गर्भनाल काटने का सही समय

ऋषि विज्ञान

ऋषियों-महापुरुषों के वचनों पर अध्ययन एवं अन्वेषण कर विज्ञान बहुत ही अचरज व्यक्त करता आया है, क्योंकि जो बात समझने के लिए विज्ञानियों को खूब परिश्रम, प्रदीर्घ समय एवं प्रचुर धन की आहुतियाँ देनी पड़ीं, वही तथ्य हमारे ऋषियों-ब्रह्मनिष्ठ महापुरुषों ने क्षण भर में अपने परम शुद्ध अंतःकरण एवं ऋतम्भरा प्रज्ञा के बल से जानकर या परखकर पहले ही बता रखा है । यही बात नाल छेदन के संदर्भ में भी सत्य साबित हुई ।

पूज्य संत श्री आशारामजी बापू कई वर्षों से अपने सत्संग प्रवचनों में कहते आ रहे हैं कि बच्चे के जन्म के बाद माँ की जेर (Placenta) से जुड़ी गर्भनाल (Umbilical Cord) को तुरंत नहीं काटना चाहिए अपितु 3-5 मिनट के बाद ही काटना चाहिए । 

वैज्ञानिकों और चिकित्सकों का कहना है

         स्वीडिश शोधकर्ता ओला एंडरसन, लीना हेलस्टोर्म, डैन एंडरसन और मैग्नस डोमेनॉफ ने अपने शोध के द्वारा यह निष्कर्ष निकाला है कि ‘जन्म के समय के तीन मिनट या उससे थोड़े अधिक समय के बाद नवजात शिशु की नाल काटना शिशु के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है । ऐसा करने से नवजात शिशु में आयरन (लौह तत्त्व) की कमी होने की सम्भावना काफी कम हो जाती है ।’

         जिनकी नाल तुरंत काटी जाती है, उन शिशुओं को लौह तत्त्व की कमी के कारण जो रक्ताल्पता का रोग होता है और उससे उनके विकास में रुकावट आती है, ये समस्याएँ 3 मिनट के बाद नाल काटने पर नहीं होतीं क्योंकि करीब 50-100 मि.ली. जितना रक्त 3 मिनट में नाल के द्वारा शिशु को मिलता है, जो उसे 1 वर्ष तक विकास में उपयोगी सिद्ध होता है । इस अध्ययन के पूर्व ऐसा मानते थे कि तुरंत नाल न कटवाने से संतान को पीलिया तथा फेफड़े व हृदय के विकार हो सकते हैं । यह मान्यता भी गलत सिद्ध हुई ।

        शोधकर्ताओं ने 334 नवजात शिशुओं को दो समूहों में बाँटा । उनमें से एक समूह के शिशुओं की नाल जन्म लेने के 10 सेकंड के भीतर काटी गयी, जबकि दूसरे समूह के शिशुओं की नाल ३ मिनट या उससे थोड़ा अधिक समय के पश्चात् काटी गयी । 4 माह बाद खून की जाँच करने पर जिन नवजात शिशुओं की नाल 3 मिनट या उससे अधिक समय के पश्चात् काटी गयी थी, उनमें दूसरे समूह के शिशुओं की तुलना में आयरन की मात्रा 45% अधिक थी । दूसरे समूह के अधिकांश शिशुओं में आयरन की कमी पायी गयी ।

        जो डॉक्टर संतों की सीख न मानकर शिशुओं से अन्याय करने की गलती करते रहे, उनके लिए उनके वैज्ञानिक गुरुओं की बात मानकर अपनी गलती सुधारने का यह स्वर्णिम अवसर है ।

First impression is the last impression.

शिशुओं के स्वास्थ्य-बल में बढ़ोतरी के लिए नाल-छेदन में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए, यहाँ तक तो वैज्ञानिक काफी परिश्रम के बाद पहुँच पाये हैं । पूज्य बापूजी वर्षों से इस बात के लिए भी सावधान करते आये हैं कि ‘बच्चा जन्मे तो नर्स  को, डॉक्टर को कह दो कि तुरंत उसका नाभि-छेदन न करें । रक्त-प्रवाह घूमता है तब तक नाभि-छेदन करेंगे तो बालक के गहरे मन में डर घुस जायेगा । फिर कर्नल, जनरल होने पर भी एक चुहिया पैरों में आये तो डर जायेंगे । First impression is the last impression. जन्म के वक्त जो भय घुस जाता है है वह जीवनभर रहता है । जैसे बाल या नाखून काटते हैं तो वह मरा हुआ हिस्सा होने से पीड़ा नहीं होती, ऐसे ही प्रसूति के बाद 4-5 मिनट तक नाभि-छेदन न करें तो रक्त प्रवाह बंद हो जाता है और पीड़ा नहीं होती । बाद में भगवद्-सुमिरन करके उसका नाभि-छेदन होना चाहिए ।”

                                                                   अब वैज्ञानिकों को इस विषय की खोज में भी लग जाना चाहिए ।

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गर्भस्थ शिशु को सुसंस्कारी बनाने तथा उसके उचित पालन-पोषण की जानकारी देने हेतु पूज्य संत श्री आशारामजी बापू द्वारा प्रेरित महिला उत्थान मंडल द्वारा लोकहितार्थ दिव्य शिशु संस्कार अभियान प्रारंभ किया गया है ।