यदि आप भी दूसरी गर्भ धारणा के बारे में विचार कर रही हैं तो…

यदि आप भी दूसरी गर्भधारणा के बारे में विचार कर रही हैं तो...

एक संतान को जन्म देना हर माता-पिता के लिए बड़े सौभाग्य की बात होती है । जब आधुनिक दम्पति एक संतान के बाद दूसरी संतान के लिए विचार करते हैं तो उनके बीच पहला मतभेद तो यह खड़ा होता है कि दूसरी संतान चाहिए भी कि नहीं ? कभी पति दूसरी संतान नहीं चाहता, तो कभी पत्नी । जब यह मतभेद सुलझता है तो बात आगे बढ़ती है । लेकिन कई बार संयम के अभाव में या परिवार के प्रभाव में आकर दूसरी संतान के लिए प्लान करते समय दम्पति अक्सर यह भूल जाते हैं कि दो गर्भधारणा के बीच कितना अंतर होना चाहिए ।

यदि आप भी इसी असमंजस में हैं तो पहले स्वयं से पूछे यह सवाल :

क्या आप शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से सक्षम हैं ?

माता और शिशु दोनों के सम्पूर्ण स्वास्थ्य की दृष्टि से देखा जाये तो दो गर्भधारणा के बीच कम-से-कम २ वर्ष का अंतर होना ही चाहिए और यदि पहली प्रसूति ऑपरेशन से (सिजेरियन) हुई है तो यह अंतर कम-से-कम ३ वर्ष का तो होना ही चाहिए ।

इतना अंतर क्यों आवश्यक है ?

  1. विशेषज्ञों की मानें तो संतान के जन्म के बाद माता का शरीर काफी कमजोर हो जाता है । उसके शरीर से आवश्यक पोषक तत्व निकल जाते हैं और शरीर में एनर्जी काफी कम हो जाती है । इस स्थिति से उबरने के लिए माँ को पर्याप्त समय की चाहिए होता है ।
  2. शारीरिक स्थिति के साथ-साथ Stress recovery में भी समय लगता है । दूसरी गर्भधारणा जल्दी होने से माता में ड‍िप्रेशन जैसे लक्षण नजर आने लगते हैं ।
  3. दो बच्‍चों के बीच कम अंतर रखने से miscarriage, Low Birth weight और Pre-mature delivery का खतरा हो सकता है ।
  4. कम अंतर की गर्भधारणा से माँ को एनीमिया और गर्भाशय में इंफेक्शन का खतरा बढ़ सकता है ।
  5. माता के लिए कब्ज, उदर पीड़ा, श्वेत प्रदर, योनिभ्रंश, क्षय जैसी बहुत सारी बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है । कभी-कभी यह खतरा माँ की जान जाने की सीमा तक पहुँच जाता है ।
  6. अगर पहली डिलीवरी सी-सेक्शन है उस दौरान लगनेवाले टांके अगर अच्छे से सूखने से पहले ही आप दूसरी गर्भधारणा लेते हैं तो वे बहुत जल्द ही खुल भी सकते हैं जो गम्भीर स्थितियाँ उत्पन्न कर सकते हैं ।
  7. कम अंतरवाली गर्भधारणा में प्रसूति के बाद माँ के शरीर में बननेवाला दूध कम गुणवत्ता वाला होता है ।
  8. एक प्रसूति के तुरंत बाद दूसरी गर्भधारणा के कारण दोनों बच्चों को ब्रेस्ट-फीडिंग करवाने, उनका ध्यान रखने, उनका सारा काम करने, उनके साथ रातभर जागने यानि कि दो बच्चों की सारी जिम्मेदारी एक साथ उठाने के कारण माता के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ।
  9. प्रसूति के बाद जब मासिक चक्र शुरू होता है उस समय बननेवाले स्त्री बीज अपेक्षाकृत कम स्वस्थ और सुदृढ होते हैं ।
  10. दूसरे बच्चे के लिए प्‍लान करने से पहले आपको अपनी आर्थ‍िक स्‍थ‍िति पर विचार करना चाहिए । लगातार बच्चों के बीच कम अंतर वर्तमान के साथ-साथ भविष्य में भी आपको आर्थिक रूप से कमजोर बना सकता है ।
  11. अगर दो बच्चों के जन्म में 3 साल का अंतर होता है तो पहला बच्चा थोड़ा समझदार होने लगता है । इसलिए माता-पिता दोनों बच्चों की सही ढंग से परवरिश कर पाते हैं ।

