पाचनतंत्र को दुरुस्त रखने के लिए अपनाएं ये पद्धति

शास्त्र कहते हैं :

आजकल सभी जगह शादी-पार्टियों में खड़े होकर भोजन करने का रिवाज़ चल पड़ा है लेकिन हमारे शास्त्रों और संत-महापुरुषों ने जमीन पर कुछ बिछौना बिछाकर बैठकर भोजन करने का निर्देश दिया है । लघुव्यास संहिता में आता है कि ‘खड़े होकर भोजन नहीं करना चाहिए ।’ महाभारत (अनुशासन पर्व : १०४.६०) में कहा गया है कि ‘बैठकर ही भोजन करें, चलते-फिरते कदापि भोजन नहीं करना चाहिए ।’

खड़े होकर भोजन करने से हानियाँ

(१) यह आदत असुरों की है । इसीलिए इसे ‘राक्षसी भोजन पद्धति’ कहा जाता है ।

(२) इसमें पेट, पैर व आँतों पर तनाव पड़ता है जिससे गैस, कब्ज, मंदाग्नि, अपचन जैसे अनेक उदर विकार व घुटनों का दर्द, कमर दर्द आदि उत्पन्न होते हैं । कब्ज अधिकतर बीमारियों का मूल है ।

(३) इससे जठराग्नि मंद हो जाती है जिससे अन्न का सम्यक् पाचन न होकर अजीर्णजन्य कई रोग उत्पन्न होते हैं । 

(४) इससे हृदय पर अतिरिक्त भार पड़ता है जिससे हृदय रोगों की संभावनाऍ बढ़ती हैं।

(५) पैरों में जूते-चप्पल रहने से पैर गरम रहते हैं । इससे शरीर की पूरी गर्मी जठराग्नि को प्रदीप्त करने में नहीं लग पाती ।

(६) बार-बार कतार में लगने से बचने के लिये थाली में अधिक भोजन भर लिया जाता है । फिर या तो उसे जबरदस्ती ठूँस-ठूँसकर खाया जाता है जो अनेक रोगों का कारण बन जाता है अथवा अन्न का अपमान करते हुए फेंक दिया जाता है ।

(७) जिस पात्र में भोजन रखा जाता है वह सदा पवित्र होना चाहिए लेकिन इस परंपरा में जूठे हाथों के लगने से अन्न के पात्र अपवित्र हो जाते है । इसीलिए खिलानेवाले के पुण्य नाश होते हैं और खानेवालों का मन भी खिन्न-उद्विग्न रहता है । 

(८) हो-हल्ला के वातावरण में खड़े होकर भोजन करने से बाद में थकान और उबान महसूस होती है । मन में भी वैसे ही शोर-शराबें के संस्कार भर जाते हैं ।

बैठकर (या पंगत में) भोजन करने से लाभ

(१) इसे ‘दैवी भोजन पद्धति’ कहा जाता है ।

(२) इसमें पेट, पैर व आँतों की उचित स्थिति होने से उन पर तनाव नहीं पड़ता ।

(३) इससे जठराग्नि प्रदीप्त होती है, अन्न का पाचन सुलभ होता है ।

(४) हृदय पर भार नहीं पड़ता ।

(५) आयुर्वेद के अनुसार भोजन करते समय पैर ठंडे रहने चाहिए । इससे जठराग्नि प्रदीप्त होने में मदद मिलती है ।

इसीलिए हमारे देश में भोजन करने से पहले हाथ-पैर धोने की परंपरा है ।

(६) पंगत में एक परोसनेवाला होता है जिससे व्यक्ति अपनी जरूरत के अनुसार भोजन लेता है । उचित मात्रा में भोजन लेने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है व भोजन का भी अपमान नहीं होता ।

(७) भोजन परोसनेवाले अलग होते हैं जिससे भोजनपात्रों को जूठे हाथ नहीं लगते । भोजन तो पवित्र रहता ही है, साथ ही खाने-खिलानेवाले दोनों का मन आनंदित रहता है ।

(८) शांतिपूर्वक पंगत में भोजन करने से मन में शांति बनी रहती है, थकान उबान भी महसूस नहीं होती ।

भोजन खड़े-खड़े नहीं; पलाथी मारकर ही करें

डाइनिंग सेट पर अथवा कुर्सी पर बैठकर भोजन करते हैं तो पैर नीचे रहते हैं, जिससे प्राणशक्ति व पाचनतंत्र को तनाव में रहना पड़ता है । इसका जठर व यकृत (liver) पर बुरा प्रभाव पड़ता है । जिस समय प्राणशक्ति व पाचनतंत्र तनाव में रहते हैं उस समय किया हुआ भोजन उतना फायदा नहीं करता जितना पलथी मारकर आराम से भोजन करने से होता है । पलथी मार के बैठकर भोजन करने से भोजन पचाने में आराम रहता है, प्राणशक्ति व यकृत को भी आराम रहता है । अगर कुर्सी पर बैठकर भोजन करना ही पड़े तो कुर्सी पर पलथी मार के भोजन कर चाहिए ।

विज्ञान बताता है कि ‘खड़े रहने से या चलते समय हमारे शरीर का रक्त संचार स्वत: ही हाथों और पैरों की ओर मुड़ जाता है जिससे पाचनतंत्र तक पहुँचनेवाले रक्त की मात्रा भोजन पचाने के लिए पर्याप्त नहीं हो पाती । भोजन के सही तरीके से पाचन के लिए शांत और तनावरहित मन से भोजन करने के लिए बैठना भी बहुत जरूरी है ।’

दिसम्बर 2019 के ‘जर्नल ऑफ कंज्यूम रिसर्च’ में प्रकाशित एक शोध के एक शोध के अनुसार बैठने की अपेक्षा खड़े रहने से शरीर पर अधिक शारीरिक तनाव पड़ता है जो बदले में संवेदन प्रणाली, स्वाद, स्पर्श, गंध आदि की सूचना देनेवाली प्रणाली की संवेदनशीलता को कम करता है । इससे खड़े रहकर भोजन करने वाले को बैठकर भोजन करनेवाले की अपेक्षा स्वादिष्ट भोजन भी कम अनुकूल और कम स्वादिष्ट महसूस होता है । इसलिए वे पर्याप्त मात्रा में भोजन नहीं कर पाते ।

गर्भावस्था में आपके पाचनतंत्र का स्वस्थ रहना कितना जरुरी है, ये आप भी जानती ही हैं । अब विचार भी आपको ही करना है और निर्णय भी आप ही को लेना है । आखिर आपके और आपके शिशु के स्वास्थ्य का प्रश्न जो है !!

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