विचारशक्ति की गरिमा

किसान अपने खेत में उत्तम प्रकार की फसल पैदा करने के लिए रात-दिन मेहनत करता है। वर्षा से पूर्व जमीन जोतकर खाद डाल के तैयार करता है। वर्षा आने पर खेत में बहुत सावधानी से उत्तम प्रकार के बीज बोता है व फसल तैयार होने तक उसका खूब ध्यान रखता है परंतु ऐसा ध्यान संतानप्राप्ति के संदर्भ में मनुष्य नहीं रखता।

कुम्हार मिट्टी को जैसा चाहे वैसा आकार दे सकता है परंतु आँवे में पक जाने पर उसके आकार में चाहकर भी परिवर्तन नहीं कर सकता। ठीक इसी प्रकार माँ के गर्भ में शिशु के शरीर का निर्माण हो जाने पर एवं उसके दिमाग की विविध शक्तियों का उत्तम या कनिष्ठ बीज प्रस्थापित हो जाने के बाद, उसके अंतःकरण में सद्गुण या दुर्गुणों की छाप दृढ़ता से स्थापित हो जाने के बाद शारीरिक-मानसिक उन्नति में पाठशाला, महाशाला एवं विविध प्रकार के प्रशिक्षण इच्छित परिणाम नहीं ला पाते। माँ के आहार-विहार व विचारों से गर्भस्थ शिशु पोषित व संस्कारित होता है।

इसलिए हे माताओ ! पूज्य बापूजी के बताये अनुसार अपनी सुषुप्त आत्मशक्ति को जगाओ। जगत में कुछ भी असम्भव नहीं है। प्रत्येक मनुष्य अपने यहाँ श्रीरामचन्द्रजी, श्रीकृष्ण, अर्जुन, महात्मा बुद्ध, महावीर स्वामी, कबीरजी, तुलसीदास जी, गार्गी, मदालसा, मीराबाई, शिवाजी, गाँधी जी जैसी महान विभूतियों को जन्म दे सकता है। प्रत्येक दम्पत्ति को गम्भीरता से सोचना चाहिए कि अपनी लापरवाही से अयोग्य शिशु उत्पन्न करना समाज व राष्ट्र के लिए कितना अहितकारी साबित हो सकता है। आप अपने मन की भूमिका सच्चे संतों का सान्निध्य-लाभ लेकर उन्नत बनाइये एवं दृढ़ता से शास्त्रोक्त नियमों का पालन कर उच्च आत्माएँ आपके यहाँ जन्म लें ऐसे श्रेष्ठ सद्गृहस्थ बन जाइये। इससे आपके यहाँ तेजस्वी, सदाचारी, उद्यमी, स्वधर्मपरायण, हितैषी शिशुओं का जन्म होगा।

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गर्भस्थ शिशु को सुसंस्कारी बनाने तथा उसके उचित पालन-पोषण की जानकारी देने हेतु पूज्य संत श्री आशारामजी बापू द्वारा प्रेरित महिला उत्थान मंडल द्वारा लोकहितार्थ दिव्य शिशु संस्कार अभियान प्रारंभ किया गया है ।