“भारत को विश्वमानव की पीड़ा हरनेवाला बनाना है और बनेगा… ऐसी कई आत्माएँ प्रकट हो चुकी हैं, और कई होंगी । मेरे करोड़ों बच्चे भारत को विश्वगुरु बनायेंगे । आनेवाले वर्षों में भारत विश्वगुरु के पद से अवश्य सम्मानित होगा, इसमें कोई संदेह नहीं है ।” ये ब्रह्ममसंकल्प है ज्ञान, योग व भक्ति के अनुभवनिष्ठ महापुरुष पूज्यपाद संत श्री आशारामजी बापू का । 

पूज्य बापूजी कहते है कि स्वस्थ, सुखी एवं सम्मानित जीवन मनुष्यमात्र की माँग है और इसे पूर्ण करने के लिए समग्र विश्व में केवल भारतीय संस्कृति के दिव्य संस्कारों का ज्ञान ही सक्षम है ।
मनुष्य के जीवन-निर्माण हेतु संस्कारों की भूमिका माँ के गर्भ से ही प्रारम्भ होती है, माँ का गर्भ एक तरह से शिशु की प्रथम पाठशाला है, जहाँ शिशु के अचेतन मन पर उसके भावी व्यक्तित्व की भूमिका तैयार होती है । गर्भावस्था में मिले संस्कार मनुष्य के जीवन की सबसे बड़ी धरोहर होते हैं । दिव्य शिशु संस्कार केन्द्र का लक्ष्य है एक आदर्श एवं संस्कारी समाज का निर्माण करना, मनुष्य जीवन की सबसे मह्त्त्वपूर्ण कड़ी को मजबूती देना है । जिस प्रकार अच्छे पौधे के लिए हम अच्छे बीज का चयन कर उसे बोते हैं और बड़े होने तक देखभाल करते हैं उसी प्रकार महान जीवन के निर्माण हेतु भी माँ के गर्भ से ही संस्कारों का बीज शिशु में बोना होगा जिससे भविष्य में हमें एक श्रेष्ठ नागरिक प्राप्त हो सके । इसके लिए आधुनिक युग में माताओं को संस्कारों की सही परिभाषा व संतानों के उज्जवल भविष्य निर्माण की विधि समझाकर भारत की भावी पीढ़ी को दिव्य बनाने के उद्देश्य से महिला उत्थान मंडल द्वारा दिव्य शिशु संस्कार केन्द्रों की शुरुआरत की गयी है । पूज्य बापूजी का संकल्प है कि भारत विश्वगुरु बने अतः इस संकल्प को पूर्ण करने के भगीरथ सेवाकार्यों में सहभागी होनेवालों के द्वारा समाज व देश का बहुत हित होगा ।

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गर्भ संस्कार केन्द्र में सम्पर्क करें -
गर्भस्थ शिशु को सुसंस्कारी बनाने तथा उसके उचित पालन-पोषण की जानकारी देने हेतु पूज्य संत श्री आशारामजी बापू द्वारा प्रेरित महिला उत्थान मंडल द्वारा लोकहितार्थ दिव्य शिशु संस्कार अभियान प्रारंभ किया गया है ।