हरि ॐ गुंजन

महत्त्व : मातृत्व का सुख बहुत ही सौम्य और मधुर होता है । गर्भावस्था में इस सुख की अनुभूतियाँ के साथ-साथ कुछ महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व भी जुड़े होते हैं- जैसे गर्भ में आयी नन्हीं संतान में ज्ञान और संस्कारों के सिंचन का उत्तरदायित्व । गर्भावस्था वह स्वर्णिम समय है जिसमें सगर्भा माता अपनी साधना द्वारा अपने और अपने गर्भस्थ शिशु के भावी जीवन का मनचाहा चित्रांकन कर सकती है । जैसे बूँद-बूँद से सरिता और सरोवर बनते हैं, ऐसे ही छोटे-छोटे पुण्य महापुण्य बनते हैं । माता-पिता की पुण्यायी समय पाकर गर्भस्थ शिशु को इतना महान बना सकती है कि वह बन्धन और मुक्ति के पार अपने निजस्वरूप को निहारकर विश्वरूप हो सकता है ।
संस्कार साधना के इस क्रम में सबसे पहले हम चर्चा करेंगे हरि ॐ गुंजन पर । विधि बताने से पहले हम आपको इस हरि ॐ मंत्र की महिमा से अवगत करना चाहेंगे । ‘हरि ॐ’ दो शब्दों से मिलकर बना है ‘हरि+ॐ’ । हरि माना जो हमारे पाप-ताप, दुःख-दोषों को हर ले, हमारे मन की हल्की मान्यताओं को, बुद्धि के अविवेक को और क्षुद्र अहं को हर ले- वो है हरि ।
भगवान वेदव्यासजी कहते हैं-
हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम्।
कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा।।
पद्मपुराण में आया हैः
ये वदन्ति नरा नित्यं हरिरित्यक्षरद्वयम्।
तस्योच्चारणमात्रेण विमुक्तास्ते न संशयः।।
‘जो मनुष्य परमात्मा के इस दो अक्षरवाले नाम ‘हरि’ का नित्य उच्चारण करते हैं, उसके उच्चारणमात्र से वे मुक्त हो जाते हैं, इसमें शंका नहीं है ।’
ॐकार मूल अक्षर है । इसकी चेतना सारी सृष्टि में व्याप्त है । सब मंत्रों में ॐ राजा है । ॐकार अनहद नाद है । यह सहज में स्फुरित हो जाता है। ॐ आत्मिक बल देता है । ॐ के उच्चारण से जीवनशक्ति उर्ध्वगामी होती है । चित्त से हताशा-निराशा भी दूर होती है । यही कारण है कि ऋषि-मुनियों ने सभी मंत्रों के आगे ॐ जोड़ा है । ॐ (प्रणव) परमात्मा का वाचक है, उसकी स्वाभाविक ध्वनि है ।
ॐ = अ+उ+म+(ँ) अर्ध तन्मात्रा। ॐ का अ कार स्थूल जगत का आधार है । उ कार सूक्ष्म जगत का आधार है । म कार कारण जगत का आधार है । अर्ध तन्मात्रा (ँ) जो इन तीनों जगत से प्रभावित नहीं होता बल्कि तीनों जगत जिससे सत्ता-स्फूर्ति लेते हैं फिर भी जिसमें तिलभर भी फर्क नहीं पड़ता, उस परमात्मा का द्योतक है ।
वेदव्यास जी महाराज कहते हैं कि
मंत्राणां प्रणवः सेतुः। यह प्रणव मंत्र सारे मंत्रों का सेतु है ।
सिख धर्म में भी एको ओंकार सतिनामु…… कहकर उसका लाभ उठाया जाता है।

