तरबूज

ग्रीष्म ऋतु का फल –

  • तरबूज प्रायः पूरे भारत में पाया जाता है । पका हुआ लाल गूदेवाला तरबूज स्वाद में मधुर, गुण में शीतल, पित्त एवं गर्मी का शमन करने वाला, पौष्टिकता एवं तृप्ति देने वाला, पेट साफ करने वाला, मूत्रल, वात एवं कफकारक है ।
  • कच्चा तरबूज गुण में ठंडा, दस्त को रोकने वाला, वात व कफकारक, पचने में भारी एवं पित्तनाशक है ।
  • तरबूज के बीज शीतवीर्य, शरीर में स्निग्धता बढ़ानेवाले, पौष्टिक, मूत्रल, गर्मी का शमन करने वाले, कृमिनाशक, दिमागी शक्ति बढ़ाने वाले, दुर्बलता मिटाने वाले, गुर्दों की कमजोरी दूर करने वाले, गर्मी की खाँसी एवं ज्वर को मिटाने वाले क्षय एवं मूत्ररोगों को दूर करने वाले हैं । बीज के सेवन की मात्रा हररोज 10 से 20 ग्राम है। ज्यादा बीज खाने से तिल्ली की हानि होती है ।


सावधानीः

  • गर्म तासीरवालों के लिए तरबूज एक उत्तम फल है लेकिन वात व कफ प्रकृतिवालों के लिए हानिकारक है । अतः सर्दी-खाँसी, श्वास, मधुप्रमेह, कोढ़, रक्तविकार के रोगियों को इसका सेवन नहीं करना चाहिए ।
  • ग्रीष्म ऋतु में दोपहर के भोजन के 2-3 घंटे बाद तरबूज खाना लाभदायक है । यदि तरबूज खाने के बाद कोई तकलीफ हो तो शहद अथवा गुलकंद का सेवन करें ।


औषधि-प्रयोगः

मंदाग्निः  तरबूज के लाल गूदे पर काली मिर्च, जीरा एवं नमक का चूर्ण डालकर खाने से भूख खुलती है एवं पाचनशक्ति बढ़ती है ।

शरीरपुष्टिः तरबूज के बीज के गर्भ का चूर्ण बना लें । गर्म दूध में मिश्री तथा 1 चम्मच यह चूर्ण डालकर उबाल लें। इसके प्रतिदिन सेवन से देह पुष्ट होती है ।
“तरबूज के प्रतिदिन सेवन से देह तो पुष्ट होती है पर यह भी स्मरण रखें कि देह नश्वर है….. आत्मा अमर है । देह को पुष्ट रखेंगे, पर आत्मप्रीति बढ़ायेंगे ।”

Hits: 16

Open chat
1
गर्भ संस्कार केन्द्र में सम्पर्क करें -
गर्भस्थ शिशु को सुसंस्कारी बनाने तथा उसके उचित पालन-पोषण की जानकारी देने हेतु पूज्य संत श्री आशारामजी बापू द्वारा प्रेरित महिला उत्थान मंडल द्वारा लोकहितार्थ दिव्य शिशु संस्कार अभियान प्रारंभ किया गया है ।