ध्यान

 

संस्कार साधना के क्रम में आज हम चर्चा करेंगे ऐसी साधना के विषय में है जो आध्यात्मिक जगत का आधार तो है ही, साथ ही लौकिक जगत में इससे होनेवाले लाभ का वर्णन नहीं किया जा सकता और वह साधना है – ध्यान अर्थात् मेडिटेशन । गर्भाधान से पूर्व पति-पत्नी द्वारा नियमित रूप से किया जानेवाला ध्यान दोनों को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ तो बनाता ही है, साथ-ही-साथ बीज को भी परिशुद्ध और सुदृढ़ करता है । गर्भावस्था में ध्यान करने से माता को तो अद्भुत लाभ होता ही है, उसके शिशु में भी विलक्षण लक्षण प्रकट होने लगते हैं । आप दुनिया का कोई भी काम करो लेकिन जाने-अनजाने आप ध्यान के जितने करीब होंगे, उतने ही आप उस कार्य में सफल होंगे ।

शास्त्र कहते हैं –

नास्ति ध्यान समं तीर्थम् । नास्ति ध्यानसमं दानम् । नास्ति ध्यानसमं यज्ञम् । नास्ति ध्यानसमं तपम् । तस्मात् ध्यानं समाचरेत् ।

अर्थात् ध्यान के समान कोई तीर्थ नहीं । ध्यान के समान कोई दान नहीं । ध्यान के समान कोई यज्ञ नहीं । ध्यान के समान कोई तप नहीं । अतः हर रोज़ ध्यान करना चाहिए ।

ध्यान का अर्थ क्या ?

ध्यान है डूबना । ध्यान है आत्म-निरीक्षण करना… ‘हम क्या हैं, कैसे हैं’ यह देखना…। ध्यान अर्थात् न करना… कुछ भी न करना । सब काम करने से नहीं होते हैं । कुछ काम ऐसे भी हैं जो न करने से होते हैं । ध्यान ऐसा ही एक कार्य है । कम-से-कम सुनें, मन में कम-से-कम संकल्प-विकल्प उत्पन्न हों, इन्द्रियों का व्यापार कम-से-कम हो ।

विधि –

सुबह सूर्योदय से पहले उठकर, नित्यकर्म करके गरम कंबल अथवा टाट का आसन बिछाकर सुखासन में बैठ जाएँ । अपने सामने भगवान अथवा अपने गुरूदेव का चित्र रखें । धूप-दीप-अगरबत्ती जलायें । फिर दोनों हाथों को ज्ञानमुद्रा में घुटनों पर रखें । थोड़ी देर तक चित्र को देखते-देखते त्राटक करें । पहले खुली आँख आज्ञाचक्र में ध्यान करें । फिर आँखें बंद करके ध्यान करें । बाद में गहरा श्वास लेकर थोड़ी देर अंदर रोक रखें, फिर हरि ॐ….. दीर्घ उच्चारण करते हुए श्वास को धीरे-धीरे बाहर छोड़ें । श्वास को भीतर लेते समय मन में भावना करें- मैं सदगुण, भक्ति, निरोगता, माधुर्य, आनंद को अपने भीतर भर रहा हूँ/रही हूँ । और श्वास को बाहर छोड़ते समय ऐसी भावना करें- मैं दुःख, चिंता, रोग, भय को अपने भीतर से बाहर निकाल रहा हूँ/सही हूँ । इस प्रकार कम-से-कम सात बार करें । ध्यान करने के बाद पाँच-सात मिनट शाँत भाव से बैठे रहें ।

लाभ-

ध्यान सर्वोच्च मेधा, प्रज्ञा, दिव्यता तथा प्रतिभारूपी अमूल्य सम्पत्ति को प्रकट करता है । गर्भावस्था में होनेवाले मानसिक उत्तेजना, उद्वेग और तनाव की बड़े-में-बड़ी दवा ध्यान है । ध्यान का अभ्यास करने से अलग से दवाइयों पर धन खर्च नहीं करना पड़ता । ध्यान करने से हाई बी.पी., लो बी.पी., अच्छी नींद का अभाव, थायराइड जैसे रोगों से दूरी बनी रहती है । चित्त में प्रसन्नता बनी रहती है । जो पति-पत्नी नियमित रूप से ध्यान करते हैं, उनमें भगवद्ध्यान से मन-मस्तिष्क में नवस्फूर्ति, नयी अनुभूतियाँ, नयी भावनाएँ, सही चिंतन प्रणाली, नयी कार्यप्रणाली का संचार होता है । परिणामस्वरूप गर्भस्थ शिशु में भी दैवी सम्पदा का विकास होता है । 

ध्यान के प्रकार

ध्यान चार प्रकार का होता है :

(१) पादस्थ ध्यान:

भगवान या सदगुरु- जिनमें तुम्हारी प्रीति हो, उनके चरणारविंद को देखते-देखते ध्यानस्थ हो जाना – इसको बोलते हैं ‘पादस्थ ध्यान’।

