घोर कलयुग में प्रहलाद जैसी संतान चाहिए तो...

 

हमारे ऋषि-मुनियों ने खोज करके अनादिकाल से यह बताया हुआ है कि बच्चे को गर्भावस्था में जिस प्रकार के संस्कार मिलते हैं, आगे चलकर वह वैसा ही बन जाता है । जैसे राक्षस हिरण्यकशिपु की पत्नी कयाधु को सगर्भावस्था के दौरान देवर्षि नारदजी के सत्संग से भक्ति के संस्कार मिले तो गर्भस्थ बालक आगे चलकर महान भगवद्भक्त, ज्ञानी व कुशल शासक प्रह्लाद हुआ । इसी प्रकार अभिमन्यु ने माँ के गर्भ में ही चक्रव्यूह भेदने का ज्ञान पा लिया था । इस युग में ये बातें लोगों के लिए आश्चर्यजनक थीं लेकिन अब वैज्ञानिकों ने शोधों के द्वारा इस बात को स्वीकार कर लिया है कि बच्चा गर्भावस्था से ही सीखने की शुरुआत कर देता है, खासकर उसे शब्दों का ज्ञान हो जाता है । कुछ शिशुओं पर जन्म के बाद परीक्षण किये गये व उनके मस्तिष्क की क्रिया जाँची गयी तो पाया गया कि शिशु के मस्तिष्क ने गर्भावस्था के दौरान सुने हुए शब्दों को पहचानने के तंत्रकीय संकेत दिये ।

शोध के मुताबिक, गर्भावस्था के दौरान ७वें माह से गर्भस्थ शिशु शब्दों की पहचान कर सकता है और उन्हें याद रख सकता है । इतना ही नहीं, वह मातृभाषा के स्वरों को भी याद रख सकता है । हेलसिंकी विश्वविद्यालय (फिनलैंड) के न्यूरोसाइंटिस्ट आयनो पार्टानेन व उनके साथियों ने पाया कि ‘गर्भावस्था में सुनी गयी लोरी को जन्म के चार महीने बाद भी बच्चा पहचानता है या याद रखता है ।’गर्भस्थ बालक पर माँ के खान-पान, क्रियाकलाप, मनोभावों आदि का भी प्रभाव पड़ता है और माँ द्वारा की गयी हर क्रिया से बच्चा सीखता है । परंतु उसके सीखने की सीमा को विज्ञान अभी पता लगाने में सक्षम नहीं हो पाया है । 

जो मातायें सगर्भावस्था में टीवी सीरियल व फिल्में देखती हैं, अश्लील गाने आदि सुनती रहती हैं उनके शिशुओं में वे संस्कार गर्भ में ही गहरे पड़ जाते हैं, जिससे बड़े होकर उनका स्वभाव चंचल, कामुक व आपराधिक होने की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं । गर्भावस्था के दौरान सत्संग, सत्शास्त्रों का अध्ययन, देव-दर्शन, संत-दर्शन, भगवद्- उपासना करें और मन को सद्विचारों से ओतप्रोत रखें । भगवन्नाम का अधिकाधिक मानसिक जप करें । इससे आपकी संतान दैवी सद्गुणों से युक्त होगी ।गर्भ में ही बना दें बच्चों को सुसंस्कारी वैज्ञानिक भले इस बात को अभी मान रहे हैं परंतु पूज्य बापूजी अपने सत्संगों में पिछले लगभग ५० वर्षों से यह बात बताते आये हैं । बापूजी का ब्रह्मसंकल्प है कि ये ही संस्कारी बालक आगे चलकर भारत को विश्वगुरु के पद पर पहुँचायेंगे । पूज्य बापूजी कहते हैं: “वर्तमान युग में कई माता-पिता ऐसा सोचते हैं कि हमें ऐसे पुत्र क्यों हुए ? उन्हें यह बात समझ लेनी चाहिए कि आजकल स्त्री अथवा पुरुष गर्भाधान के लिए उचित-अनुचित समय-तिथि का ध्यान नहीं रखते हैं । परिणाम में समाज में आसुरी प्रजा बढ़ रही है । बाद में माता-पिता फरियाद करते रहते हैं कि हमारे पुत्र हमारी आज्ञा में नहीं चलते हैं, उनका चाल-चलन ठीक नहीं है इत्यादि । परंतु यदि माता-पिता शास्त्र की आज्ञानुसार रहें तो उनके यहाँ दैवी और संस्कारी संतानें उत्पन्न होंगी, श्रीराम और श्रीकृष्ण के समान बालक जन्म लेंगे ।”

क्योंकि हर गर्भ में है प्रह्लाद जैसी संतान, बस आपके पुरुषार्थ अपेक्षित है ।

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गर्भस्थ शिशु को सुसंस्कारी बनाने तथा उसके उचित पालन-पोषण की जानकारी देने हेतु पूज्य संत श्री आशारामजी बापू द्वारा प्रेरित महिला उत्थान मंडल द्वारा लोकहितार्थ दिव्य शिशु संस्कार अभियान प्रारंभ किया गया है ।