वैदिक रक्षाबंधन
हमारे ऋषियों ने बहुत सूक्ष्मता से विचारा होगा कि मानवीय विकास की सम्भावनाएँ कितनी ऊँची हो सकती हैं और असावधानी रहे तो मानवीय पतन कितना निचले स्तर तक और गहरा हो सकता है । ऐसे रक्षाबन्धन महोत्सव को खोजनेवाले ऋषियों को प्रणाम है !
रक्षाबन्धन की पूर्णिमा को ‘नारियली पूनम’ भी कहते हैं । सामुद्रिक धंधा करनेवाले लोग सागर में इस भाव से नारियल अर्पण करते हैं कि ‘अगर आँधी-तूफान आये तो हमारी देह की बलि न चढ़े, इसलिए हम आपको यह बलि अर्पण कर देते हैं ।’
हम कोई शुभ कर्म करते हैं तो ब्राह्मण रक्षासूत्र हमारे दायें हाथ में बाँधते हैं । ब्राह्मण ‘श्रावणी पूर्णिमा’ मनाते हैं और जनेऊ बदलते हैं । जनेऊ में 3 धागे होते हैं। 1-1 में 9-9 गुण… 9×3=27. प्रकृति के गुणों से और बंधनों से पार होने के लिए जनेऊ धारण किया जाता है ।
रक्षाबन्धन की पूर्णिमा उच्च उद्देश्य से मन को बाँधने की प्रेरणा देनेवाली पूर्णिमा है । रक्षाबन्धन पर बहन भाई को रक्षासूत्र (मौली) बाँधती है । रक्षाबंधन में कच्चा धागा बाँधते हैं लेकिन यह द्र्ढ संकल्पशक्ति, पवित्र प्रेम और पक्के हित का बंधन है । तिलक करते समय बहन संकल्प करे कि मेरा भाई त्रिलोचन बने, अक्षत लगाते समय भाव करे कि मेरे भाई का ज्ञान, गुरुभक्ति अक्षय हो, रक्षा सूत्र बांधते हुए संकल्प करे कि मेरा भाई त्रिविध ताप से रक्षित हो और तीनों गुणों से पार अपने वास्तविक स्वरूप में स्थित हो ….। रक्षाबंधन के दिन बांधा गया रक्षा सूत्र भाई की वर्षभर रक्षा करता है ।
रक्षाबंधन के अवसर पर घर के बड़े बुजुर्ग गर्भवती बहन को रक्षा सूत्र बांधकर गर्भस्थ शिशु की रक्षा का शुभ संकल्प करें ।
ऋषि अपने शिष्यों के लिए शुभकामना करते हैं । इसी प्रकार शिष्य भी अपने गुरुवर के लिए शुभकामना करते हैं कि ‘गुरुवर ! आपकी आयु दीर्घ हो, आपका स्वास्थ्य सुदृढ़ हो । गुरुज्ञान का प्रचार-प्रसार हो, लाखों लोग गुरुदेव के दैवी कार्य से लाभान्वित हों । गुरुदेव ! हमारे जैसे करोड़ों-करोड़ों को तारने का कार्य आपके द्वारा सम्पन्न हो।’
हम गुरुदेव से प्रार्थना करें- ‘बहन की रक्षा भले भाई थोड़ी कर ले लेकिन गुरुदेव ! हमारे मन और बुद्धि की रक्षा तो आप हजारों भाइयों से भी अधिक कर पायेंगे । आप हमारी श्रद्धा की रक्षा कीजिये। विषय-विकारों से हमारी रक्षा कीजिये । जब तक हम ईश्वर तक न पहुँचे, तब तक गुरुवर ! आप हमें सँभालना ।’
सर्व मंगलकारी वैदिक रक्षासूत्र
भारतीय संस्कृति में ‘रक्षाबन्धन पर्व’ की बड़ी भारी महिमा है । इतिहास साक्षी है कि इसके द्वारा अनगिनत पुण्यात्मा लाभान्वित हुए हैं फिर चाहे वह वीर योद्धा अभिमन्यु हो या स्वयं देवराज इन्द्र हो । इस पर्व ने अपना एक क्रांतिकारी इतिहास रचा है। रक्षासूत्र मात्र एक धागा नहीं बल्कि शुभ भावनाओं व शुभ संकल्पों का पुलिंदा है। यही सूत्र जब वैदिक रीति से बनाया जाता है और भगवन्नाम व भगवद्भाव सहित शुभ संकल्प करके बाँधा जाता है तो इसका सामर्थ्य असीम हो जाता है ।
कैसे बनायें वैदिक राखी ?
