हे माँ ! तुम्हें प्रणाम …

हे माँ ! तुम्हें प्रणाम...

माँ की महिमा का वर्णन करते हुए ʹब्रह्मवैवर्त पुराणʹ में गणेश खंड के 40 वें अध्याय में आया हैः

जनको जन्मदानाच्च पालनाच्च पिता स्मृतः।।
गरीयान् जन्मदातुश्च योઽन्नदाता पिता मुने।
तयोः शतगुणं माता पूज्या मान्या च वन्दिता।।
गर्भधारणपोषाभ्यां सैव प्रोक्ता गरीयसी।
ʹ(कोई) जन्म देने के कारण जनक और पालन करने के कारण पिता कहलाता है । उस जन्मदाता से अन्नदाता पिता श्रेष्ठ होता है । इनसे भी माता सौ गुनी अधिक पूज्या, मान्या और वन्दनीया होती है क्योंकि वह गर्भधारण तथा पोषण करती है ।ʹ

इसलिए जननी एवं जन्मभूमि को स्वर्ग से भी श्रेष्ठ बताते हुए कहा गया है ।

माँ महँगीबाजी उन महान माताओं में से एक है जिन्होंने धरा पर पूज्य बापूजी जैसे संत को अवतरित करके न केवल एक संतमाता होने का गौरव प्राप्त किया, बल्कि खुद भी पूर्ण संतत्व प्राप्त कर, ब्रह्मनिष्ठा प्राप्त कर सदा-सदा के लिए अमर हो गईं ।

बचपन से ही माँ महँगीबाजी में गुरुसेवा का बड़ा प्रबल भाव था । वे अपने कुलगुरु की सेवा पूरे हृदयपूर्वक करती थीं । उनकी सेवा से प्रसन्न होकर उनके कुलगुरु ने ही उनका विवाह नगरसेठ थाऊमलजी से करवाया था । महँगीबाजी के ससुराल में सुख-सुविधाएँ तो थीं, साथ ही मानसिक कष्ट भी थे । महँगीबाजी की जेठानियाँ उनसे घर का सारा काम तो करवातीं ही, ऊपर से ताने भी मारतीं । किंतु महँगीबाजी इतनी सरल थीं कि कभी उनका कोई प्रतिकार नहीं करती थीं वरन् चुप्पी साधकर प्रभु-चिंतन करते-करते सब सहन कर लेती थीं । सहनशीलता तो मानो उनमें कूट-कूटकर भरी थी । और शायद उनके जीवन का यह कसौटी का काल ही उनके उज्जवल भविष्य की नींव बना । उनके गर्भ में एक पूर्णपुरुष का आगमन हुआ ।

माँ महँगीबाजी का स्वभाव अत्यंत नम्र, दयालु, सरल, सेवाभावी एवं ईश्वरभक्ति से परिपूर्ण था । वे प्रतिदिन नियम से पक्षियों को दाना डालतीं और नियमपूर्वक ईश्वर की पूजा-अर्चना करती थीं । घर आये अतिथियों, साधु-संतों की सेवा, घर की गायों की देखभाल तथा अन्य कितने ही घरेलु काम वे खुद ही करतीं । माता यशोदा की तरह वे स्वयं दही बिलोकर गाँव के लोगों में छाछ, मक्खन बड़े प्रेमपूर्वक बाँटती थीं । उन्होंने सभी से कह रखा था कि ʹयदि किसी कारणवश मैं यहाँ न होऊँ तो भी कभी किसी को भी घर से खाली हाथ लौटने मत देना । ऐसी थी उनकी अनन्य परोपकारिता ! मातुश्री का इन्हीं संस्कारों के साथ हुआ संतप्रवर का गर्भ संस्कार !

माँ महँगीबाजी को प्रसव-पीड़ा सुबह से ही होने लगी थी परंतु जब उन्होंने देखा कि आज अभी तक छाछ नहीं बाँटी हैं तो उऩ्होंने भगवान से प्रार्थना की कि ʹहे प्रभु ! पहले मैं छाछ व मक्खन बाँट लूँ फिर ही प्रसूति हो ।ʹ परमात्मा ने उनकी पुकार सुन ली और हमारे प्यारे सदगुरुदेव पूज्य बापूजी का अवतरण उनके रोज के सेवाकार्य के बाद दोपहर 12 बजे हुआ ।

अम्माजी की जेठानी अस्वस्थता के कारण अपने बच्चों को पेयपान कराने में असमर्थ थीं । उसी दौरान महँगीबाजी ने भी एक बच्चे को जन्म दिया था । जेठानियाँ इतनी-इतनी परेशानियाँ एवं कष्ट देती रहती थीं तो भी महँगीबाजी उदारतापूर्ण व्यवहार रखतीं और अपने बच्चे के साथ जेठानी के बच्चे को भी पयपान करातीं । साक्षात् परब्रह्मस्वरूप ब्रह्मज्ञानी संतशिरोमणि की जननी के वक्षस्थल से सदैव सबके लिये वात्सल्य का अमृत तो बहेगा ही । उनके हृदय में अपने परायेपन का भेद कैसे हो सकता है !

