ये मोबाइल नहीं; बीमारियों का घर है...

आधुनिक विज्ञान की यह विशेषता है कि वह अपने हर नये आविष्कार के साथ पहले सुविधाओं का पॅकेजभेजता है, जिसका लाभ लेनेवालों को पीछे से मुफ्त में मिलता है घातक दुष्परिणामों का पॅकेज । मोबाइल फोन भी इस बात से अछूता नहीं हैयह सिद्ध कर रहे हैं आज के वैज्ञानिक ।

आधुनिक विज्ञान कह रहा है -

अनेक वैज्ञानिक प्रयोगों से प्रमाणित हो चुका है कि मोबाइल से प्रसारित विद्युत-चुंबकीय विकिरण शरीर में न केवल हानिकारक उष्णता पैदा करते हैं बल्कि इनसे कैंसर, मस्तिष्क ट्यूमर, नपुंसकता, आनुवांशिक विकृतियाँ, अनिद्रा, याददाश्त में कमी, सिरदर्द आदि अनेक भयानक रोग भी होते हैं ।

स्वीडन के डॉ. जोनास हार्डेल ने मस्तिष्क-ट्यूमर के १६१७ रोगियों की जाँच से पाया कि कैंसर का खतरा उसी पैमाने में बढ़ता है जितनी तीव्रता से (प्रतिदिन जितना समय) मोबाइल का उपयोग किया जाता है । श्रवण से संबंधित नस में ट्यूमर होने का खतरा भी ३०% बढ़ जाता है जिससे स्थायी बहरापन हो सकता है ।

फिनलैंड की शोध संस्था ‘रेडिएशन एण्ड न्यूक्लियर सेफ्टी अथॉरिटी’ ने पाया कि मस्तिष्क के जिस ओर (दायें-बायें) मोबाइल सटाकर प्रयोग किया जाता है, उस तरफ मस्तिष्क-कैंसर होने की संभावना ३९% बढ़ जाती है

‘यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन’ के शोधकर्ताओं ने चूहों पर प्रयोग किया व देखा कि मोबाइल की तरंगों से उनकी प्रजनन-क्षमता इतनी प्रभावित हो जाती है कि करीब पाँच पीढ़ियों बाद वह पूरी तरह नष्ट हो जाती है ।

ऑस्ट्रेलिया की ‘मेलबोर्न यूनिवर्सिटी’ के शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुँचे कि मोबाइल व अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से प्रसारित विद्युत-चुंबकीय तरंगों की सघनता से इन तरंगों की अदृश्य धुंध उत्पन्न होती है, जिससे मानसिक अवसाद एवं उच्च रक्तचाप होकर परिणामस्वरूप ऐसे क्षेत्र में आत्महत्या की दर में वृद्धि हो सकती है ।

इजराईल के डॉ. सीगाल सादेत्स्की के अनुसार मोबाइल के प्रयोग से लार ग्रंथी में कैंसर होने की संभावना ५० से ५८% बढ़ जाती है । शोध में यह भी बताया गया कि ग्रामीण क्षेत्रों में मोबाइल के इस्तेमाल से स्वास्थ्य को अधिक खतरा है क्योंकि आसपास में कम एंटीना होने के कारण मोबाइल से प्रसारित तरंगें अधिक शक्तिशाली होती हैं ।

मोबाइल से सर्वाधिक खतरा है बच्चों को । स्वीडन में हुए शोध से स्पष्ट हुआ कि २० वर्ष की उम्र से पूर्व ही इसका प्रयोग शुरू करनेवालों को मस्तिष्क कैंसर का सर्वाधिक खतरा है

आपका समय, आपका जीवन अनलिमिटेड नहीं है...

‘अति सर्वत्र वर्जयेत्’ को भूलकर मोबाइल के अमर्यादित इस्तेमाल से सामाजिक समस्याएँ भी उत्पन्न हो रही हैं । अधिकांश समय मोबाइल पर की जानेवाली बातें इतनी आवश्यक नहीं होतीं कि उनके लिए घर या ऑफिस पहुँचने का इंतजार न किया जा सके । आज के तनावग्रस्त जीवन के लिए मोबाइल काफी जिम्मेदार है । विश्रांति या आत्मचिंतन का समय तो मोबाइल खा जाता है । मोबाइल ने निजी व व्यावसायिक जीवन का अंतर लगभग समाप्त कर दिया है ।

कहते हैं यह लोगों में दूरियाँ मिटाता है पर देखने में तो इसके विपरीत ही आता है । आज घर में हर सदस्य के पास एक या एक से अधिक मोबाइल है । व्यक्ति मोबाइल पर तो घंटों बातें करता है पर अपने निकट बैठे व्यक्ति को पलक उठाकर देखता तक नहीं । मोबाइल हाथ में आते ही व्यक्ति अपनी ही दुनिया में खो जाता है । बतलाइये, इससे मनुष्य-मनुष्य में फासला बढ़ा या घटा ? कार या स्कूटर चलाते हुए मोबाइल का इस्तेमाल कर कइयों ने तो अपने कुटुम्बियों से हमेशा के लिए फासला बना लिया !

