अधिक मास: 18 जुलाई से 16 अगस्त 2023

अधिक मास

 

अधिक मास को ‘मल मास’ पाप-ताप नाशक या ‘पुरुषोत्तम मास’ भी कहते हैं । चातुर्मास में इस मास को अधिक महत्त्वपूर्ण माना गया है । इसीलिए इस मास में प्रातः स्नान, दान, तप, नियमधर्म, पुण्यकर्म, व्रत-उपासना तथा निःस्वार्थ नाम जप, गुरुमंत्र जप का अधिक माहात्म्य तथा महत्त्व है । अधिक मास में शादी, दीक्षाग्रहण जैसे मंगल कार्य नहीं किये जाते ।
पांडवो ने वनवास के दिनों में तीन बार अधिक मास में यथाशक्ति स्नान, दान आदि व्रत किये, नियम धर्मों का पालन किया और परमात्मा पुरुषोत्तम की भक्ति की जिसके फलस्वरूप अंततः उन्हें विजय प्राप्त हुई ।
हैहय देश में दृढधन्वा राजा और उसकी सर्वगुण संपन्न रानी दोनों ने पूर्वजन्म में पुरुषोत्तम मास में बारिश में बैठकर उपवास किया था जिसके फलस्वरूप उन्हें अगले जन्म में राज सुख की प्राप्ति हुई, ऐसी कथा आती है ।
इस मास में आँवले और तिल का उबटन शरीर को मलकर स्नान करना और आँवले के पेड़ के नीचे भोजन करना यह भगवान श्री पुरुषोत्तम को अतिशय प्रिय है, स्वास्थ्यप्रद और प्रसन्नताप्रद है । यह व्रत करनेवाले लोग बहुत पुण्यवान हो जाते हैं ।

प्रसिद्ध पौराणिक प्रसंग

प्राचीन काल में इंद्रलोक की एक अप्सरा, स्मितविलासिनी एक बार पृथ्वी पर कुरुक्षेत्र में क्रीड़ा करने आयी थी । उसने वहाँ के सुगंधित फुल चुनकर सुंदर हार बनाया और ध्यानस्थ दुर्वासा ऋषि के गले में डाला । दुर्वासा ऋषि ने उसे शाप दिया कि तू पिशाचिनी होकर पृथ्वीलोक पर भटकती रहेगी । उस पर उसने क्षमायाचना की, तब दुर्वासा ऋषि ने उसे परिमार्जन बताया कि दूसरे किसी व्यक्ति द्वारा अधिक मास का पुण्य तुझे दान करने पर तुम्हारा उद्धार होगा और उसके बाद तुम पुनः इन्द्रलोक में जाओगी । वह अप्सरा भटकते-भटकते दक्षिण दिशा में कुमारी क्षेत्र में गयी । वहाँ पर एक तपस्विनी थी, उसने अधिक मास में स्नान, दान जप, उपवास आदि बहुत सारे व्रत किये थे । कृष्ण द्वादशी के दिन उस तपस्विनी को खाने के उद्देश्य से वह पिशाचिनी (अप्सरा) उसके नजदीक गयी, पर क्या आश्चर्य, उसके तप के तेज से वह तेजोमय हो गयी । उसने उस तपस्विनी के चरण पकड़कर आप बीती बतायी । तब उस तपस्विनी ने अपना अधिक मास का सारा पुण्यफल उसे अर्पण कर दिया । उसी क्षण उस पिशाचिनी रूप अप्सरा का उद्धार हो गया ।

इस प्रकार इस अधिक मास (पुरुषोत्तम मास ) में जप ध्यान करने से पुण्यमय आध्यात्मिक ओज-तेज की प्राप्ति होती है ।

अधिक मास कैसे हुआ इतना महिमावान ?

अधिक मास के स्वामी पुरुषोत्तम भगवान हैं । करीब ३५५ दिन का चान्द्रवर्ष एवं ३६५ दिन का सौर वर्ष इनका मेल बिठाने हेतु ऋषियों ने हर तीन साल के बाद अधिक मास का निर्माण किया । लेकिन इस महीने को कोई इतना महत्त्व न देने के कारण उसे वर्ज्य, त्याज्य मानने लगे । तब नाराज होकर इस मास का अधिष्ठाता देव भगवान पुरुषोत्तम की शरण गया तथा उनको प्रसन्न कर वरदान प्राप्त किया कि यह पुण्य अर्जित करानेवाला तथा पापों का नाश करनेवाला पुरुषोत्तम के नाम से यह महीना माना जायेगा अर्थात् इस मास में जप तप आराधना उपासना करनेवालों के पापों के पहाड़ भी नाश हो जायेंगे ।

अधिक मास माहात्म्य

  • अधिक मास में दान-उपासना जप तप यज्ञ व्रत करने से अमिट पुण्य प्राप्त होता है ।
  • इस महीने में दीपदान करते हैं । दीपदान से मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं । दुःख-शोक का नाश होता है । वंशदीप बढ़ता है । ऊँचा सान्निध्य मिलता है, आयु बढ़ती है ।
  • दीन-दुःखी, साधु-संतों तथा गरीबों को अन्नदान करने से, भगवान व भगवद्प्राप्त महापुरुषों की षोडशोपचार से पूजा करने से हृदय की शांति मिलती है । बेसहारा असहाय लोगों का आधार बनकर उनको उचित दिशा दिखाने व भोजन कराने से पुण्य राशि प्राप्त होती है ।
  • उपवास, मौन, नामस्मरण, भगवद्दर्शन, संत-सान्निध्य आदि का प्रयत्नपूर्वक सेवन करने से इस मास में अनगिनत लाभ होते हैं।
  • मन को संयम की लगाम लगाकर निर्वासनिक बनना, करकसर से जीना, इन्द्रियों को प्रयत्नपूर्वक सन्मार्ग पर चलाना, श्रद्धा में वृद्धि करना, संत-सद्गुरु को प्राप्त कर भवसागर से तरने का पुरुषार्थं करने के लिए इस पुरुषोत्तम मास का बड़ा महत्त्व है ।
  • पुरुषोत्तम मास अर्थात अधिक मास में गौमाता की पूजा का भी अपना अलग स्थान है । गौदुग्ध, गौघृत, गौ गोबर, पंचगवी आदि का विशेष महत्त्व है ।

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