आधुनिक विज्ञान ने भी स्वीकारा...

हमारे ऋषि-मुनियों ने खोज करके अनादिकाल से यह बताया हुआ है कि बच्चे को गर्भावस्था में जिस प्रकार के संस्कार मिलते हैं, आगे चलकर वह वैसा ही बन जाता है। ऐसे कई उदाहरण इतिहास में पाये जाते हैं । इस युग में ये बातें लोगों के लिए आश्चर्यजनक थीं लेकिन अब वैज्ञानिकों ने शोधों के द्वारा इस बात को स्वीकार कर लिया है कि बच्चा गर्भावस्था से ही सीखने की शुरुआत कर देता है, खासकर उसे शब्दों का ज्ञान हो जाता है। कुछ शिशुओं पर जन्म के बात परीक्षण किये गये व उनके मस्तिष्क की क्रिया जाँची गयी तो पाया गया कि शिशु के मस्तिष्क ने गर्भावस्था के दौरान सुने हुए शब्दों को पहचानने के तंत्रकीय संकेत दिये।

शोध के मुताबिक गर्भावस्था के दौरान 7वें माह से गर्भस्थ शिशु शब्दों की पहचान कर सकता है और उन्हें याद रख सकता है। इतना ही नहीं, वह मातृभाषा के स्वरों को भी याद रख सकता है। हेलसिंकी विश्वविद्यालय (फिनलैण्ड) के न्यूरोसाइंटिस्ट आयनो पार्टानेन व उनके साथियों ने पाया कि ‘गर्भावस्था में सुनी गयी लोरी को जन्म के चार महीने बाद भी बच्चा पहचानता है या याद रखता है।’गर्भस्थ शिशु पर माँ के खान-पान, क्रियाकलाप, मनोभावों आदि भी प्रभाव पड़ता है और माँ द्वारा की गयी हर क्रिया से बच्चा सीखता है। परंतु उसके सीखने की सीमा को विज्ञान अभी पता लगाने में सक्षम नहीं हो पाया है।

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गर्भस्थ शिशु को सुसंस्कारी बनाने तथा उसके उचित पालन-पोषण की जानकारी देने हेतु पूज्य संत श्री आशारामजी बापू द्वारा प्रेरित महिला उत्थान मंडल द्वारा लोकहितार्थ दिव्य शिशु संस्कार अभियान प्रारंभ किया गया है ।