गर्भिणी पर टेलीविजन के घातक प्रभाव

 

गर्भावस्था में माँ देखने–सुनने-सोचने से लेकर अपने प्रत्येक क्रियाकलाप से गर्भ को संस्कार देती है । इतिहास साक्षी है कि माताओं ने अपनी इसी देखने-सुनने, सोचने-समझने की क्षमता का सदुपयोग करके अपने बच्चों को महान आत्मा बना दिया लेकिन आज अज्ञानतावश इन क्षमताओं का दुरुपयोग हो रहा है जिसका विभीत्स प्रभाव बच्चों के जीवन में स्पष्टत: परिलक्षित होता है ।

आज के आधुनिक युग में घर-घर में टी.वी. का होना सामान्य बात है । अगर यूँ भी कहें कि हर कमरे में अलग-अलग टी.वी. होता है तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी । क्षणिक मनोरंजन के भ्रम में टी.वी. से कितना नुकसान हो रहा है, यह शायद हम भूल रहे हैं । जनसाधारण के लिए तो यह खतरनाक है ही; परन्तु गर्भवती बहनों के लिए यह और भी अधिक हानिकारक है । अतः यदि आप गर्भवती हैं तो टी.वी. से जितने दूर रहें, उतना अच्छा है ।

टेलीविजन पर प्रसारित अधिकतर कार्यक्रम राग-द्वेष, निंदा-चुगली, छल-कपट, अश्लीलता, मार-धाड़, खून-खराबा, बलात्कार आदि से घटनाओं पर आधारित होते हैं । जब गर्भवती इन्हें देखती है तो गर्भस्थ शिशु में अपराध की भावना पनपती है । गर्भस्थ शिशु में चित्त में अनजाने में गंदे और कुत्सित संस्कार गहरे पड़ जाते हैं । गर्भस्थ शिशु की प्रत्येक संवेदना पर उक्त दृश्यों और शब्दों का गहरा असर पड़ता है ।

यह जानते हुए भी कि फिल्मों और सीरियलों में दिखाए जानेवाले सभी किरदार काल्पनिक होते हैं और उनकी भावनाएं अभिनयमात्र हैं फिर भी दर्शक उन किरदारों से भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं, खासकर बहनें । फिर माँ की वो भावनाएं गर्भस्थ शिशु को भी प्रभावित करती हैं । 

टी.वी. में दिखाये जानेवाले फास्टफूड, कोल्डड्रिंक्स और दवाओं आदि के विज्ञापनों से प्रभावित होकर गर्भवती माता उनका सेवन करने लगती है, जिससे उनका पाचन खराब होता है परिणामस्वरूप सगर्भा का स्वास्थ्य बिगड़ता है जिसका सीधा कुप्रभाव गर्भ पर पड़ता है ।

अँधेरे कमरे में टी.वी. देखने से उसके पर्दे पर आते-जाते दृश्यों के साथ प्रकाश भी कम-ज्यादा होता रहता है, आँखें उनके साथ एडजस्ट नहीं कर पाती, जिससे आगे चलकर नेत्ररोग हो जाते हैं जो अनुवांशिक रूप से बच्चों में स्थान्तरित होते हैं । टी.वी. से निकलनेवाली लेजर किरणें दृष्टिदोष तो पैदा करती ही हैं साथ ही में आनेवाली संतान को मंदमति, विकलांग बना सकती हैं । अधिक टी.वी. देखने से हमारी सोच का दायरा भी सीमित हो जाता है, मस्तिष्क में नए विचार नहीं आते । 

गर्भवती माता जितना समय टी.वी. सीरियल और फ़िल्में देखने में लगाती है, उतना समय यदि रामायण पढ़ने, भगवद्गीता के श्लो‌कों का संगीतमय वाचन करने, भक्तिमय प्रेममय भजन गाने, शास्त्रीय संगीत का श्रवण करने, सुन्दर देवालयों, मंदिरों, आश्रमों का भ्रमण करने, सत्संग करने और गौसेवा व गुरुसेवा करने में लगाती है उसके गर्भ से एक स्वस्थ, पवित्रहृदयी और दिव्यात्मा का अवतरण होगा ।

गर्भवती माता अपने मन को समझाकर स्वयं को टेलीविजन कार्यक्रम देखने से बचाए और यदि देखना हो तो चयनित सुसंस्कारोंवाले कार्यक्रम देखे वो भी कम से कम 3 मीटर की दूरी से । अपने और अपने शिशु के चरित्र को अपवित्र होने से बचाये । अब निर्णय आपके हाथों में है कि आपको अपने शिशु का भविष्य उज्जवल बनाना है या उसके मन मस्तिष्क को कलुषित करके उसे अंधकारमय गर्त में धकेल देना है ?

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गर्भस्थ शिशु को सुसंस्कारी बनाने तथा उसके उचित पालन-पोषण की जानकारी देने हेतु पूज्य संत श्री आशारामजी बापू द्वारा प्रेरित महिला उत्थान मंडल द्वारा लोकहितार्थ दिव्य शिशु संस्कार अभियान प्रारंभ किया गया है ।