विधि : हररोज़ प्रतःकाल जल्दी उठकर सूर्योदय से पूर्व स्नानादि से निवृत हो जायें । स्वच्छ पवित्र स्थान में आसन बिछाकर पूर्वाभिमुख होकर सुखासन में बैठ जायें । शान्त और प्रसन्न वृत्ति धारण करें । मन में दृढ भावना करें कि मैं प्रकृति-निर्मित इस शरीर के सब अभावों को पार करके, सब मलिनताओं-दुर्बलताओं से पिण्ड़ छुड़ाकर आत्मा की महिमा में जागकर ही रहूँगी । आँखें आधी खुली, आधी बंद । अब गहरा श्वास भरें और भावना करें कि श्वास के साथ में सूर्य का दिव्य ओज भीतर भर रही हूँ । फ़िर ‘हरि ॐ…’ का लम्बा उच्चारण करते हुए श्वास को धीरे-धीरे छोड़ते जायें । श्वास के खाली होने के बाद तुरंत श्वास ना लें । भीतर ही भीतर ‘हरि: ॐ…’ ‘हरि: ॐ…’ का मानसिक जप करें । फ़िर से श्वास भरकर पूर्वोक्त रीति से धीरे-धीरे छोड़ते हुए ‘ॐ…’ का गुंजन करें । गुंजन करते हुए अपना सारा ध्यान उस ध्वनि पर एकाग्र करें ।
दस-पंद्रह मिनट इस प्रकार दीर्घ स्वर से ‘हरि ॐ…’ की ध्वनि करके शान्त हो जायें । सब प्रयास छोड़ दें । वृत्तियों को आकाश की ओर फ़ैलने दें । आकाश के अन्दर पृथ्वी है । पृथ्वी पर अनेक देश, अनेक समुद्र एवं अनेक लोग हैं । उनमें से एक आपका शरीर आसन पर बैठा हुआ है । इस पूरे दृश्य को आप मानसिक आँख से, भावना से देखते रहो । आप शरीर नहीं हो बल्कि अनेक शरीर, देश, सागर, पृथ्वी, ग्रह, नक्षत्र, सूर्य, चन्द्र एवं पूरे ब्रह्माण्ड़ के दृष्टा हो, साक्षी हो । इस प्रकार आपका गर्भस्थ शिशु भी इन सबका दृष्टा है ।
ऐसी भावना करें कि मेरे अंदर आरोग्यता व आनंद का अनंत स्त्रोत प्रवाहित हो रहा है… मेरे अंतराल में दिव्यामृत का महासागर लहरा रहा है । समग्र सुख, आरोग्यता, शक्ति मेरे भीतर है । मेरे मन में अनन्त शक्ति और सामर्थ्य है । मैं स्वस्थ हूँ । पूर्ण प्रसन्न हूँ । इसी प्रकार मेरा शिशु भी निरोग और प्रफुल्लित है । मेरे अंदर-बाहर, मेरे शिशु के चारों ओर सर्वत्र परमात्मा का प्रकाश फ़ैला हुआ है ।
सदा स्मरण रहे कि इधर-उधर भटकती वृत्तियों के साथ आपकी शक्तियां भी बिखरती है । अतः वृत्तियों को बिखरने न दें ।

दोनों संध्याओं की उपासना के समय पति-पत्नी साथ बैठकर इस प्रकार हरि ॐ का उच्चारण अथवा गुंजन करें तो गर्भस्थ शिशु पर अद्भुत प्रभाव पड़ता है ।

लाभ :
• ह्रीं शब्द बोलने से यकृत पर गहरा प्रभाव पड़ता है और हरि के साथ यदि ॐ मिला कर उच्चारण किया जाए तो हमारी पाँचों ज्ञानेन्द्रियों पर अच्छी असर पड़ती है ।
• हरि ऊँ का गुंजन करने से मूलाधार केन्द्र रुपांतरित होता है तो काम राम में, भय निर्भयता में और ईर्ष्या प्रेम में परिणत हो जाता है ।
• हरि ऊँ के गुंजन से मूलाधार केन्द्र में स्पंदन होता है एवं कई कीटाणु भाग खड़े होते हैं ।
• गर्भवती में निर्भयता व प्रेममय स्वभाव का निर्माण होना जरुरी है । साथ ही माँ का चित्त एकाग्र होना, हृदय निर्मल व शांत होना भी अति आवश्यक है क्योंकि माँ का हृदय बच्चे के हृदय से जुड़ा है । जैसा माँ का हृदय (आचार, विचार, व्यवहार ) होगा वैसा ही बच्चे का हृदय निर्मित होगा ।
• हरि ऊँ गुंजन से आपको मानसिक तनाव से मुक्ति मिलेगी । बच्चे का विकास भी समुचित प्रकार से होगा ।
• ज्ञानमुद्रा सहित हरि ऊँ की ध्वनि करने से मन की भटकान शीघ्र बंद होने लगेगी । ज्ञानमुद्रा से आपके और आपके गर्भस्थ शिशु के मस्तिष्क के ज्ञानतंतुओं को पुष्टि मिलेगी । आप स्वयं को सहज अनुभव करेंगे ।
• निःसंतान व्यक्ति को इस मंत्र के बल से संतान प्राप्त हो सकती है ।

सावधानी : गर्भावस्था में अकेले प्रणव का गुंजन नहीं करना चाहिए । प्रणव(ॐ ) के साथ हरि अथवा अन्य कोई मंत्र जोड़कर उच्चारण करें ।

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गर्भस्थ शिशु को सुसंस्कारी बनाने तथा उसके उचित पालन-पोषण की जानकारी देने हेतु पूज्य संत श्री आशारामजी बापू द्वारा प्रेरित महिला उत्थान मंडल द्वारा लोकहितार्थ दिव्य शिशु संस्कार अभियान प्रारंभ किया गया है ।