भगवन्नाम
गर्भस्थ शिशु को गर्भ में अपने अनेक पूर्व जन्मों का स्मरण रहता है । इसलिए हमारे शास्त्रों में गर्भस्थ शिशु को ऋषि की संज्ञा दी गई है | गर्भस्थ शिशु की सूक्ष्म चेतना उस परम चेतना के साथ एकाकार रहे, शिशु को अपने शाश्वत स्वरूप की स्मृति बनी रहे, इसके लिए गर्भवती माता को गर्भावस्था के दौरान अधिकाधिक साधना का अवलंबन लेना चाहिए । संस्कार साधना के इस क्रम में हम जिस साधना का अभ्यास करेंगे उसे भगवान ने अपने नवधा भक्ति के उपदेश में पाँचवां स्थान दिया है –
मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा। पंचम भजन सो बेद प्रकासा ॥
अपने आनेवाले शिशु की चेतना के उच्चतम विकास के लिए माता-पिता दोनों ही को गर्भधारण से पूर्व और गर्भधारण के पश्चात् से सम्पूर्ण गर्भावस्था के दौरान एकांत में बैठकर तीनों संध्याओं के समय अधिक से अधिक अर्थसहित भगवन्नाम जप अथवा गुरुमंत्र का जप करना चाहिए । बच्चे के जन्म के बाद भी माता-पिता को चाहिए कि वो जप-ध्यान आदि के समय बच्चे को साथ लेकर बैठें ।
पूज्य बापूजी बताते हैं कि मेरी माँ मुझे पूजा में बिठाकर कहतीं “खूब जप करेगा, अच्छे से ध्यान करेगा तभी मक्खन-मिश्री मिलेगा और जब मैं ध्यान करने बैठता तो माँ चाँदी की कटोरी में मक्खन-मिश्री लेकर मेरे सामने धीरे-से खिसकाकर रख देती थीं । इस प्रकार माता महँगीबा ने पूज्य बापूजी में भगवदभक्ति के संस्कार भरे ।
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है,
यज्ञानाम् जपयज्ञो अस्मि ।
यज्ञों में जपयज्ञ मैं हूँ ।
श्री रामचरितमानस में भी आता हैः कलियुग केवल नाम आधारा, जपत नर उतरे सिंधु पारा । इस कलयुग में भगवान का नाम ही आधार है । जो लोग भगवान के नाम का जप करते हैं, वे इस संसार सागर से तर जाते हैं ।
जप अर्थात्…… ज = जन्म का नाश, प = पापों का नाश ।
पापों का नाश करके जन्म-मरण करके चक्कर से छुड़ा दे, उसे जप कहते हैं । परमात्मा के साथ संबंध जोड़ने की एक कला का नाम है जप । इसीलिए कहा जाता हैः
अधिकम् जपं अधिकं फलम् ।
भगवान का नाम क्या नहीं कर सकता ? भगवान का मंगलकारी नाम दुःखियों का दुःख मिटा सकता है, रोगियों के रोग मिटा सकता है, पापियों के पाप हर लेता है, अभक्त को भक्त बना सकता है, मुर्दे में प्राणों का संचार कर सकता है । भगवन्नाम-जप से क्या फायदा होता है ? कितना फायदा होता है ? इसका पूरा बयान करनेवाला कोई पैदा ही नहीं हुआ और न होगा ।
शास्त्र में आता हैः
देवाधीनं जगत्सर्वं मंत्राधीनाश्च देवताः ।
‘सारा जगत भगवान के अधीन है और भगवान मंत्र के अधीन हैं ।”
संत तुलसीदासजी ने कहा हैः
बिबसहुँ जासु नाम नर कहहीं । जनम अनेक रचित अध दहहीं । ।
‘जो विवश होकर भी नाम-जप करते हैं उनके अनेक जन्मों के पापों का दहन हो जाता है ।’ कोई डंडा मारकर, विवश करके भी भगवन्नाम-जप कराये तो भी अनेक जन्मों के पापों का दहन होता है तो जो प्रीतिपूर्वक हरि का नाम जपते-जपते हरि का ध्यान करते हैं उनके सौभाग्य का क्या कहना !
जबहिं नाम हृदय धरयो, भयो पाप को नास ।
जैसे चिंनगी आग की, पड़ी पुराने घास ।।
माता कयाधू ने प्रहलाद के जन्म से पहले भगवान् में वैर रखनेवाले हिरण्यकश्यप से भी युक्तिपूर्वक 108 बार नारायण नाम जपवाया था । भगवन्नाम की बड़ी भारी महिमा है ।
नारदजी पिछले जन्म में विद्याहीन, जातिहीन, बलहीन दासीपुत्र थे । साधुसंग और भगवन्नाम-जप के प्रभाव से वे आगे चलकर देवर्षि नारद बन गये । साधुसंग और भगवन्नाम-जप के प्रभाव से ही कीड़े में से मैत्रेय ऋषि बन गये । परंतु भगवन्नाम की इतनी ही महिमा नहीं है । जीव से ब्रह्म बन जाय, इतनी भी नहीं; भगवन्नाम व मंत्रजाप की महिमा तो लाबयान है ।
जैसे, भारत में देश का सब कुछ आ जाता है ऐसे ही भगवान शब्द में, ॐ शब्द में सारे ब्रह्मांड सूत्रमणियों के समान ओतप्रोत हैं । जैसे, मोती सूत के धागे में पिरोये हुए हों ऐसे ही ॐ सहित अथवा बीजमंत्र सहित जो गुरुमंत्र है उसमें ‘सर्वव्यापिनी शक्ति’ होती है ।
इस शक्ति का पूरा फायदा उठाने के लिए तथा अपने बच्चे को भी गर्भकाल और बाल्यकाल से ही मंत्रशक्ति संपन्न बनाने के इच्छुक दम्पत्तियों को दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ मंत्र-जप करना चाहिए । मंत्र में अडिग आस्था रखनी चाहिए । एकांतवास का अभ्यास करना चाहिए । व्यर्थ का विलास, व्यर्थ की चेष्टा और व्यर्थ का चटोरापन छोड़ देना चाहिए । व्यर्थ का जनसंपर्क कम कर देना चाहिए ।
बार-बार भगवन्नाम-जप करने से एक प्रकार का भगवदीय रस, भगवदीय आनंद और भगवदीय अमृत प्रकट होने लगता है । जप से उत्पन्न भगवदीय आभा आपके पाँचों शरीरों (अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनंदमय) को तो शुद्ध रखती ही है, साथ ही आपकी अंतरात्मा को भी तृप्त करती है ।
कोई मनुष्य दिशाशून्य हो गया हो, लाचारी की हालत में फेंका गया हो, कुटुंबियों ने मुख मोड़ लिया हो, किस्मत रूठ गयी हो, साथियों ने सताना शुरू कर दिया हो, पड़ोसियों ने पुचकार के बदले दुत्कारना शुरू कर दिया हो... चारों तरफ से व्यक्ति दिशाशून्य, सहयोगशून्य, धनशून्य, सत्ताशून्य हो गया हो फिर भी हताश न हो वरन् सुबह-शाम 3 घंटे ओंकार सहित भगवन्नाम का जप करे तो वर्ष के अंदर वह व्यक्ति भगवत्शक्ति से सबके द्वारा सम्मानित, सब दिशाओं में सफल और सब गुणों से सम्पन्न होने लगेगा । भगवान तुम्हारे आत्मा बनकर बैठे हैं और भगवान का नाम तुम्हें सहज में प्राप्त हो सकता है फिर क्यों दुःखी होना ?
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