जप

 मनानाम् त्रायते इति मंत्रः ।  मननत्राण धर्मणी मंत्रः ।

अर्थात् –  मनन की शक्ति यानी एकाग्रता प्रदान करके जप के द्वारा समस्त भयों का विनाश करके पूर्ण रक्षा करनेवाले शब्दों को मंत्र कहा जाता है । 

  • मंत्र के जो शब्द होते हैं, हमारे तन-मन एवं वातावरण पर उनका प्रभाव पड़ता है । हर शब्द का अपना प्रभाव होता है । जैसे हाथी शब्द का उच्चारण करते ही चार पैर एवं एक सूंड़वाली एक बड़ी सी आकृति हमारे मन के सामने प्रकट हो जाती है । कहने का तात्पर्य यह है कि हमारे मन के साथ शब्द का गहरा संबंध है । जब हम किसी को गाली देते हैं तो हमारे मन में अपने आप द्वेष, घृणा और अशांति पैदा हो जाती है । वैसे ही जब राम, कृष्ण या हरि ऊँ का उच्चारण करते हैं तो स्वाभाविक ही हमारे मन में शांति, आनंद, माधुर्य और उत्साह प्रगट हो जाता है । 
  • माता-पिता के विचार, व्यवहार, चिंतन व मानसिक स्थिति का गहरा प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर पड़ता है । विशेषरूप से माँ का प्रभाव अधिक पड़ता है क्योंकि शिशु  9 माह माँ की कोख में पलता है ।
  • माँ का अचेतन मन बच्चे के अचेतन मन से जुड़ा है । यानि जो चिंतन जो भावनाएँ जो विचार, जो आदतें, जो विश्वास, जो खान-पान माँ कर रही है वह सारा बच्चे की ओर ट्रांसफर होता रहता है । इसलिए दैवीय गुणों से सम्पन्न बालक की आशा करनेवाले माता-पिता को संयमी, उदार, क्षमाशील, विनम्र, उत्साही रहना अति आवश्यक है । इस हेतु सबसे सरल साधन है भगवन्नाम-जप एवं संकीर्तन । 

जप

मनानाम् त्रायते इति मंत्रः । मननत्राण धर्मणी मंत्रः ।

अर्थात् –  मनन की शक्ति यानी एकाग्रता प्रदान करके जप के द्वारा समस्त भयों का विनाश करके पूर्ण रक्षा करनेवाले शब्दों को मंत्र कहा जाता है । 

    • मंत्र के जो शब्द होते हैं, हमारे तन-मन एवं वातावरण पर उनका प्रभाव पड़ता है । हर शब्द का अपना प्रभाव होता है । जैसे हाथी शब्द का उच्चारण करते ही चार पैर एवं एक सूंड़वाली एक बड़ी सी आकृति हमारे मन के सामने प्रकट हो जाती है । कहने का तात्पर्य यह है कि हमारे मन के साथ शब्द का गहरा संबंध है । जब हम किसी को गाली देते हैं तो हमारे मन में अपने आप द्वेष, घृणा और अशांति पैदा हो जाती है । वैसे ही जब राम, कृष्ण या हरि ऊँ का उच्चारण करते हैं तो स्वाभाविक ही हमारे मन में शांति, आनंद, माधुर्य और उत्साह प्रगट हो जाता है । 

  • माता-पिता के विचार, व्यवहार, चिंतन व मानसिक स्थिति का गहरा प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर पड़ता है । विशेषरूप से माँ का प्रभाव अधिक पड़ता है क्योंकि शिशु  9 माह माँ की कोख में पलता है ।

  • माँ का अचेतन मन बच्चे के अचेतन मन से जुड़ा है । यानि जो चिंतन जो भावनाएँ जो विचार, जो आदतें, जो विश्वास, जो खान-पान माँ कर रही है वह सारा बच्चे की ओर ट्रांसफर होता रहता है । इसलिए दैवीय गुणों से सम्पन्न बालक की आशा करनेवाले माता-पिता को संयमी, उदार, क्षमाशील, विनम्र, उत्साही रहना अति आवश्यक है । इस हेतु सबसे सरल साधन है भगवन्नाम-जप एवं संकीर्तन । 

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गर्भस्थ शिशु को सुसंस्कारी बनाने तथा उसके उचित पालन-पोषण की जानकारी देने हेतु पूज्य संत श्री आशारामजी बापू द्वारा प्रेरित महिला उत्थान मंडल द्वारा लोकहितार्थ दिव्य शिशु संस्कार अभियान प्रारंभ किया गया है ।