षडरसयुक्त आहार का करें सेवन...

 

हर किसी को कोई विशेष प्रकार का रस कम या अधिक प्रिय होता है । किसी को मीठा अधिक प्रिय होता है तो किसी को नमकीन । सगर्भावस्था में आहार की ये पसंदगी नये-नये रूप लेती रहती है । सगर्भा बहनों को कभी कुछ खट्टा तो कभी कुछ चटपटा खाने का मन होता है । कई बार इसके चलते सगर्भा बहनें अपने किसी पसंदीदा आहार का सेवन अधिक कर लेती हैं तो कोई रस बिलकुल खाने में नहीं आता । परिणाम से अनभिज्ञ ये बहनें अनजाने में अपने ही शिशु के स्वास्थ्य की शत्रु बन जाती हैं । इसलिए गर्भावस्था में आहार की पसंदगी करने से पूर्व कुछ शास्त्रोक्त नियमों को जान लेना बहुत जरुरी है ।

आयुर्वेदानुसार सगर्भावस्था में किसी भी प्रकार का आहार अधिक मात्रा में नहीं लेना चाहिए । षडरसयुक्त आहार लेना चाहिए परन्तु केवल किसी एकाध प्रियरस का अति सेवन दुष्परिणाम ला सकता है ।

  • सगर्भावस्था में मधुर पदार्थों का लगातार सेवन करने से बालक में मोटापन (Obesity), गूँगापन, प्रमेह (Diseases of urinary system), मधुमेह (Diabetes) जैसी व्याधियों का उद्भव होता है ।
  • खट्टे पदार्थों के अधिक सेवन से बालक नाक में से खून बहना, रक्तपित्त, त्वचारोग व आँखों के रोगों से पीड़ित होता है ।
  • लवणयुक्त पदार्थों के अधिक सेवन से बालक में अल्पायु में ही त्वचा में झुर्रियाँ पड़ना, बाल सफेद होना व गिरना आदि समस्यायें उत्पन्न होती है । नेत्रज्योति कम होती है । अधिक नमक खाने से बुढ़ापा जल्दी आता है ।
  • तीखे पदार्थों के अतिसेवन से बालक दुर्बल, अल्प अथवा क्षीण शुक्रधातुवाला (Oligospermic) तथा भविष्य में संतानोत्पत्ति में असमर्थ (Infertile) होता है ।
  • जो गर्भिणी कड़वे पदार्थ अधिक खाती है उसकी संतान बलहीन, वजन में कम, शोष रोग (Atrophy), सूखा रोग (Rickets) या क्षयरोग (Tuberculosis) से ग्रस्त हो सकती है ।
  • कसैले पदार्थ अति मात्रा में खाने से संतान का वर्ण श्याम अर्थात् काला हो जाता है । उसे आफरा व डकारें अधिक आने की समस्या होती है ।

सारांश यही है कि सगर्भावस्था में स्वादलोलुप न होकर आवश्यक संतुलित आहार लें ।

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