मानव की शिक्षा जन्म से नहीं; बल्कि गर्भावस्था से ही शुरु होती है । गर्भकाल में रोपे गये संस्काररूपी बीजों की पुष्टि संतान होने के बाद भी आवश्यक है । उसमें भी शैशवकाल एवं बाल्यकाल में (14 साल तक) दिये गये संस्कार तो सर्वाधिक प्रभावशाली होते हैं एवं जीवनभर अपना प्रभाव दिखाते रहते हैं । ये संस्कार उसके लिये जीवनभर की पूँजी बन जाते हैं । छोटे बच्चों का हृदय गीली मिटटी के लोंदे के समान होता है, उसे जैसे साँचे में डाला जायेगा, वो वैसा बन जायेगा ।
