सुख-शांति, संतति व स्वास्थ्य प्रदायक
गौ-सेवा व परिक्रमा

(गोपाष्टमीः 30 अक्टूबर)

देशी गाय की परिक्रमा, स्पर्श, पूजन आदि से शारीरिक, बौद्धिक, आर्थिक, आध्यात्मिक आदि कई प्रकार के लाभ होते हैं।

पूज्य बापू जी के सत्संगामृत में आता है कि “देशी गाय के शरीर से जो आभा (ओरा) निकलती है, उसके प्रभाव से गाय की प्रक्षिणा करने वाले की आभा में बहुत वृद्धि होती है। सामान्य व्यक्ति की आभा 3 फीट की होती है, जो ध्यान भजन करता है उसकी आभा और बढ़ती है। साथ ही गाय की प्रदक्षिणा करे तो आभा और सात्त्विक होगी, बढ़ेगी।”

यह बात आभा विशेषज्ञ के.एम.जैन ने ‘यूनिवर्सल ओरा स्कैनर’ यंत्र द्वारा प्रमाणित भी की है। उन्होंने बताया कि गाय की 9 परिक्रमा करने से अपने आभामण्डल का दायरा बढ़ जाता है।

पूज्य बापू जी कहते हैं- “संतान को बढ़िया, तेजस्वी बनाना है तो गर्भिणी अलग-अलग रंग की 7 गायों की प्रदक्षिणा करके गाय को जरा सहला दे, आटे-गुड़ आदि का लड्डू खिला दे या केला खिला दे, बच्चा श्रीकृष्ण के कुछ-न-कुछ दिव्य गुण ले के पैदा होगा। कइयों को ऐसे बच्चे हुए हैं।” विशेष लाभ हेतु सप्तरंगों की गायों की 108 परिक्रमा कर अधिक लाभ उठा सकते हैं।

सात रंग की सात गायें — सात चक्रों का संतुलन

पूज्य बापूजी का निर्देश कि गर्भवती सात अलग-अलग रंग की गायों की परिक्रमा करे — यह गूढ़ ऊर्जा विज्ञान से जुड़ा है।
गायों के सात रंग प्रतीक हैं शरीर के सात चक्रों (Energy Centers) के —

प्रत्येक परिक्रमा के साथ माता के भीतर एक नया केंद्र संतुलित होता है।

  • सफेद गाय — शुद्धता और शांति (सहस्रार चक्र)

  • लाल गाय — शक्ति और उत्साह (मूलाधार चक्र)

  • काली गाय — रक्षा और स्थिरता (मणिपुर चक्र)

  • पीली गाय — बुद्धि और तेज (आज्ञा चक्र)

  • भूरी गाय — स्थैर्य और मातृत्व भाव (हृदय चक्र)

  • चितकबरी गाय — समरसता और संतुलन (स्वाधिष्ठान चक्र)

  • धवला गाय — करुणा और भक्ति (विशुद्धि चक्र)

इस प्रकार गर्भवती की संपूर्ण ऊर्जा प्रणाली संतुलित हो जाती है, जिससे गर्भस्थ शिशु के शरीर, मस्तिष्क और भावनात्मक विकास पर अद्भुत प्रभाव पड़ता है।

जब गर्भवती स्त्री गाय की परिक्रमा करती है, तो वह केवल एक क्रिया नहीं करती — बल्कि अपने और गर्भस्थ शिशु के चारों ओर दिव्य ऊर्जा कवच बनाती है

गर्भवती महिला द्वारा सामान्य गति से प्रदक्षिणा करने पर शरीर पर कोई तनाव न पड़ते हुए श्वास द्वारा रक्त एवं हृदय का शुद्धीकरण होता है। इससे गर्भस्थ शिशु को भी लाभ होता है। गर्भिणी सद्गुरुप्रदत्त गुरुमंत्र या भगवन्नाम का जप करते हुए परिक्रमा करे, यह अधिक लाभदायी होगा। यदि अनुकूल हो तो गर्भाधान से 9वें महीने तक 108 परिक्रमा चालू रखे। इससे गर्भिणी का प्रतिदिन लगभग 2 किलोमीटर चलना होगा, जिससे प्रसूति नैसर्गिक होगी, सिजेरियन की सम्भावना बहुत कम हो जायेगी। 7वें महीने से 9वें महीने तक 108 परिक्रमा रुक-रुक कर पूरी करे। परिक्रमा करते समय गोबर का तिलक करे। गोमय (गोबर का रस) व गोमूत्र के मिश्रण में पाँव भिगोकर परिक्रमा करने से शरीर को अधिक ऊर्जा मिलती है।

सावधानीः परिक्रमा अपने और गाय के बीच सुरक्षित अंतर रखते हुए करें। यदि पेटदर्द आदि तकलीफ हो तो परिक्रमा आश्रम के वैद्य की सलाह से करें।

उत्तम संतान व मनोवांछित फल पाने हेतु विष्णुधर्मोत्तर पुराण के अनुसार तिल, जौ, व गुड़ के बने लड्डू 9 गायों को खिलाने व उनकी परिक्रमा करने से उत्तम संतान एवं मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। पति-पत्नी में आपसी मनमुटाव या क्लेश रहता हो तो दोनों गठजोड़ करके गाय की परिक्रमा करें तथा रोटी में तिल का तेल चुपड़कर गुड़ के साथ उन नौ गायों को खिलायें। इससे घर में सुख-शांति बनी रहेगी।

महाभारत (अनुशासन पर्वः 83.50) में आता है कि ‘गोभक्त मनुष्य जिस-जिस वस्तु की इच्छा करता है, वे सब उसे प्राप्त होती हैं। स्त्रियों में जो भी गौ की भक्त हैं, वे मनोवांछित कामनाएँ प्राप्त करती हैं।’

गोपाष्टमी का यह पर्व गर्भवती के लिए ‘जीवंत योग-साधना’ है — जहाँ गाय माता की करुणा, धरती की ऊर्जा और भगवान की कृपा — तीनों मिलकर गर्भस्थ शिशु के भीतर तेज, संयम और दिव्यता का बीजारोपण करती हैं।

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गर्भस्थ शिशु को सुसंस्कारी बनाने तथा उसके उचित पालन-पोषण की जानकारी देने हेतु पूज्य संत श्री आशारामजी बापू द्वारा प्रेरित महिला उत्थान मंडल द्वारा लोकहितार्थ दिव्य शिशु संस्कार अभियान प्रारंभ किया गया है ।