कौशल्यानंदन श्रीराम
श्रीरामचन्द्र जी परम ज्ञान में नित्य रमण करते थे । ऐसा ज्ञान जिनको उपलब्ध हो जाता है, वे आदर्श पुरुष हो जाते हैं । मित्र हो तो श्रीराम जैसा हो । उन्होंने सुग्रीव से मैत्री की और उसे किष्किंधा का राज्य दे दिया और लंका का राज्य विभीषण को दे दिया । कष्ट आप सहें और यश और भोग सामने वाले को दें, यह सिद्धान्त श्रीरामचन्द्रजी जानते हैं ।
शत्रु हो तो रामजी जैसा हो । रावण जब वीरगति को प्राप्त हुआ तो श्रीराम कहते हैं- ‘हे विभीषण ! जाओ, पंडित, बुद्धिमान व वीर रावण की अग्नि संस्कार विधि सम्पन्न करो ।”
विभीषणः “ऐसे पापी और दुराचारी का मैं अग्नि-संस्कार नहीं करता ।”
‘रावण का अंतःकरण गया तो बस, मृत्यु हुई तो वैरभाव भूल जाना चाहिए । अभी जैसे बड़े भैया का, श्रेष्ठ राजा का राजोचित अग्नि-संस्कार किया जाता है ऐसे करो ।”
बुद्धिमान महिलाएँ चाहती हैं कि ‘पति हो तो राम जी जैसा हो’ और प्रजा चाहती है, ‘राजा हो तो राम जी जैसा हो ।’ पिता चाहते हैं कि ‘मेरा पुत्र हो तो राम जी के गुणों से सम्पन्न हो’ और भाई चाहते हैं कि ‘मेरा भैया हो तो राम जी जैसा हो ।’ रामचन्द्र जी त्याग करने में आगे और भोग भोगने में पीछे ।
तुमने कभी सुना कि राम, लक्ष्मण, भरत शत्रुघ्न में, भाई-भाई में झगड़ा हुआ ? नहीं सुना ।
श्रीराम जी का चित्त सर्वगुणसम्पन्न हैं । कोई भी परिस्थिति उनको द्वन्द्व या मोह में खींच नहीं सकती । वे द्वन्द्वातीत, गुणातीत, कालातीत स्वरूप में विचरण करते हैं ।
रमन्ते योगिनः यस्मिन् स रामः ।
जिनमें योगी लोगों का मन रमण करता है वे हैं रोम-रोम में बसने वाले अंतरात्मा राम । वे कहाँ प्रकट होते हैं ? कौसल्या की गोद में, लेकिन कैसे प्रकट होते हैं कि दशरथ यज्ञ करते हैं अर्थात् साधन, पुण्यकर्म करते हैं और उस साधन पुण्य, साधन यज्ञ से उत्पन्न वह हवि बुद्धिरूपी कौसल्या लेती है और उसमें सच्चिदानंद राम का प्राकट्य होता है ।
धन्य है श्रीराम का दिव्य चरित्र, जिसका विश्वास शत्रु भी करता है और प्रशंसा करते थकता नहीं ! प्रभु श्रीराम का पावन चरित्र दिव्य होते हुए इतना सहज-सरल है कि मनुष्य चाहे तो अपने जीवन में भी उसका अनुकरण कर सकता है ।
श्रीराम जिस दिन दशरथ-कौशल्या के घर साकार रूप में अवतरित हुए उसी दिन को श्रीरामनवमी के पावनवर्ष के रूप में मनाते हैं भारतवासी ।
श्रीरामनवमी दिव्य संतान की चाह रखनेवालें माता-पिता को यही सीख देती हैं की यदि आप भी दिव्य संतान चाहते हैं तो माता कौशल्या व राजा दशरथ जी कि भांति अपने जीवन को धर्ममय, तपमय, यज्ञमय बनाइए श्रीरामजी के दिव्य गुणों का स्मरण कीजिए और शुभ संकल्प कीजिए कि हमारे घर भी ऐसा प्रकाशपुंज अवतरित हो अपने सद्गुणों से आपके घर ही नहीं वरन् सारे संसार को प्रकाशित कर दे ।
श्रीरामनवमी के पावन पर्व पर उन्हीं पूर्णाभिराम श्रीराम के दिव्य गुणों को अपने जीवन में अपनाकर, श्रीरामतत्त्व की ओर प्रयाण करने के पथ पर अग्रसर हों, यही अभ्यर्थना… यही शुभकामना…..
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