकल्प व ज्ञानसम्पन्न प्रश्नोत्तर की वजह से यमराज ने विवश होकर वटवृक्ष के नीचे ही उनके पति सत्यवान को जीवनदान दिया था। इसीलिए इस दिन विवाहित महिलाएँ अपने सुहाग की रक्षा, पति की दीर्घायु और आत्मोन्नति हेतु वटवृक्ष की 108 परिक्रमा करते हुए कच्चा सूत लपेट कर संकल्प करती हैं। साथ में अपने पुत्रों की दीर्घायु और उत्तम स्वास्थ्य के लिए भी संकल्प किया जाता है। 

वटवृक्ष का महत्त्व

 

वटवृक्ष विशाल एवं अचल होता है। हमारे अनेक ऋषि-मुनियों ने इसकी छाया में बैठकर दीर्घकाल तक तपस्याएँ की हैं।यह दीर्घ काल तक अक्षय भी बना रहता है। इसी कारण दीर्घायु, अक्षय सौभाग्य, जीवन में स्थिरता तथा निरन्तर अभ्युदय की प्राप्ति के लिए इसकी आराधना की जाती है ।यह मन में स्थिरता लाने में मदद करता है एवं संकल्प को अडिग बना देता है। इस व्रत की नींव रखने के पीछे ऋषियों का यह उद्देश्य प्रतीत होता है कि अचल सौभाग्य एवं पति की दीर्घायु चाहने वाली महिलाओं को वटवृक्ष की पूजा उपासना के द्वारा उसकी इसी विशेषता का लाभ मिले और पर्यावरण सुरक्षा भी हो जाय। हमारे शास्त्रों के अनुसार वटवृक्ष के दर्शन, स्पर्श, परिक्रमा तथा सेवा से पाप दूर होते हैं तथा दुःख, समस्याएँ एवं रोग नष्ट होते हैं। ‘भावप्रकाश निघंटु’ ग्रंथ में वटवृक्ष को शीतलता-प्रदायक, सभी रोगों को दूर करने वाला तथा विष-दोष निवारक बताया गया है।

वटवृक्ष के दर्शन, स्पर्श तथा सेवा से पाप दूर होते हैं; दुःख, समस्याएँ तथा रोग जाते रहते हैं । अतः इस वृक्ष को रोपने से अक्षय पुण्य-संचय होता है । वैशाख आदि पुण्यमासों में इस वृक्ष की जड में जल देने से पापों का नाश होता है एवं नाना प्रकार की सुख-सम्पदा प्राप्त होती है ।वटवृक्ष हमें इस परम हितकारी चिंतनधारा की ओर ले जाता है कि किसी भी परिस्थिति में हमें अपने मूल की ओर लौटना चाहिए और अपना संकल्पबल, आत्म-सामर्थ्य जगाना चाहिए। इसी से हम मौलिक रह सकते हैं। मूलतः हम सभी एक ही परमात्मा के अभिन्न अंग हैं। हमें अपनी मूल प्रवृत्तियों को, दैवी गुणों को महत्त्व देना चाहिए। यही सुखी जीवन का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। वटसावित्री पर्व पर सावित्री की तरह स्वयं को दृढ़प्रतिज्ञ बनायें।

संतान प्राप्ति के लिए भी वट सावित्री व्रत वाले दिन बरगद के पेड़ की पूजा करते हैं। सावित्री ने यमराज से 100 पुत्रों की माता होने का वरदान मांगा था। यमराज ने उनको वरदान दे​ दिया, जिसकी वजह से सत्यवान के प्राण भी उनको लौटाने पड़े थे क्योंकि बिना सत्यवान के रहते सावित्री 100 पुत्रों की माता नहीं बन सकती थीं।

आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो वट वृक्ष दीर्घायु और अमरत्व के बोध के नाते भी स्वीकार किया जाता है। माना जाता है कि वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु एवं डालियों में शिव शंकर का निवास होता है। इसके अलावा इस पेड़ में बहुत सारी शाखाएं नीचे की तरफ लटकी हुई होती हैं, जिन्हें देवी सावित्री का रूप माना जाता है। यही वजह है कि इस वृक्ष की पूजा से सभी मनोकामनाएं बहुत ही जल्दी पूरी हो जाती है।

धार्मिक आस्थाओं के साथ ही ये वृक्ष पर्यावरण संरक्षण में भी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बरगद के पेड़ और इसकी पत्तियों में कार्बन डाइऑक्साइड को सोखने की सबसे ज्यादा क्षमता होती है। पीपल के समान ही ये वृक्ष भी ऑक्सीजन उत्सर्जित करते हैं। कहा जाता है कि एक हरा-भरा बरगद का पेड़ 20 घंटे से भी अधिक मात्रा में ऑक्सीजन देता है। इसलिए, बरगद का वृक्ष पर्यावरण के लिए किसी वरदान  से कम नहीं है।    

Hits: 6

Open chat
1
गर्भ संस्कार केन्द्र में सम्पर्क करें -
गर्भस्थ शिशु को सुसंस्कारी बनाने तथा उसके उचित पालन-पोषण की जानकारी देने हेतु पूज्य संत श्री आशारामजी बापू द्वारा प्रेरित महिला उत्थान मंडल द्वारा लोकहितार्थ दिव्य शिशु संस्कार अभियान प्रारंभ किया गया है ।