शिशु के जन्म के बाद उसके मस्तिष्क में सृष्टि की संवेदनाओं को ग्रहण करने के लिए 24 घंटे के अंदर निश्चित प्रकार की प्रक्रियाएँ शुरू हो जाती हैं | इन २४ घंटों में बालक सहजता से जो संस्कार सहजता से ग्रहण करता है, वे पूरे जीवन में फिर कभी ग्रहण नहीं कर सकता | इसलिए इस प्रारंभिक काल की मस्तिष्क की क्रियाशीलता और संवेदनशीलता का पूरा लाभ लेकर उसे सुसंस्कारों से भर देना चाहिए |
गर्भस्थ शिशु को सुसंस्कारी बनाने तथा उसके उचित पालन-पोषण की जानकारी देने हेतु पूज्य संत श्री आशारामजी बापू द्वारा प्रेरित महिला उत्थान मंडल द्वारा लोकहितार्थ दिव्य शिशु संस्कार अभियान प्रारंभ किया गया है ।