इस पक्ष को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता :

आयु और प्रजनन क्षमता एक दूसरे के व्युत्क्रमानुपाती होते हैं । पति-पत्नी की आयु जितनी अधिक होती है, उनकी प्रजनन क्षमता उतनी ही कम होती जाती है । जो मातायें 30 की उम्र में पहले बच्चे को जन्म देती हैं उनके पास इतना समय नहीं होता कि वे अपने 2 बच्चों के बीच अधिक अंतर रख पाएं क्योंकि उनके लिए उनकी बढ़ती उम्र फर्टिलिटी से जुड़ी समस्याएं उत्पन्न कर सकती है । ऐसा भी नहीं है क‍ि आपकी दूसरी प्रेग्नेंसी भी पहली जैसी होगी क्‍योंक‍ि हर प्रेग्नेंसी का केस अलग होता है, हर बार आपको अलग तरह की चुनौत‍ियों के ल‍िए तैयार रहना होगा । अगर आप बहुत अधिक वर्षों का अंतर रखते हैं तो हाइपरटेंशन, क‍िडनी ड‍िसऑर्डर या डायब‍िटीज का खतरा हो सकता है ।

सावधान !!!

प्राय: ऐसा देखा जाता है कि कई बार महिलायें जाने-अनजाने ही दूसरी बार प्रेग्नेंट हो जाती हैं ।
इसमें ‘असंयम’ एक प्रधान कारण है । विषयभोग की अतिशयता जैसे पुरुष के लिये घातक है, वैसे ही स्त्री के लिये भी अत्यन्त हानिकारक है । अधिक विषय-भोग से गर्भस्त्राव तो होता ही है; संतान भी दुर्बल, अल्पजीवी, रोगी, मंदबुद्धि, चरित्रहीन और अधार्मिक होती है । अग्नि में घी डालने से जैसे अग्नि बढ़ती है, वैसे ही अतिरिक्त भोग से भोगकामना उत्तरोत्तर बढ़ती रहती है । अतएव दम्पति को चाहिये कि वे नीरोगता, धार्मिकता, उत्तम स्वस्थ संतान और दीर्घ आयु की प्राप्ति के लिये अधिक-से-अधिक संयम करें । यह स्मरण रखना चाहिये कि विषय सेवन विषय सुख के लिये नहीं है, संतानोत्पत्तिरूप धर्मपालन के लिये है । अतएव धर्मानुकूल विषय-सेवन ही है ।

भगवान श्रीकृष्ण ने गीताजी में कहा है –
‘धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ ।’ ‘हे अर्जुन ! प्राणियों में धर्म से अविरुद्ध काम में हूँ ।’

इसी दृष्टि से शास्त्रानुसार ऋतुकाल में कम-से-कम विषय-संसर्ग करना चाहिये । गर्भाधान हो जाने पर विषय संसर्ग सर्वथा बंद कर देना चाहिये ।

क्या करना चाहिए ?

प्रथम प्रसव के बाद जब तक बच्चा स्तनपान करता है, तब तक समागम नहीं चाहिये । लगभग डेढ़ वर्ष तक स्तनपान कराना उचित व हितकर है । जिन बच्चों को स्वस्थ माता का स्नेह परिपूर्ण दूध मिलता है, उनका जीवन सब प्रकार से सुखी होता है । असंयमजनित विघ्न नहीं होगा तथा माता का शरीर स्वस्थ रहेगा तो डेढ़ वर्ष तक स्तनों में पर्याप्त दूध आता रहेगा । स्तनपान बंद कराने के पश्चात् उतने ही काल तक माता के शरीर को आराम पहुँचे, इस निमित्त से समागम नहीं करना चाहिये । इस प्रकार लगभग संतानोत्पत्ति के बाद तीन साल तक संयम से रहना उचित है ।

शिशु के स्तनपान छोड़ते ही सम्भोग करना ‘अधम’ है । स्तनपान छोड़ने के बाद उतने ही समय के बाद सम्भोग करना ‘मध्यम’ है और पूरे पाँच साल बीतने पर संभोग करना ‘सर्वश्रेष्ठ’ है ।

 

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