Summer care

पुदीना पुदीने का उपयोग अधिकांशतः चटनी या मसाले के रूप में किया जाता है। पुदीना Read more
धनिये का पना 5 से 10 ग्राम बारीक पिये सूखे धनिये में आवश्यकतानुसार मिश्री मिलाकर Read more
अमृतफल बेल बेल या बिल्व का अर्थ है : रोगान् बिलाति भिनत्ति इति बिल्व: अर्थात् Read more
नींबू का शरबत बाजारू ठंडे पेय पदार्थों से स्वास्थ्य को कितनी हानि पहुँचती है यह Read more
धनिया धनिया सर्वत्र प्रसिद्ध है। भोजन बनाने में इसका नित्य प्रयोग होता है।सब्जी, दाल जैसे Read more
पका आम पका आम खाने से सातों धातुओं की वृद्धि होती है । पका आम Read more
फालसा फालसा स्निग्ध, मधुर, अम्ल और तिक्त है। कच्चे फल का पाक खट्टा एवं पके Read more
रूचिकर व पोषक नारियल पानी सुबह चाय के बदले नारियल पानी में नींबू का रस Read more
गन्ना - ईख आजकल अधिकांश लोग मशीन या ज्यूसर आदि से निकाला हुआ रस पीते Read more
अनार का शरबत मीठा अनार तीनों दोषों का शमन करने वाला, तृप्तिकारक, वीर्यवर्धक, हलका, कसैले Read more
  • वसंत ऋतु की समाप्ति के बाद ग्रीष्म ऋतु का आगमन होता है । अप्रैल, मई तथा जून के प्रारंभिक दिनों का समावेश ग्रीष्म ऋतु में होता है । इन दिनों में सूर्य की किरणें अत्यंत उष्ण होती हैं । इनके सम्पर्क से हवा रूक्ष बन जाती है और यह रूक्ष-उष्ण हवा अन्नद्रव्यों को सुखाकर शुष्क बना देती है तथा स्थिर चर सृष्टि में से आर्द्रता, चिकनाई का शोषण करती है । इस अत्यंत रूक्ष बनी हुई वायु के कारण, पैदा होने वाले अन्न-पदार्थों में कटु, तिक्त, कषाय रसों का प्राबल्य बढ़ता है और इनके सेवन से मनुष्यों में दुर्बलता आने लगती है । शरीर में वातदोष का संचय होने लगता है । अतः इस ऋतु में मधुर, तरल, सुपाच्य, हलके, जलीय, ताजे, स्निग्ध, शीत गुणयुक्त पदार्थों का सेवन करना चाहिए । इस ऋतु में प्राणियों के शरीर का जलीयांश कम होता है जिससे प्यास ज्यादा लगती है । शरीर में जलीयांश कम होने से पेट की बीमारियाँ, दस्त, उलटी, कमजोरी, बेचैनी आदि परेशानियाँ उत्पन्न होती हैं । इसलिए ग्रीष्म ऋतु में कम आहार लेकर शीतल जल बार-बार पीना हितकर है ।
  • आहारः ग्रीष्म ऋतु में साठी के पुराने चावल, गेहूँ, दूध, मक्खन, गौघृत के सेवन से शरीर में शीतलता, स्फूर्ति तथा शक्ति आती है । सब्जियों में लौकी, गिल्की, परवल, नींबू, केले के फूल, चौलाई, हरी ककड़ी, हरा धनिया, पुदीना और फलों में द्राक्ष, तरबूज, खरबूजा, एक-दो-केले, नारियल पानी, मौसमी, आम, सेब, अनार, अंगूर का सेवन लाभदायी है ।
  • इस ऋतु में तीखे, खट्टे, कसैले एवं कड़वे रसवाले पदार्थ नहीं खाने चाहिए । नमकीन, रूखा, तेज मिर्च-मसालेदार तथा तले हुए पदार्थ, बासी एवं दुर्गन्धयुक्त पदार्थ, दही, अमचूर, आचार, इमली आदि न खायें । गरमी से बचने के लिए बाजारू शीत पेय (कोल्ड ड्रिंक्स), आइस क्रीम, आइसफ्रूट, डिब्बाबंद फलों के रस का सेवन कदापि न करें । इनके सेवन से शरीर में कुछ समय के लिए शीतलता का आभास होता है परंतु ये पदार्थ पित्तवर्धक होने के कारण आंतरिक गर्मी बढ़ाते हैं । इनकी जगह कच्चे आम को भूनकर बनाया गया मीठा पना, पानी में नींबू का रस तथा मिश्री मिलाकर बनाया गया शरबत, जीरे की शिकंजी, ठंडाई, हरे नारियल का पानी, फलों का ताजा रस, दूध और चावल की खीर, गुलकंद आदि शीत तथा जलीय पदार्थों का सेवन करें । इससे सूर्य की अत्यंत उष्ण किरणों के दुष्प्रभाव से शरीर का रक्षण किया जा सकता है । फ्रिज का ठंडा पानी पीने से गला, दाँत एवं आँतों पर बुरा प्रभाव पड़ता है इसलिए इन दिनों में मटके या सुराही का पानी पिएँ ।
  • इस ऋतु में मुलतानी मिट्टी से स्नान करना वरदान स्वरूप है । इससे जो लाभ होता है, साबुन से नहाने से उसका 1 प्रतिशत लाभ भी नहीं होता । 

बाजारू ठंडे पेय पदार्थों से स्वास्थ्य को कितनी हानि पहुँचती है यह तो लोग जानते ही नहीं हैं । दूषित तत्त्वों, गंदे पानी एवं अभक्ष्य पदार्थों के रासायनिक मिश्रण से तैयार किये गये अपवित्र बाजारू ठंडे पेय हमारी तंदरुस्ती एवं पवित्रता का घात करते हैं । इसलिए उनका त्याग करके हमें आयुर्वेद एवं भारतीय संस्कृति में वर्णित पेय पदार्थों से ही ठंडक प्राप्त करनी चाहिए । यहाँ कुछ ग्रीष्मकालीन खाद्य व पेय पदार्थों की जानकारी दी जा रही है –

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