अपने गर्भस्थ शिशु के मित्र बनें शत्रु नहीं

अपने गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य के मित्र बनें; शत्रु नहीं...

बचपन से ही हमें भोजन-पानी की जैसी आदतें लग जाती हैं, बड़े होने पर भी वैसी ही बनी रहती हैं । इसका कारण है एक तो जिव्हा पर नियंत्रण न होना और दूसरा भोजन संबंधी नियमों का ज्ञान न होना । यही गलत आदतें गर्भावस्था में भी यथावत बनी रहती हैं जिसके कारण हमारा स्वादिष्ट और पौष्टिक भोजन भी हमारे और हमारे बच्चे के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होने के बजाय हानिकारक बन जाता है । गर्भवती को अपनी शारीरिक स्थिति, आयु, देश, काल आदि का ध्यान रखते हुए पूर्ण भूख का दो-तिहाई भोजन करना चाहिए तथा जब तक पहले किया हुआ भोजन पूर्णतः पच न जाय तब तक दोबारा भोजन कदापि नहीं करना चाहिए । अन्यथा वह विषतुल्य बन जाता है । कुछ महिलायें कभी चाय, कभी चाट-पकौड़ी, समोसे आदि कुछ-न-कुछ पेट में डालती ही रहती हैं, जिसके कारण वे कब्ज, मंदाग्नि, अपानवायु दूषण, गैस, थकान, सुस्ती आदि रोगों के शिकार हो जाती हैं और अपने व अपने गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य की शत्रु बन जाती हैं । आईये जानते हैं कि :

भोजन करना कब है खतरनाक ?

कुछ परिस्थितियाँ ऐसी भी होती हैं जबकि भोजन करने से लाभ स्थान पर हानि उठानी पड़ती है, जैसे :
१. अधिक प्यास बुझाने के लिए पर्याप्त पानी पीने के तुरंत बाद मल-मूत्र त्यागने की इच्छा होने की स्थिति में ।
२. खड़े होकर अथवा चलते-चलते भोजन करना ।
३. पानी पीने की इच्छा हो और उस समय भोजन किया जाय तो उदररोग होते हैं ।
४. शारीरिक परिश्रम या कसरत के समय अथवा तुरंत बाद तथा जब व्यक्ति पसीने से लथपथ हो, उस समय भोजन करने से रोमकूपों को हानि होती है ।
५. जूठे बर्तन में भोजन करने से बुद्धि का नाश होता है ।
६. लेटकर भोजन करने से आमाशय के विकार होते हैं।
७. गंदे व दुर्गंधयुक्त स्थानों में भोजन करने से अनेक विषैले जीवाणु भोजन के साथ शरीर में प्रवेश कर जाते हैं ।
८. पलंग या बिस्तर पर भोजन करने से इनमें उपस्थित हानिकारक सूक्ष्म जीवाणु भोजन के साथ शरीर में प्रवेश कर जाते हैं ।
९. निद्रा के समय भोजन करने से भोजन का ठीक से पाचन नहीं हो पाता ।
१०. बायाँ स्वर चल रहा हो तब भोजन करने से भोजन देरी से पचता है ।

पानी पीना कब है हानिकारक ?

कुछ परिस्थितियाँ ऐसी भी होती हैं जब पानी पीने से लाभ स्थान पर हानि उठानी पड़ती है, जैसे :
१. भोजन के प्रारम्भ व अंत में पानी न पियें ।
२. व्यायाम (कसरत) करने या धूप में से आने के तुरंत बाद पानी पीना वर्जित है ।
३. भोजन की इच्छा में भी भूख मिटाने के लिए पानी पीना ।
४. पके फल या खीरा, ककड़ी तथा मेवा खाने के बाद पानी पीना ।
५. भोजन, फल व पानी का इकट्ठा सेवन करने से मंदाग्नि होती है ।
६. चिकने और खट्टे पदार्थ खाने के बाद ठंडा पानी पीने से मंदाग्नि होती है, गुनगुना पानी पी सकते हैं ।
७. दूध पीने, छींक आने, मलत्याग व स्त्री-संसर्ग के तुरंत बाद पानी नहीं पीना चाहिए । इससे आमाशय को नुकसान पहुँचता है और बल की हानि होती है।
८. सोने से पहले पानी नहीं पीना चाहिए ।
९. बिना प्यास अधिक पानी पीने से जठराग्नि मंद होती है ।
१०. जूठे बर्तन में पानी पीने से संक्रामक रोग होने की सम्भावना रहती है ।

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गर्भस्थ शिशु को सुसंस्कारी बनाने तथा उसके उचित पालन-पोषण की जानकारी देने हेतु पूज्य संत श्री आशारामजी बापू द्वारा प्रेरित महिला उत्थान मंडल द्वारा लोकहितार्थ दिव्य शिशु संस्कार अभियान प्रारंभ किया गया है ।