वैदिक राखी बनाने के लिए एक छोटा सा ऊनी, सूती या रेशमी पीले कपड़े का टुकड़ा लें । उसमें दूर्वा, अक्षत (साबुत चावल) केसर या हल्दी, शुद्ध चन्दन. सरसों के साबुत दाने-इन पाँच चीजों को मिलाकर कपड़े में बाँधकर सिलाई कर दें। फिर कलावे से जोड़कर राखी का आकार दें। सामर्थ्य हो तो उपरोक्त पाँच वस्तुओं के साथ स्वर्ण भी डाल सकते हैं।
वैदिक राखी का महत्त्व
वैदिक राखी में डाली जानेवाली वस्तुएँ हमारे जीवन को उन्नति की ओर ले जाने वाले संकल्पों को पोषित करती हैं ।
दूर्वाः
जैसे दूर्वा का एक अंकुर जमीन में लगाने पर वह हजारों की संख्या में फैल जाती है, वैसे ही ‘हमारे भाई या हितैषी के जीवन में भी सदगुण फैलते जायें, बढ़ते जायें…..’ इस भावना का द्योतक है दूर्वा। दूर्वा गणेश जी की प्रिय है अर्थात् हम जिनको राखी बाँध रहे हैं उनके जीवन में आने वाले विघ्नों का नाश हो जाय।
अक्षत (साबुत चावल):
हमारी भक्ति और श्रद्धा भगवान के, गुरु के चरणों में अक्षत हो, अखण्ड और अटूटट हो, कभी क्षत-विक्षत न हों – यह अक्षत का संकेत है। अक्षत पूर्णता की भावना के प्रतीक हैं। जो कुछ अर्पित किया जाय, पूरी भावना के साथ किया जाय।
केसर:
केसर की प्रकृति तेज होती है अर्थात् हम जिनको यह रक्षासूत्र बाँध रहे हैं उनका जीवन तेजस्वी हो। उनका आध्यात्मिक तेज, भक्ति और ज्ञान का तेज बढ़ता जाय। ।
हल्दी:
पीसी हल्दी का भी प्रयोग कर सकते हैं। हल्दी पवित्रता व शुभ का प्रतीक है। यह नजरदोष न नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करती है तथा उत्तम स्वास्थ्य व सम्पन्नता लाती है ।
चंदनः
चन्दन दूसरों को शीतलता और सुगंध देता है। यह इस भावना का द्योतक है कि जिनको हम राखी बाँध रहे हैं, उनके जीवन में सदैव शीतलता बनी रहे, कभी तनाव न हो। उनके द्वारा दूसरों को पवित्रता, सज्जनता व संयम आदि की सुगंध मिलती रहे। उनकी सेवा-सुवास दूर तक फैले ।
सरसों:
सरसों तीक्ष्ण होती है। इसी प्रकार हम अपने दुर्गुणों का विनाश करने में, समाज द्रोहियों को सबक सिखाने में तीक्ष्ण बनें ।
रक्षासूत्र या कलावा क्यों धारण करें?
शास्त्र मत है कि मौली या कलावा बाँधने से त्रिदेव – ब्रह्माजी, विष्णुजी और शिवजी तथा तीनों देवियों – लक्ष्मीजी, दुर्गाजी और सरस्वतीजी की कृपा प्राप्त होती है ।
शरीर-विज्ञान की दृष्टि से मौली अर्थात् रक्षासूत्र बाँधने से त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) का शरीर पर आक्रमण नहीं होता, जिससे स्वास्थ्य उत्तम बना रहता है ।
कलावा (रक्षासूत्र) इसलिए भी बाँधते हैं कि आपके शरीर में छुपे दोष या कोई रोग, जो आपके शरीर को अस्वस्थ कर रहे हों, उनके कारण आपके मन-बुद्धि भी निर्णय लेने में थोड़े अस्वस्थ न रह जायें ।
एक्यूप्रेशर की दृष्टि से देखा जाय तो व्यक्ति चिंतातुर, भयभीत होता है तो दिल की धड़कनें बढ़ जाती हैं और उनको नियंत्रित करने के लिए दायें हाथ पर बँधा कलावा बड़ा काम करता है । उसमें शुभकामना भी है और नाड़ी-नियंत्रण भी है ।
राखी पूर्णिमा के दिन यज्ञ की भभूत शरीर को लगायें, मृत्तिका (मिट्टी) लगाकर स्नान करें, फिर गाय का गोबर लगा के स्नान करें। यह कितने ही दोषों एवं चर्मरोगों को खींच लेगा। इससे शारीरिक शुद्धि हो गयी। पंचगव्य पीने का दिन राखी पूनम है। और दिनों में भी पिया जाता है लेकिन इस दिन का कुछ विशेष महत्त्व है।
भद्राकाल के बाद ही राखी बँधवायें
इस राखी बाँधने का शुभ मुहुर्त प्रातः 6:12 से 7:50 तक एवं रात्रि 8:52 से 9:59 तक ही है । इसके अलावा का बाकी समय भद्राकाल होने से अशुभ है ।
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