(२) पिंडस्थ ध्यान:

अपने शरीर में सात केंद्र या चक्र हैं – मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धाख्य, आज्ञा एवं सहस्रार । आँखें बंद करके इनमें से किसी भी केन्द्र पर मन को एकाग्र करना ‘पिंडस्थ ध्यान’ कहलाता हैं ।

(३) रूपस्थ ध्यान:

बहती हुई नदी, सागर, चन्द्रमा, आकाश, प्रकृति को, किसी वस्तु को अथवा भगवान या सदगुरु के मुखमंडल को एकटक देखते- देखते मन शांत हो गया । इसे “रूपस्थ ध्यान” कहते हैं । हम पहले भगवान की मूर्ति का ध्यान करते थे । जब गुरुजी मिल गये तो सारे भगवान गुरुतत्त्व में ही समा गये । डीसा में हमारा साधना का कमरा कोई खोलकर देखे तो गुरुजी की मूर्ति ही होगी बस । ध्यानमूल गुरोमूर्ति:  ।

(४) रूपातीत ध्यान:

वासुदेव: सर्वम्‌… ‘वासुदेव ही सब कुछ हैं, सर्वत्र हैं’ – इस प्रकार का चिंतन-ध्यान ‘रूपातीत ध्यान’ कहलाता है  । फिर द्वेष नहीं रहता, भय नहीं रहता, क्रोध नहीं रहता  । “अनेक रूपों में एक मेरा वासुदेव है” – ऐसा चिंतन करके भावातीत, गुणातीत दशा में चुप हो जाना । ऐसा चुप होना सबके बस की बात नहीं है । इसलिए तनिक चुप हो जायें, फिर ॐ हरि ॐ… का दीर्घ उच्चारण करें  । ‘म’ बोलने के समय होंठ बंद रहें  । इस प्रकार के ध्यान से ऊँची दशा में पहुँच जाओगे ।

पादस्थ से पिंडस्थ ध्यान अंतरंग है पिंडस्थ से रूपस्थ ध्यान अंतरंग है और रूपस्थ से रूपातीत  । लेकिन जो जिसका अधिकारी है, उसके लिए वही बढ़िया है । ध्यान करनेवाले को अपनी रुचि और योग्यता का भी विचार करना चाहिए  ।इनमें से किसी भी प्रकार के ध्यान में लग जाओ तो अद्भुत शक्तियों का प्राकट्य होने लगेगा । एक अनपढ़ गँवार व्यक्ति भी अगर किसी एक प्रकार का ध्यान करने लगे तो बड़े-बड़े धनिकों के पास, बड़े- बड़े सत्ताधीशों के पास, बडे-बड़े विद्वानों के पास जो नहीं है वे सारी शक्तियाँ उसके पास आ जायेंगी ।

 विज्ञान को अब समझ में आयी ध्यान की महिमा

आज आधुनिक वैज्ञानिक संत-महापुरुषों की इस देन एवं इसमें छुपे रहस्यों के कुछ अंशों को जानकर चकित हो रहे हैं ।

हार्वर्ड विश्वविद्यालय में एक अध्ययन में पाया गया कि ध्यान के दौरान जब हम अपने हर एक श्वास पर ध्यान लगाते हैं तो इसके साथ ही हमारे मस्तिष्क के कॉर्टेक्स नाम हिस्से की मोटाई बढ़ने लगती है, जिससे सम्पूर्ण मस्तिष्क की तार्किक क्षमता में बढ़ोतरी होती है । अच्छी नींद के बाद सुबह की ताजी हवा में गहरे श्वास लेने का अभ्यास दिमागी क्षमता को बढ़ाने का सबसे बढ़िया तरीका है । पूज्य बापू जी द्वारा बतायी गयी दिनचर्या में प्रातः 3 से 5 का समय इस हेतु सर्वोत्तम बताया गया है । कई शोधों से पता चला है कि जो लोग नियमित तौर पर ध्यान करते हैं, उनमें ध्यान न करने वालों की अपेक्षा आत्मविश्वास का स्तर ज्यादा होता है । साथ ही उनमें ऊर्जा और संकल्पबल अधिक सक्रिय रहता है । येल विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ता का कहना है कि ‘ध्यान करने वाले छात्रों का आई.क्यू. लेवल (बौद्धिक क्षमता) औरों से अधिक देखा गया है ।’

इस प्रकार दिव्य संतान चाहनेवाले माता-पिता को गर्भधारण से पूर्व और गर्भावस्था के दौरान दोनों संध्याओं में ध्यान का अभ्यास करना चाहिए ।

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गर्भस्थ शिशु को सुसंस्कारी बनाने तथा उसके उचित पालन-पोषण की जानकारी देने हेतु पूज्य संत श्री आशारामजी बापू द्वारा प्रेरित महिला उत्थान मंडल द्वारा लोकहितार्थ दिव्य शिशु संस्कार अभियान प्रारंभ किया गया है ।