बच्चों के स्वास्थ्य एवं अध्ययन में व्यवधान आने से कई शिक्षा बोर्डों व शिक्षण संस्थाओं ने मोबाइल के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी है ।

मोबाइल कंपनियाँ कुछ समय ‘आउटगोइंग फ्री’ या ‘इनकमिंग फ्री’ देती हैं लेकिन बोलने में आपकी ओजशक्ति कितनी खर्च होती है, आपका अमूल्य समय कितना बर्बाद होता है और मोबाइल से आपके स्वास्थ्य की कितनी भारी हानि होती है ? यह बात भी सोचो । अन्यथा आउटगोइंग फ्री या इनकमिंग फ्री की भ्रांति में फँसकर आप अपना भारी घाटा कर बैठोगे । जिसकी पूर्ति किसी भी धन से नहीं हो पायेगी ।

मोबाइल के विज्ञापनों में अक्सर आता है : ‘सिर्फ इतने पैसे भरो और अनलिमिटेड बात करो ।’ पर याद रखिये आपका समय, आपका जीवन अनलिमिटेड नहीं है । अंतिम घड़ी में एक श्वास भी आप अधिक नहीं ले सकते । एक शब्द भी अधिक नहीं बोल सकते, भले ही आपके सिरहाने मोबाइलों का ढेर लगा हो । आपके जीवन का क्षण-क्षण कीमती है और ईश्वर की प्राप्ति के लिए है । अपने कीमती समय को कीमती-में-कीमती परमात्मा के भजन-सुमिरन, सत्संग, सत्कर्म में लगायें; मोबाइल की मुसीबतों में न उलझें ।

"मोबाइल फोन का उपयोग ऐसे करो जैसे शौचालय का..."

एक अनुसन्धान के अनुसार, मोबाइल से निकलनेवाली रेडिएशन कोशिकाओं में स्थित डीएनए (DNA) को हानि  पहुँचाती हैं, साथ ही इनसे शुक्राणुओं की संख्या भी कम होती है । गर्भावस्था में मोबाइल के अधिक उपयोग से शिशु में चंचलता बढ़ती है । मोबाइल की किरणें गर्भस्थ शिशु के समुचित विकास में बाधक बनती हैं ।

कई संशोधन से यह सिद्ध हुआ है कि मोबाइल फोन से निकलनेवाले Radio frequency radiations गर्भस्थ शिशु में तंत्रिका विकासात्मक विकार (Neuro Developmental Disorder) उत्पन्न करते हैं । इससे बालकों की ग्रहण-शक्ति, स्मृति-शक्ति, आत्मनियंत्रण की क्षमता का ह्रास होता है व भावनात्मक विकास अवरुद्ध होता है । अनुसंधानकर्ता डॉ. बोरिस पेट्रिक वास्को ने संशोधन में पाया कि मोबाइल फोन की ध्वनि व स्पंदन (Vibrations) से गर्भस्थ शिशु कई बार चौंक कर जग जाते है, इससे उनकी नींद मे बाधा उत्पन्न होती है । फोन की आवाज से शिशु घबराकर सिर घुमाते हैं, मुँह खोलते हैं अथवा आँखें झपकाते हैं ।

डॉ. बोरिस कहते हैं कि यह उपकरण बालक से जितना दूर रखेंगे, उतना इसकी दुष्प्रभाव कम होगा । दिव्य संतान की इच्छा रखनेवाले माता-पिता का यह कर्तव्य है कि वे गर्भस्थ शिशु की हर हानिकारक वस्तु से रक्षा करें । जरा-सी लापरवाही आपकी संतान की आयु, बल, बुद्धि की हानि का निमित्त हो सकती है ।

अब प्रश्न उठता है कि क्या गर्भवती बहनों को मोबाईल का प्रयोग नहीं करना चाहिए ?

परम पूज्य बापूजी का स्पष्ट संदेश है कि “मोबाइल फोन का उपयोग ऐसे करो जैसे शौचालय का…” आवश्यकता पड़ने पर उपयोग किया फिर तुरंत शरीर से दूर रख दिया । जितना हो सके लेंडलाइन फोनों का प्रयोग करें । मोबाइल पर बात करते समय मोबाइल मस्तिष्क के अधिक निकट (कान के पास) ना पकड़ें । यथासंभव स्पीकर का उपयोग करें या फिर earphone का प्रयोग करें । अपनी बात को कम-से-कम शब्दों में पूरा करने का प्रयास करें । अँधेरे में मोबाइल फोन का उपयोग न करें ।  

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गर्भस्थ शिशु को सुसंस्कारी बनाने तथा उसके उचित पालन-पोषण की जानकारी देने हेतु पूज्य संत श्री आशारामजी बापू द्वारा प्रेरित महिला उत्थान मंडल द्वारा लोकहितार्थ दिव्य शिशु संस्कार अभियान प्रारंभ किया गया है ।