चाय-कॉफ़ी : धीमे जहर
वर्तमान समय में विदेशों के साथ-साथ भारत में भी चाय का प्रयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है । थकान अथवा नींद आने पर व्यक्ति यह सोचकर चाय पीता है कि मुझे नयी स्फूर्ति प्राप्त होगी’ परन्तु वास्तव में यह एक भ्रम मात्र है । चाय पीने से शरीर का रक्तचाप काफी बढ़ जाता है । इससे शरीर की माँसपेशियाँ अधिक उत्तेजित हो जाती हैं तथा व्यक्ति स्फूर्ति का अनुभव करता है । चाय के विनाशकारी व्यसन में फँसे हुए लोग स्फूर्ति का बहाना बनाकर हारे हुए जुआरी की तरह उसमें अधिकाधिक डूबते चले जाते हैं । अपने शरीर, मन, बुद्धि तथा पसीने की कमाई को व्यर्थ में गँवा देते हैं और भयंकर व्याधियों के शिकार बन जाते हैं ।
प्राय: जो महानुभाव चाय पीने के अभ्यासी होते हैं, उन्हें यह जान लेना आवश्यक है कि चाय एक मादक अहितकर पेय है । चाय पीने और प्रत्यक्ष विष पीने में कोई अंतर नहीं है । फिर भी प्रतिदिन चाय पीकर आप अपने स्वास्थ्य और अमूल्य जीवन को नष्ट कर रहे हैं । हानि के विचार से देखा जाये तो चाय और शराब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं । इसका नशा शराब की तरह ही होता है । चाय पीनेवाले अपने शारीरिक एवं मानसिक रोगों की दवा चाय को ही समझते हैं ।
आईए देखते हैं कि आपकी इस मनपसंद दवा में कितने प्रकार के धीमे जहर पाए जाते हैं -
1. कैफिन (2.75%): इससे ऊर्जा व कार्यक्षमता में कमी आती है । Ca, Na, Mg, K आदि खनिजों व विटामिन ‘बी’ का नुकसान होता है । कोलेस्ट्रॉल बढ़ता है जिससे हृदयाघात की सम्भावना बढ़ जाती है । पाचनतंत्र को हानि होती है । कब्जियत और बवासीर होती है । । नींद कम आती है । सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, मानसिक तनाव पैदा होता है । यकृत और गुर्दे खराब होते हैं । रक्तचाप और मधुमेह (डायबिटीज) बढ़ता है ।
2. टेनिन (18%): इससे अजीर्ण, पेट में छाले, कब्ज तथा यकृत को हानि होती है । आलस्य, प्रमाद बढ़ता है, चमड़ी रुक्ष बनती है ।
3. थीन (3%): इससे खुश्की चढ़ती है, सिर में भारीपन महसूस होता है ।
4. सायनोजन: अनिद्रा तथा लकवा जैसी भयंकर बीमारियाँ पैदा करती है ।
5. एरोमिक ऑयल: आँतों पर हानिकारक प्रभाव करता है ।
6. वॉलाटाइल: आँतें कमजोर हो जाती है ।
7. कार्बोनिक अम्ल: एसिडिटी होती है ।
8. पैमिन: पाचनशक्ति कमजोर होती है ।
9. ऑक्सेलिक अम्ल: शरीर के लिए अत्यंत हानिकारक है ।
10. स्टिनॉयल: रक्तविहार तथा नपुंसकता पैदा करता है ।
इनका सेवन करनेवालों को मिलते हैं निम्न उपहार -
चाय-कॉफी के सेवन से संधिवात, जोड़ों का दर्द, गठिया आदि होते हैं । अधिक चाय-कॉफी पीनेवालों को चक्कर आना, गले के रोग, रक्त की अशुद्धि, दाँतों के रोग और मसूड़ों की कमजोरी की तकलीफ होती है । शुक्राणुओं को हानि होती है । वीर्य पतला होता है और प्रजनन शक्ति कम होती है । गर्भस्थ शिशु के आराम में विक्षेप पैदा होता है, जो जन्म के बाद उसके विकृत व्यवहार का कारण होता है । चाय-कॉफी अधिक पीनेवाली महिलाओं की गर्भधारण की क्षमता कम हो जाती है । गर्भवती स्त्री चाय पीती है तो नवजात शिशु जन्म के बाद सोता नहीं है, उत्तेजित और अशांत रहता है, हाथों और घुटनों की चमड़ी खुजलाता रहता है । कभी-कभी ऐसे शिशु जन्म के बाद ठीक तरह से श्वास नहीं ले पाते और मर जाते हैं । इसलिए चाय अथवा कॉफी कभी नहीं पीनी चाहिए और अगर पीनी ही पड़े तो आयुर्वैदिक चाय (ओजस्वी चाय) पीनी चाहिए ।
सावधानी: गर्भवती बहनें केवल शीतऋतु में ही ओजस्वी चाय का प्रयोग कर सकती हैं और वह भी केवल सातवें महीने के बाद । प्रारंभ के महीनों में ओजस्वी चाय का प्रयोग न करें ।
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