शिशु की सुरक्षा के लिए रक्षा-कवच
माता यदि गर्भकाल में रक्षा-कवच (आध्यात्मिक तरंगों का आभामंडल) बनाती है तो उस पर बाह्य हलके वातावरण व भूत-प्रेत, बुरी आत्माओं का प्रभाव नहीं पड़ता। साथ ही गर्भस्थ शिशु के आसपास भी सकारात्मक ऊर्जा से सम्पन्न आभामंडल विकसित होता है।
रक्षा-कवच धारण करने की विधिः प्रातः और सायं के संध्या-पूजन से पहले या बाद में उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुँह करके कम्बल आदि गर्म आसन पर सुखासन, पद्मासन या सिद्धासन में बैठे। मेरुदंड सीधा हो। आँखें आधी खुली, आधी बन्द रखे। गहरा श्वास लेकर भीतर रोक के रखे। ‘ॐ’ या अपने इष्टमंत्र अथवा अपने गुरुमंत्र का जप करते हुए दृढ़भावना करे कि ‘मेरे इष्ट की कृपा का शक्तिशाली प्रवाह मेरे अंदर प्रवेश कर रहा है और मेरे चारों ओर सुदर्शन चक्र सा एक इन्द्रधनुषी प्रकाश घना होता जा रहा है, दुर्भावनारूपी अंधकार विलीन हो गया है। सात्त्विक प्रकाश-ही-प्रकाश छाया है। सूक्ष्म आसुरी शक्तियों से मेरी रक्षा करने के लिए वह रश्मिल चक्र सक्रिय है। मैं पूर्णतः निश्चिंत हूँ।’ ऐसा एक मानसिक चित्र बना ले।
श्वास जितनी देर भीतर रोक सके, रोके। मन-ही-मन उक्त भावना को दोहराये। अब धीरे-धीरे ‘ॐ….’ का दीर्घ उच्चारण करते हुए श्वास बाहर निकाले और भावना करे कि ‘मेरे सारे दोष, विकार भी बाहर निकल रहे हैं। मन-बुद्धि शुद्ध हो रहे हैं।’ श्वास खाली होने के बाद तुरंत श्वास न ले। यथाशक्ति बिना श्वास रहे और भीतर-ही-भीतर ‘हरि ॐ…. हरि ॐ….’ या इष्टमंत्र का मानसिक जप करे। ऐसे 10 प्राणायाम के साथ उच्च स्वर से ‘ॐ….’ का गुंजन करते हुए इन्हीं दिव्य विचारों-भावनाओं से अपने चहुँओर इन्द्रधनुषी आभायुक्त प्राणमय सुरक्षा-कवच को प्रतिष्ठित करे, फिर शांत हो जाय, सब प्रयास छोड़ दे। कुछ सप्ताह ऐसा करने से आपके रोमकूपों से जो आभा निकलेगी उसका एक रक्षा-कवच बन जायेगा। जो आपके गर्भ को सुरक्षित रखेगा।
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