अम्माजी स्वयं तो ईश्वर की पूजा अर्चना करती ही थीं, अपने पुत्र आसुमल में भी यही संस्कार उन्होंने बाल्यकाल में डाले थे । अम्माजी आटा-पीसते नन्हें आसु को गोदी में बिठाकर भगवन के भजन सुनातीं । मातुश्री सोचतीं कि ʹमेरे लाल को बचपन से ही भगवान में विश्वास हो जाये इसके लिए मैं क्या करूँ, उसे कौनसी चीज दूँ ?ʹ फिर आसू से कहतीं- ʹतू भगवान के आगे आँखें बंद करके बैठेगा तो भगवान तुझे मक्खन मिश्री देंगे ।ʹ फिर अम्मा स्वयं ही चुपके से आसु के पास मक्खन-मिश्री रख जातीं । आँखें खोलते ही मक्खन मिश्री देखकर आसु खुश हो जाता । बहनें बताने जातीं ʹआसु ! यह तो माँ ने रखा है।ʹ तो अम्माजी उन्हें आँखें दिखाकर चुप करवा देतीं और समझातीं कि इससे आसु का भगवद्विश्वास नहीं जमेगा । इस प्रकार पूज्य बापू जी की बचपन में ध्यान-भजन में रूचि जगाने वाली माँ महँगीबाजी ही थीं ।

छोटी उम्र में ही बालक आसुमल पर पारिवारिक जिम्मेदारियाँ आ गयीं । बीच में ही पढ़ाई छोड़ देनी पड़ी व बड़े भाई के साथ जिम्मेदारियों को निभाने में सहभागी होना पड़ा । इतने पर भी ये माँ महँगीबाजी की तपस्या ही थी कि आसुमल ने अपने ध्यान-भजन के नियमों में थोड़ी भी कमी नहीं आने दी, ध्यान-भजन में उनकी रूचि और अधिक प्रगाढ़ होने लगी थी । पूज्य बापू जी की बढ़ती आध्यात्मिक उत्कंठा के बारे में अम्मा कहती थीं- “घर में स्वामी विवेकानंदजी का फोटो लगा हुआ था। नन्हा आसुमल मुझे फोटो दिखाकर बोलता कि ʹमैं विवेकानंदजी जैसा कब बनूँगा ?ʹ और फिर भाभी को कहताः ʹदेखना, इनके समान घर-घर में मेरे भी फोटो लगेंगे।ʹ यह सुनकर भाभी मुँह बनाती, मुँह में हवा भरकर आवाज निकालती और बोलतीः “हं… आया बड़ा विवेकानंद बननेवाला… छोटा मुँह बड़ी बात…।” लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया वैसे-वैसे आसुमल का वचन साकार होता गया… वास्तव में ऐसे दिन आये कि आसुमल महान संत श्री आशारामजी बापू बन गये और आज घर-घर में उनके फोटो लगे हुए हैं ।

माता देवहूति ने अपने ही पुत्र कपिल मुनि में भगवदबुद्धि, गुरुबुद्धि करके ईश्वरप्राप्ति की और अपना जीवन सार्थक किया था, उसी इतिहास का पुनरावर्तन करने का गौरव प्राप्त करने वाली पुण्यशीला माँ महँगीबा जी के श्रीचरणों में कोटि-कोटि प्रणाम। उनके विराट व्यक्तित्व के लिए तो जगज्जननी की उपमा भी नन्हीं पड़ जात वात्सल्य की साक्षात मूर्ति… प्रेम का अथाह सागर…. करूणा की अविरत सरिता बहाते नेत्र…. प्रेममय वरदहस्त… कंठ अवरूद्ध हो जाता है उनके स्नेहमय संस्मरणों से ! धन्य धन्य माँ महँगीबाजी !! हे माँ ! तुम्हें प्रणाम !!!

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