सत्संग

सत्संग क्या है ?

सत्यस्वरूप जो पहले था, अभी है, बाद में रहेगा उसको जानने की रुचि होना यह सत्संग है । सत्संग… हिंदी में ‘संग’ माने साथ, मिलन । पति-पत्नी संग जा रहे हैं, भाई-भाई संग जा रहे हैं… मिलाप को संग बोलते हैं परंतु संस्कृत में संग बोलते हैं आसक्ति को, प्रीति को । संसार में आसक्ति को नष्ट करनेवाला और सारस्वरूप परमात्मा में प्रीति करानेवाला सुमिरन, चिंतन, सत्कर्म, इसको ‘सत्संग’ बोलते हैं । भगवान की कथा सुनना तो सत्संग है लेकिन शबरी भीलन गुरु के द्वार पर झाड़ू लगा रही है वह भी सत्संग है और राम जी गुरुद्वार पर गाय चरा रहे हैं वह भी सत्संग है ।

सत्संग से क्या लाभ ?

सत्संग ऐसा परम औषध है जो बड़े-से-बड़े दुःखद प्रारब्ध को भी हँसते-हँसते सहन करने की शक्ति देता है और अच्छे से अच्छे अनुकूल प्रारब्ध को भी अनासक्त भाव से भोगने का सामर्थ्य देता है । उन्हीं का जीवन धन्य है जो ब्रह्मवेत्ता संतों का सत्संग सुनते हैं, उसे समझ पाते हैं और जीवन में उतार पाते हैं । जिनके जीवन में सत्संग नहीं है वे छोटी-छोटी बात में परेशान हो जाते हैं, घबरा जाते हैं किंतु जिनके जीवन में सत्संग है वे बड़ी-से-बड़ी विपदा में भी रास्ता निकाल लेते हैं और बलवान होते हैं, सम्पदा में फँसते नहीं, विपदा में दबते नहीं । ऐसे परिस्थिति विजयी आत्मारामी हो जाते हैं ।

दुनिया में सत्संग एक अद्वितीय रत्न है, कोहिनूर है, पारस मणि है । ये सब तो पत्थर हैं… जबकि सत्संग तो मुक्ति की जीती जागती ज्योति है । अगर आप नियमित रूप से सत्संग व शास्त्र सुनेंगे तो आपका मन फालतू के विचारों में नहीं रहेगा । मनोराज से बचोगे और आप जो सत्संग सुनेंगे उसी के विचारों में आपका मन लगा रहेगा । सत्संग के वचनों के बार-बार मनन से आपमें विवेक-वैराग्य स्वत: ही जागृत होगा । आपका मन हल्की कामनाओं और कुछ आकर्षणों से बचकर सत्संग-सुधा के पान में संलग्न रहेगा । ठीक ही कहा है सत्संग से वंचित होना महान पापों का फल है ।

सत्संग कैसे सुनें ?

किसी एकांत स्थान में एक ही आसन में स्थिर बैठकर एकाग्र मन से सत्संग सुनना चाहिए । सत्संग सुनने के लिए मात्र कान ही पर्याप्त नहीं हैं, आपका हृदय (मन) भी पूरी तरह से वहीं होना चाहिए । जीभ तालू में लगाकर रखें तो सुना हुआ सत्संग याद भी रहेगा । सत्संग ऐसे सुनें जैसे कोई अपनी निंदा सुनता है, एक भी शब्द छूटना नहीं चाहिए । हो सके तो सत्संग सुनते समय नोटबुक और पेन साथ रखना चाहिए । महत्वपूर्ण बिन्दुओं को लिख लेना चाहिए और चलते-फिरते उसका चिंतन-मनन करना चाहिए ।

तो क्या करें ?

यदि आप एक दिव्य गुणों से संपन्न संतान की चाहना रखते हैं तो दोनों पति-पत्नी को प्रतिदिन कम-से-कम 10 से 15 मि. सत्संग जरुर-जरुर सुनना चाहिए । श्रवण के बाद उसका चिंतन-मनन और निदिध्यासन के द्वारा उसे अपने जीवन में आत्मसात करना चाहिए ।

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