मानव की शिक्षा जन्म से नहीं; बल्कि गर्भावस्था से ही शुरु होती है । गर्भकाल में रोपे गये संस्काररूपी बीजों की पुष्टि संतान होने के बाद भी आवश्यक है । उसमें भी शैशवकाल एवं बाल्यकाल में (14 साल तक) दिये गये संस्कार तो सर्वाधिक प्रभावशाली होते हैं एवं जीवनभर अपना प्रभाव दिखाते रहते हैं । ये संस्कार उसके लिये जीवनभर की पूँजी बन जाते हैं । छोटे बच्चों का हृदय गीली मिटटी के लोंदे के समान होता है, उसे जैसे साँचे में डाला जायेगा, वो वैसा बन जायेगा ।
कैसे करें नवजात शिशु में संस्कार सिंचन ?
शास्त्रों में महारानी मदालसा को एक आदर्श माता माना गया है । वे जब अपने पुत्रों को स्तनपान करातीं, पालने में सुलातीं, तब उनको आध्यात्मिक ज्ञान की, वेदांत की लोरियाँ सुनाया करती थीं : ‘हे पुत्र ! तू शुद्ध है, बुद्ध है, निरंजन है, संसार की माया से रहित है । यह संसार स्वप्नमात्र है । उठ, जाग, मोहनिद्रा का त्याग कर । तू सच्चिदानंद आत्मा है’ । मदालसा देवी हमेशा कहती थीं कि एक बार जो मेरे उदर से गुजरा, वह यदि दोबारा किसी स्त्री के उदर में लटके, मुक्त न होकर दूसरा जन्म ले, तो मेरे गर्भधारण को धिक्कार है । इस आर्यनारी ने, आदर्श माता ने अपने सभी पुत्रों को आत्मज्ञान से सम्पन्न बनाकर उन्हें संसार–सागर से पार करा दिया । इसलिए माँ बनो तो माँ मदालसा जैसी । स्तनपान कराना भी एक पूजा बना लो, सेवा बना लो । उस दौरान बच्चों को आत्मज्ञान की लोरियाँ सुनाओ । बच्चों को रोज़ तिलक लगाओ, मालिश व स्नान करते समय भगवन्नाम संकीर्तन सुनाओ । संध्यावंदन के समय उन्हें साथ बिठाओ । बच्चों में दैवी सम्पदा का वास हो, ऐसी कहानियां और प्रेरक प्रसंग सुनाओ । पास-पड़ोस के वातावरण के हलके संस्कार और बुरी आदतें बच्चों में प्रवेश न कर जाएँ, इसका ध्यान रखें । बच्चों को पैकेटबंद और जंक फ़ूड से दूर रखें । स्वयं को फ्री रखने के लिए बच्चों के साथ में मोबाइल देने की भूल कभी न करें ।
मातृशक्ति की महिमा अपार है । वे माताएँ ही तो थीं, जिन्होंने अपनी उँगली पकड़ाकर जगदाधार को चलना सिखाया ! जगत के पालक को दूध पिलाया और उस परम प्रेमदाता को गले से लगाकर वात्सल्य लुटाया ! कौसल्या जी एक माँ ही थीं, जिन्होंने भगवान राम को जन्म दिया ! यशोदाजी एक माँ ही तो थीं, जिनकी गोद में भगवान कृष्ण खेले ! देवहूति भी एक माँ ही थीं, जिन्होंने भगवान कपिल को बोलना-चलना सिखाया ! वो आदरणीय माँ महंगीबा ही थीं जिन्होंने पूज्य गुरुदेव को मक्खन-मिश्री देकर उन्हें ध्यान-साधना की ओर अग्रसर किया ।
माता को शिशु का प्रथम गुरु कहा गया है । माता वह किसान है जो बालक की हृदयरूपी भूमि पर सुसंस्कारों के बीज बोता है । ये ही बीज आगे चलकर विशाल वृक्षों के रूप में परिणत होते हैं । सीता माता के संस्कारों ने ही लव-कुश को इतना महान और पराक्रमी बनाया । माता सुनीति से सुसंस्कार एवं सत्प्रेरणा पाकर बालक ध्रुव ने अटल पदवी प्राप्त की । दैत्यराज हिरण्यकशिपु की पत्नी कयाधू की भक्तिनिष्ठा के प्रभाव से राक्षस कुल में भी प्रह्लाद जैसे भक्त का जन्म हुआ । मुगलों के अत्याचार के खिलाफ बिगुल बजाने वाले महाराष्ट्र के छत्रपति शिवाजी महाराज की महानता के पीछे उनकी माता जीजाबाई के अविस्मरणीय योगदान को कौन भुला सकता है ?
बालकों के जीवन, व्यवहार, अभिरुचि तथा क्रियाकलाप का अध्ययन करनेवाले मनोवैज्ञानिकों ने परीक्षणों के द्वारा अध्ययन करके बताया कि छोटे बच्चों की सम्पूर्ण क्रिया का आधार अनुकरण है । बच्चे प्रारंभ से ही जैसा आचरण अपने आसपास के लोगों को करते देखते हैं, वैसा ही वे भी करने लगते हैं, यहाँ तक कि यदि बालकों को कुछ भी न बताया जाये तो भी वे अपने अभिभावकों का लगातार अनुकरण करते रहते हैं । इसलिए माता-पिता के आचरण में सावधानी और सजकता जरुरी है । उसमें भी माँ का दायित्व पिता और परिवार की अपेक्षा होता है । माता–पिता को यदि अपने बालकों को चारित्र्यवान, सदाचारी बनाना हो, महान बनाना हो तो उन्हें स्वयं अपने उत्तम आचार, विचार और व्यवहार का आदर्श उनके समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए ।
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